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________________ | श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ || व्यक्तित्व की बहुरंगी किरणे : २६० : महाराज जब उदयपुर से विहार करके 'नाई' गाँव पधारे, तब वहाँ आपका उपदेश सुनने के लिए तीन-चार हजार भील एकत्रित थे । आपने मेवाड़ी भाषा में भीलों को लक्ष्य करके उपदेश दिया, से भीलों के हृदय में हिंसा के प्रति अरुचि हो गई। उन्होंने आपके उपदेश तथा आपके निर्मल चरित्र व लोकोपकारी व्यक्तित्व से प्रभावित होकर निम्नलिखित प्रतिज्ञाएँ लीं (१) वन में अग्नि नहीं लगाएँगे। (२) किसी भी नर-नारी को कष्ट नहीं देगे । (३) विवाह आदि प्रसंगों पर भी पशुओं का वध नहीं करेंगे। मामा के यहाँ से पशु आते हैं, उन्हें भी अभयदान देंगे। वि० सं० १९८२ में जब आपश्री नन्दवास पधारे, वहाँ के भीलों ने भी जंगल में आग न लगाने की प्रतिज्ञा ली। चमार मांस-मदिरा त्याग पर दृढ़ रहे जैन दिवाकरजी महाराज जिस वस्तु का त्याग कराते थे, उस वस्तु से होने वाली हानियाँ तथा उसके त्याग से होने वाले लाम को खूब अच्छी तरह समझा देते थे, ताकि भय और प्रलोभन की आँधी आने पर भी वह अपने त्याग पर डटा रह सके। __ ऐसी ही एक घटना केसूर ग्राम में हुई । कैसूर में उस समय सैलाना, महीदपुर, उज्जन, रतलाम आदि ६० क्षेत्रों के चमार गंगाजलोत्सव पर एकत्रित हुए थे। स्थानीय श्रावकों ने आपसे चर्मकार बस्ती में पधारकर चमार लोगों को उपदेश देने की प्रार्थना की । दयालु महाराजश्री उनकी प्रार्थना पर ध्यान देकर वहाँ पधारे और दो व्याख्यान दिये। उनका जादू-सा असर हुआ। आपके व्याख्यान के बाद चर्मकारों की एक विशेष मीटिंग हुई, जिसमें पचलूनी, बडलावदा, खाचरोद एवं बड़नगर के पंच भी सम्मिलित हुए। सबने दीर्घदृष्टि से विचार करके सभी उपस्थित लोगों को जैन दिवाकरजी महाराज के समक्ष आजीवन मांस-मदिरा का त्याग करवाया और स्वयं किया। इसके पश्चात् आजीवन मांस न खाने और मद्यपान न करने का ६० गांवों के चमारों की ओर से पंचों ने इकरारनामा लिखकर दिया। उसमें इस प्रतिज्ञा का भंग करने वाले के लिए जाति की ओर से बहिष्कार तथा दण्ड का निश्चय भी लिखा गया। इसके पश्चात् शराब के ठेकेदार तथा सरकारी अधिकारियों ने इन मद्यत्यागी चमारों को बहुत डराया, धमकाया, जबर्दस्ती प्रतिज्ञा भंग करने का प्रयत्न किया, लेकिन चमार अपनी प्रतिज्ञा से एक इंच भी न डिगे । त्याग पर इतनी दृढ़ता के कारण गुरुदेव के द्वारा दिये गए ज्ञान और . व्यक्तित्व का ही प्रभाव था । कसाइयों का हृदय-परिवर्तन वि० सं० १९८० में आपका चातुर्मास इन्दौर था । एक दिन 'जीवदया' पर आपका प्रभावशाली सार्वजनिक प्रवचन हुआ। प्रवचन में 'नजर मुहम्मद' नामक एक प्रसिद्ध कसाई भी उपस्थित था। प्रवचन का उस पर इतना तीव्र प्रभाव पड़ा कि प्रवचन में ही खड़े होकर उसने घोषणा की"मैं इस भरी सभा में कुरान-शरीफ की साक्षी से प्रतिज्ञा करता है कि आज से कदापि किसी जीव की हिंसा नहीं करूंगा।" कसाई के इस आकस्मिक परिवर्तन से सारी सभा चकित हो गई। सब ने उसे धन्यवाद दिया और जैन दिवाकरजी महाराज का अद्भुत प्रभाव देखकर उनके प्रति सब नतमस्तक हो गए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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