SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 342
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ : २८६ : समाज सुधार के अग्रदूत.. || श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ । कर जैन दिवाकरजी महाराज के पास खटीकों की शिकायत लेकर पहुँचा । आपश्री ने उसे साफसाफ सुना दिया कि 'जनता को शराब पिलाकर उसके तन, धन और धर्म को नष्ट करना तथा उसकी जिन्दगी के साथ खिलवाड़ करना उचित नहीं।' इंस्पैक्टर निरुत्तर होकर चला गया । ___ इस प्रकार आपने समाज की जड़ों को खोखला करने वाले मद्यपान का दुर्व्यसन अनेक लोगों को छुड़ाकर समाज को धर्म दृष्टि से सशक्त बनाया। खटीकों को अहिंसा-पथ पर लगाया खटीक अन्त्यज जाति में गिने जाते हैं । वे मालवा, मेवाड़ आदि में काफी फैले हुए हैं। इनका मुख्य धन्धा पशुओं को खरीदना, कसाइयों के हाथ बेचना या स्वयं उन्हें मारकर उनके अंगों मांस आदि को बेचना था । जैन दिवाकरजी महाराज का ध्यान इन लोगों की ओर गया। उन लोगों के पिछड़ेपन का कारण भी महाराजश्री की दृष्टि में छिपा न रह सका! अब तो आपश्री जहाँ भी पधारते खटीक परिवारों को अहिंसक बनने का उपदेश देते और आपके उपदेश उनके झटपट गले भी उतर जाते तथा वे अपना पूर्वोक्त पैतृक-धन्धा छोड़ देते । वि० सं० १९७० में जब आप भीलवाड़ा पधारे तो आपके उपदेश से ३५ खटीक परिवारों ने अपना पैतृक-धन्धा छोड़कर अहिंसक जीवन बिताने का संकल्प ले लिया। सवाई माधोपुर में भी आपके प्रवचनों से प्रभावित होकर ३० खटीक परिवारों ने अपना हिंसक धन्धा छोड़कर सात्त्विक धन्धे (कृषि, मेहनत-मजदूरी आदि) अपना लिए। हिंसक धन्धे छोड़ने के बाद उनका जीवन सब प्रकार से सुखी हो गया। इसका असर अन्य खटीकों पर भी पड़ा। उन्होंने भी पुस्तैनी हिंसक धन्धा छोड़कर जीवकोपार्जन के लिए सात्त्विक साधन अपना लिए। वि० सं० १६७१ में आगरा वर्षावास सम्पन्न करके जब आपके चरण मालव प्रदेश की ओर बढ़ रहे थे, तब कोटा से कुछ आगे एक खटीक को आपने प्रतिबोध दिया और अपने जाति के अहिंसक बनने पर सुखी एवं सम्पन्न हुए भाइयों का अनुसरण करने के लिए कहा तो उसने सरल हृदय से महाराजश्री की बात को स्वीकार कर लिया। इसी प्रकार नसीराबाद (छावनी), सोजत आदि कई गांवों के खटीकों ने अहिंसावत्ति अंगीकार की। समाजशुद्धि का यह कार्य कितना मूल्यवान है ? आपके करुणाद्र हृदय ने अनेक कष्ट सह कर इन पिछड़ी जाति के लोगों के जीवनपरिवर्तन कर दिये । मोचियों के जीवन की कायापलट गंगापूर के मोचीजाति में जैन दिवाकरजी महाराज ने मानवता की ज्योति जगाई। मोचीजाति के अनेक लोग आपके उपदेशों से प्रभावित होकर शुद्ध शाकाहारी अहिंसक बन गए। उन्होंने शराब, मांस, जीवहिंसा आदि दुर्व्यसनों का त्याग कर दिया। कई मोची तो जैनधर्म का पालन कर रहे हैं । गंगापुर के जिनगरों (मोचियों) के द्वारा स्वीकृत अहिंसावृत्ति का प्रभाव पाली, रेलमगरा, पोटला, जोधपुर आदि क्षेत्रों के मोचियों पर भी पड़ा। उन्होंने भी मांस, मद्य जीवहिंसा आदि दुर्व्यसनों से विरत होकर सात्त्विक जीवन अपना लिया। भीलों द्वारा हिंसा का त्याग मेवाड़ के आदिवासी गिरिजन भील कहलाते हैं। ये भोले, भद्र और सरल होते हैं। महाराणा प्रताप के वनवास के समम ये अत्यन्त सहायक रहे हैं। वि० सं० १६६६ में जैन दिवाकरजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy