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________________ श्री जैन दिवाकर- स्मृति-ग्रन्थ इसी प्रकार अहमदनगर आदि कई क्षेत्रों में आपके उपदेशों ने कसाइयों का जीवन परिवर्तन कर दिया । के : २९१ समाज सुधार 'अग्रदूत'''' चोर का जीवन बदला समाज में चोरी का धन्धा उसे रसातल एवं पतन की ओर ले जाने वाला है । चोर का परिवार कभी सुख-शान्ति से जी नहीं सकता, न ही समाज में उसकी प्रतिष्ठा होती है । जलेसर ( उ० प्र० ) में जैन दिवाकरजी महाराज का प्रवचन चोरी के दुष्परिणामों पर हो रहा था । श्रोता मन्त्रमुग्ध होकर सुन रहे थे । प्रवचन पूर्ण होते ही एक व्यक्ति सहसा खड़ा हुआ और करबद्ध होकर कहने लगा- "महाराज ! मुझे चोरी का त्याग करा दीजिए। आज से मैं आजीवन चोरी जैसा निन्दनीय कर्म नहीं करूंगा।" आपभी ने उसके क्रूर चेहरे पर पश्चात्ताप की रेखा देखी, आँखें सजल होकर उसकी साक्षी दे रही थीं । आपने क्षणभर विचार करके उसे चोरी न करने का नियम दिला दिया। उपस्थित जनता उस भूतपूर्व चोर, डकैत और क्रूर व्यक्ति का अकस्मात् हृदयपरिवर्तन देख कर चकित थी। सबने उसके त्याग के प्रति मंगलकामना प्रगट की। पर यह सब चमत्कार था, जैन दिवाकरजी महाराज के हृदयस्पर्शी प्रवचन का ही ! कैदियों द्वारा भविष्य में दुष्कर्म न करने का वचन कैदी भी कोई न कोई अपराध करके स्वयं जीवन को गंदा बनाते हैं और समाज में भी गंदा वातावरण फैलाते हैं। जैन दिवाकर जी महाराज समाज शुद्धि के इस महत्त्वपूर्ण पात्र का भी ध्यान रखते थे, जहाँ भी अवसर मिलता, वे कैदियों के हृदय तक अपनी बात पहुँचाते थे । वि० सं० १९८४ की पटना है। चित्तौड़ के मजिस्ट्रेट को कैदियों की दयनीय एवं पतित दशा देख कर दया आई । आपकी प्रभावशाली वक्तृत्वशक्ति से वह परिचित था। एक दिन उसने आपसे कैदियों के जीवनसुधार के लिए उपदेश देने की प्रार्थना की। आपने प्रार्थना स्वीकृत की ओर कैदियों के समक्ष इतना प्रभावशाली प्रवचन दिया कि उनके हृदय हिल उठे। सबने पश्चात्तापपूर्वक साश्रुपूर्ण नेत्रों से संकल्प व्यक्त किया- "हम भविष्य में कदापि ऐसा कोई कार्य नहीं करेंगे, जिससे हमारे वा दूसरे का कोई अपकार हो । हम सदैव सत्पथ पर चलेंगे ।" देवास जेल में भी कैदियों को इसी तरह उपदेश दिया था सचमुच समाज की सर्वतोमुखी शुद्धि के लिए आपके ये को उजागर कर देते हैं। एवं कई त्याग करवाये थे । प्रयत्न आपके पतितपावन विरुद वेश्याओं का जीवनोद्धार 'वेश्यावृत्ति सामाजिक जीवन के लिए एक कलंक है, पतन का द्वार है, यह जितना शीघ्र समाज से विदा हो, उतना ही समाज का कल्याण है। जैन दिवाकरजी महाराज इस विषय पर गहराई से चिन्तन करते थे और समाज को शुद्ध एवं स्वच्छ बनाने के लिए वेश्यावृत्ति को मिटाना आवश्यक समझते थे । जहाँ भी आपको अवसर मिलता था, आप इस दुर्बुत्ति को बन्द करने का संकेत करते थे । वि० सं० १९६९ में जैन दिवाकरजी महाराज चित्तौड़ आदि होते हुए जहाजपुर पधारे। यहाँ विवाह आदि अवसरों पर वेश्याओं के नृत्य का रिवाज था। महाराजश्री ने अपने प्रवचनों में Jain Education International For Private & Personal Use Only ne www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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