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________________ | श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ । व्यक्तित्व की बहुरंगी किरणें : २८८ : घोर हिंसा है, अधर्म है । जैन दिवाकरजी महाराज ने इस कुरूढ़ि को भी बन्द कराने के लिए प्रयास किया था। गंगापुर में जब आप विराज रहे थे, उस समय उज्जैन के सरसूबेदार बालमुकुन्दजी आपके दर्शनार्थ आए और उन्होंने आपसे प्रार्थना की-'महाराज! कोई सेवा हो तो फरमाइए।' आपश्री ने अहिंसा-प्रचार की प्रेरणा देते हुए कहा-"आप उज्जैन के उच्च अधिकारी हैं। आप वहाँ देवी-देवताओं के नाम पर होने वाली पशुबलि को बन्द कराने की भरसक कोशिश करें।" उन्होंने इसके लिए पूर्ण प्रयास करने की स्वीकृति दी। इन्दौर में आपके व्याख्यानों से प्रभावित होकर वहाँ के डिस्ट्रिक्ट सूबेदार ने विभिन्न स्थानों पर देवी देवताओं के आगे होने वाली पशुबलि बन्द कराई। जिसके फलस्वरूप १५०० पशुओं को अभयदान मिला। हिंसाजनक करूढ़ि को दूर करने का यह कितना प्रबल कदम था। अस्पृश्यता का कलंक मिटाया अस्पृश्यता भारतीय संस्कृति और समाज का सबसे बड़ा कलंक है। जैनधर्म तो अस्पृश्यता को मानता ही नहीं, फिर भी पड़ोसी धर्म के सम्पर्क से कुछ जेनों में यह कलंकदायिनी कुप्रथा घुस गई । वे इस बात को भूल जाते हैं कि जैनधर्म के उच्च साधकों में हरिकेश चाण्डाल, मैतार्य भंगी, यमपाल चाण्डाल आदि अनेक पूजनीय व्यक्ति हो चुके हैं। किसी भी जाति, वर्ण और धर्मसम्प्रदाय का व्यक्ति सदाचार का पालन करके अपनी आत्मा को पवित्र और उच्च बना सकता है। जैन दिवाकरजी महाराज ने भी अस्पृश्य, पतित और नीच कहे जाने वाले कई लोगों को अहिंसक बनाया है और दुर्व्यसनों का त्याग करा कर उन्हें धर्ममार्ग पर चढ़ाया है। परन्तु अस्पृश्यता का भयंकर रूप तो तब प्रकट होता है, जब किसी निर्दोष व्यक्ति पर झठा कलंक लगा कर उसे अस्पृश्य घोषित कर दिया जाता है, उसके साथ मानवता का व्यवहार भी नहीं किया जाता। बड़ी सादड़ी में कुछ स्त्रियों ने अन्य स्त्रियों पर मिथ्या कलंक लगा कर उन्हें अस्पृश्य करार दे दिया । समाज में उसको लेकर काफी वैमनस्य फैला। अनेक सन्तों के प्रयास से भी वह झंझट न मिटा । आखिर जैन दिवाकरजी महाराज के प्रभावशाली सदुपदेश से वह झंझट निपट गया । समाज का वह मनोमालिन्य सदा के लिए मिट गया । बुनकर भी पवित्रता के पथ पर मध्य प्रदेश में विचरण करते हए आपश्री राजगढ़ पधारे। बुनकरों में मांस एवं मद्य का दुर्व्यसन लगा हआ था। आपके सदुपदेश से प्रभावित होकर उन्होंने जीवन-भर के लिए मांस-मदिरा का त्याग कर दिया। खटीकों ने मद्यपान का त्याग किया पिपलिया गांव के खटीकों में मद्यपान का भयंकर दुर्व्यसन लगा हुआ था। इसके कारण वे धन, धर्म और तन से बर्बाद हो रहे थे। आपश्री का जोशीला प्रवचन ४०० से अधिक खटीकों ने सुना । शराब के दुर्गण और अपनी बुरी हालत सुनकर खटीक एकदम जागृत हो गए। उन्होंने आपश्री के समक्ष आजीवन शराब न पीने की शपथ ले ली। खटीकों का तो मद्यपान के त्याग से सुधार हआ, पर निहित-स्वार्थी शराब के ठेकेदार को आर्थिक हानि हुई। उसने आवकारी इन्स्पेक्टर से शिकायत की। वह भी ठेकेदार का समर्थक बन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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