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________________ श्री जैन दिवाकर स्मृति ग्रन्थ करके जैन दिवाकरजी महाराज इन्द्रगढ़ पधारे ! जनता आपके प्रवचन सुनने के लिए बरसाती नदी की तरह उमड़ती थी। ब्राह्मण जाति के दोनों पक्षों के सदस्य आपके प्रवचन सुनने आते थे। एक दिन एकता और स्नेह पर जोशीला प्रवचन देते हुए आपने प्रवचन के दौरान ही सभा में उपस्थित ब्राह्मणों से पूछा - "आप लोग प्रेम चाहते हैं या संघर्ष ?" आपके प्रवचन से प्रभावित मुखिया लोग सहसा बोल उठे - "इस संघर्ष ने तो हमारा सत्यानाश कर दिया है, हम तो प्रेम और ऐक्य चाहते हैं ।" : २८७ : समाज सुधार के अग्रदूत" "अगर एकता चाहते हैं तो पुराने बैर की आग को आज, अभी यहीं पर बुझा दें। एकदूसरे से क्षमा मांगकर प्रेमपूर्वक मिले।" देखते ही देखते पूरी सभा में परस्पर क्षमा के आदान-प्रदान से मधुर एवं मंगलमय वातावरण हो गया । इसी तरह जहाजपुर, पोटला, सांगानेर आदि में सर्वत्र आपकी प्रेरणा से वैमनस्य दूर हुआ । पाली श्रीसंघ में अनेक प्रयासों के बाद भी एकता नहीं हो पा रही थी, किन्तु वि० सं० १९६० में जब आप पाली पधारे तो आपके संघ ऐक्य पर हुए जोशीले प्रवचनों से पालीसंघ के अग्रगण्य लोगों के हृदय डोल उठे और संघ में एकता की लहर व्याप्त हो गई। इस प्रकार जहाँ-जहाँ भी आपने फूट, वैमनस्य, अलगाव एवं संघर्ष देखा, प्रेरक सदुपदेश देकर दूर किया । वैवाहिक कुरूड़ियाँ बन्द कराई विवाह गृहस्थ जीवन में मंगल प्रदेश का द्वार है । विवाह के साथ समाज में कई कुरूढ़ियाँ एवं कुरीतियां प्रचलित हो जाती है, एक बार उनका पालन, भविष्य में घातक होने पर भी उस परिवार को उनके पालन के लिए बाध्य करता रहता है। कुरूड़ियों के पालन के कारण समाज के मध्यमवर्गीय परिवार की कमर टूट जाती है। वर्षों तक या कई परिवार तो पीढ़ियों तक उठ नहीं पाते। अतः जैन दिवाकरजी महाराज की प्रेरणा से ऐसी कई कुरूड़ियाँ बन्द हो गई। जैन दिवाकरजी महाराज का जब जहाजपुर पदार्पण हुआ, तब वहाँ का समाज कन्याविक्रय, विवाहों में वेश्यानृत्य, मदिरा पान आतिशवाजी आदि कुरीतियों में बुरी तरह फँसा हुआ था । इन्हीं कुरीतियों के कारण वहाँ के जैनेतर लोगों मे परस्पर मनमुटाव था। एक-दूसरे के पास बैठकर परस्पर विचार विनिमय करने से कतराते थे । आपश्री ने वहाँ समाज-सुधार पर इतने प्रभावशाली प्रवचन दिये कि जनता मन्त्रमुग्ध हो गई और अनेकता के अंधेरे को चीर कर प्रेम के उज्ज्वल प्रकाश से सराबोर हो गई। फलतः आपके सदुपदेशों से प्रभावित होकर वहाँ के माहेश्वरी, दिगम्बर जैन एवं अन्य अनेकों लोगों ने परस्पर प्रेम भाव से विचार विनिमय करके उपर्युक्त अनेक रूढ़ियों तथा दुर्व्यसनों का त्याग किया। चित्तौड़ में समाज-सुधार पर हुए आपके प्रवचनों से प्रभावित होकर ओसवालों और माहेश्वरियों ने अपने-अपने समाज में कन्याविक्रय, पहरावणी आदि कई कुरीतियों का परित्याग किया । साथ ही उन्होंने अपनी जाति में यह घोषणा करवा दी कि जिस भाई के पास अपनी कन्या के विवाह के लिए अर्थव्यवस्था नहीं हो, उसे जाति के पंचायती फण्ड से ४०० रुपये तक कर्ज के रूप में बिना ब्याज के दिये जाएँगे ।' पशुबलि निवारण का प्रयास धर्म के नाम पर देवी-देवताओं के आगे की जाने वाली पशुबलि भी एक भयंकर कुरूढ़ि है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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