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________________ :२०५: श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम श्री जैन दिवाकर - स्मृति-ग्रन्थ सफल जीवन का रहस्य १ श्री रतन मुनि (चन्द्रपुर) जातस्य हि ध्र वो मृत्यु ध्रुवं जन्म मृतस्य च । जन्म है वहाँ मृत्यु भी है, मृत्यु है वहाँ जन्म भी निश्चित है । चार अरब की मानवी दुनियां में हजारों मनुष्य प्रतिदिन जन्म लेते है और हजारों ही मृत्यु के मुख में प्रवेश कर जाते हैं। लेकिन उनके जन्मने और मरने का कोई महत्त्व नहीं है । इन मनुष्यों में विरल मनुष्य ऐसे भी महत्त्वपूर्ण अवतरित होते हैं, जिनका जन्मना लाखों प्राणियों के कल्याण के लिए और परम ध्येय की पूर्ति के लिए होता है। वे जीते हैं, लेकिन अपने लिए नहीं, परमार्थ की सिद्धि के लिए। उनके जीने में एक निरालापन होता है । उनके जीवन का प्रत्येक क्षण दीपक के समान तिल-तिल जल कर भी दुनियां में प्रकाश फैलाता है । ऐसे पुरुषों के लिए मृत्यु भी अमरता का वरदान बन जाती है । जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराजः जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज का जीवन भी सफलता की एक कथा है। उनका देहावसान भी जीवन का विश्राम है। जीवन में सफलता का अमृतपान किया और जन-मन में अध्यात्म जागृति का शंखनाद किया । जिसकी आज भी हजारों आदमियों में गूंज मौजूद है। युगोंयूग तक उनकी साधना की सफल जीवन-गाथाएं गायी जाती रहेंगी। १८ वर्ष की आयु में ही वैराग्य का किरमिची रंग चढ़ना और मौतिक सुखों को अपनी ओर आकर्षित करने में असफल पाना कम महत्त्व नहीं रखता। जिन चौथमलजी महाराज को पूर्ण यौवन में नारी का मादक मोह बाँधने में असमर्थ रहा और माता-बहनें परिवार का वात्सल्यभरा मधुर-प्रेम भी रोक न सका ! उनकी गणगरिमा का क्या व्याख्यान ? उनके वैराग्य भाव को देखकर शास्त्रज्ञ महामुनि श्री हीरालालजी महाराज ने श्री चौथमलजी को दीक्षित किया तो सम्यग ज्ञान, दर्शन, चारित्र के समार्ग का बोध कराके जीवन को और प्रगाढ़ बना दिया। गम्भीर व्यक्तित्व, प्रखर वक्तृत्व कला, निरहंकारता, निःस्पृहा और सहज-सरल स्वभाव, साम्प्रदायिक रूढ़ियों से निर्लिप्त, समन्वयात्मक विवेचन शैली, अद्भुत काव्य शक्ति आदि विशेषताओं के धनी थे। श्री जैन दिवाकरजी महाराज के सदूपदेश ने समाज को अनेक रचनात्मक प्रवृत्तियों में जोड़ दिया। धर्म पर जो है फिदा, मरने से वो डरते नहीं। लोग कहते मर गये, दरअसल वह मरते नहीं ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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