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________________ :१२६ : क्या चौथमलजी महाराज पधारे हैं ? श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ 'क्या चौथमलजी महाराज पधारे हैं ?' x श्री रिखबराज कर्णावट; एडवोकेट (जोधपुर) मेरे गाँव भोपालगढ़ की बात है । लगभग पचास वर्ष पहले जब मैं बच्चा था प्रसिद्धवक्ता चौथमलजी महाराज पधारे । मुझे याद है सारा-का-सारा गाँव महाराजश्री के प्रवचन सुनने उमड़ पड़ता था। एक छोटे से गाँव में हजारों स्त्री-पुरुषों का अपना काम-धन्धा छोड़कर एक जैन मुनि का प्रवचन सुनने आ जाना एक असाधारण घटना थी। सैकड़ों अजैन भाई-बहिन अपने को जैन व महाराज के शिष्य कहलाने में गौरव अनुभव करने लगे थे। महाराजश्री की प्रवचन-सभा में गांव के जागीरदार से लेकर गांव के हरिजन बन्धु तक उपस्थित रहते थे। कुरान की आयतें सुनकर मुसलमान भाई धर्म का मर्म समझने में प्रसन्नता अनुभव करते थे। समस्त ग्रामवासियों का इस तरह का भावात्मक एकीकरण हो जाने का कारण महाराजश्री के प्रति सबकी समान श्रद्धा थी। अनेक वर्षों तक उनका प्रभाव बना रहा। जब कभी ग्रामवासी जैन लोगों को मुनियों के स्वागतार्थ जाते हुए भारी संख्या में देखते तो बड़ी श्रद्धा-भावना से पूछते, "कांई चौथमलजी बापजी पधारिया ?" (क्या चौथमलजी महाराज पधारे हैं ?)। इस प्रकार का अमिट प्रभाव प्रसिद्ध वक्ताजी ने अपने प्रवचनों से सर्वत्र पैदा किया था। जोधपुर में महाराजश्री के दो चातुर्मास हुए । दूसरे चातुर्मास में मैं जोधपुर रहने लगा था। महाराजश्री के परिचय में भी आया। मुझ-जैसे साधारण व्यक्ति को भी महाराजश्री ने, जो स्नेह प्रदान किया वह मेरे लिए अविस्मरणीय है। जोधपुर शहर में भी ऐसा वातावरण था जैसे सारा शहर महाराजश्री का भक्त बन गया हो। विशाल व्याख्यान-स्थल पर भी लोगों को बैठने की जगह मुश्किल से मिल पाती । हजारों नर-नारी, जिसमें सभी जातियों और सभी वर्गों के लोग होते थे, महाराजश्री का उपदेश सुनने बिला नागा आते थे । किसान, मजदूर और हरिजन भी इतना ही रस लेते थे जितना बुद्धिजीवी, सरकारी अहलकार एवं व्यापारी। महाराजश्री की प्रवचन-शैली इतनी आकर्षक एवं जनप्रिय थी कि उनके उपदेश का एक-एक शब्द बड़ी तन्मयता से लोग सुनते थे। उनके उपदेश का प्रभाव था कि हजारों राजकर्मचारियों ने रिश्वत लेने का त्याग किया। हजारों ने दारू-मांस छोड़ा। व्यापारियों ने मिलावट न करने की व पूरा माप-तौल रखने की प्रतिज्ञाएँ लीं। वेश्याओं ने अपने घृणित धन्धे छोड़े। कठोर-से-कठोर दिलवाले लोग भी उनके जादूभरे वचनों से मोम की तरह पिघल जाते थे। समाज-उत्थान के बड़े-बड़े काम भी उनके उपदेशों से हए। अनेक विद्यालयों की स्थापना हुई । वात्सल्य-फण्ड स्थापित हुए । अनेक अगते कायम हुए। जोधपुर में सं० १९८४ से पर्युषण के दिनों में नौ दिनों तक सारे व्यापारियों ने अपना काम-काज बन्द रखकर धर्म-ध्यान के लिए मुक्त समय रखने का निर्णय लिया गया। यह निर्णय आज तक भी कायम है। सभी सम्प्रदायों के लोग इस निर्णय का पालन करते हैं। वास्तव में जैन दिवाकरजी महाराज एक युग-पुरुष थे । उन्होंने जाति-पांति के बन्धनों को तोड़ा, अस्पृश्यता का निवारण किया, व्यसन एवं बुराई में पड़े लोगों को निर्व्यसनी बनाया । शुद्ध समाज के निर्माण में उनका अद्भुत योगदान रहा । उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व कभी भुलाया नहीं जा सकता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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