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________________ श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ । स्मृतियों के स्वर : १२८ : बार हई जिसमें उनका गम्भीर सैद्धान्तिक ज्ञान झलकता था। कठिन विषय को सरल और सरस शब्दों में वे प्रस्तुत करते थे जिससे प्रश्नकर्ता को वह विषय सहज ही समझ में आ जाता था। यह बड़े हर्ष और गौरव का विषय है कि जैन दिवाकर शताब्दी वर्ष में उनसे सम्बन्धित अनेक कृतियाँ प्रकाश में आई हैं और अब स्मृति-ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है। स्मृति-ग्रन्थ के माध्यम से एक साहित्यिक महत्त्वपूर्ण कृति प्रस्तुत की जा रही है । मैं उस स्वर्गीय ज्योतिपुन्ज क्रान्तदर्शी युगपुरुष के चरणों में अपने श्रद्धा-सुमन समर्पित करती हूँ और आशा करती हूँ कि उनका पवित्र जीवन हम सभी के लिए सदा प्रेरणा-पुञ्ज बना रहे। क्या ये चमत्कार नहीं हैं ? श्री चांदमल मारू (मंदसौर) गुरुदेव का वि० सं० १९६६ का चातुर्मास मन्दसौर में था। इसी वर्ष गाँधीजी के सान्निध्य में 'भारत छोड़ो आन्दोलन' का आरम्भ हुआ। मुझे तथा मेरे साथियों को पुलिस गिरफ्तार करके ले गयी । हमारे संघ-प्रमुख श्री मिश्रीलालजी बाफना ने गुरुदेव से इस सम्बन्ध में निवेदन किया । उन्होंने सहज ही कहा-'चिन्ता मत करो, सब आठ-दस दिन में छूटकर घर आ जाएंगे'। यही हुआ। हम लोग नवें दिन बिना शर्त के छोड़ दिये गये। इसी चातुर्मास में एक और अविस्मरणीय घटना हुई। एक सहधर्मी भाई का इकलौता पुत्र, जिसकी उम्र करीब बीस साल रही होगी, डबल निमोनिया में फंस गया। उसे गुरुदेव के पास मांगलिक सुनवाने ले गये। मैं भी साथ गया। सब दुखी थे, सब की आँखें डबडबाई हुई थी; किन्तु गुरुदेव ने शान्तिपूर्वक मांगलिक सुनाया और कहा सब ठीक हो जायेगा। सबेरे वह स्वयं उठकर व्याख्यान में आ जाएगा । सारा वातावरण ही बदल गया। मैंने उचित दवा लाकर दी और कम्बल ओढ़ाकर सुला दिया। वह सो गया, और सबेरे व्याख्यान में आ गया। इसी चातुर्मास में एक और प्रसंग इसी तरह का सामने आया। स्थानक में गुरुदेव विराजमान थे, उसके पीछे की गली में एक बाई भयंकर प्रसव-पीड़ा से कराह रही थी । डाक्टर, बैद्य, दाई, नर्स सब ने उपचार किया किन्तु कोई लाभ नहीं हुआ, दर्द ज्यों-का-त्यों बना रहा । ऐसे खिन्न वातावरण में वहां खड़े एक भाई ने कहा कि एक कटोरी जल ले जाओ और गुरुदेव का अंगूठा छुआ लाओ और बाई को पिला दो। यही हुआ और दर्द बिजली की गति से भाग गया । प्रसविनी उठ बैठी । दूसरे दिन उसने एक सुन्दर बालक को जन्म दिया । ऐसी अनेक घटनाएं हैं जो मुनिश्री चौथमलजी के व्यक्तित्व को उजागर करती हैं। वस्तुत: ये चमत्कार नहीं हैं, ये हैं उनकी आध्यात्मिक साधना से निर्मित निर्मल वातावरण के प्रभाव । उनकी साधना इतनी महान्, उज्ज्वल और लोकोपकारी थी कि चारों ओर का वातावरण, जहाँ भी वे जाते, रहते या प्रवचन करते थे; निर्मल, रुजहारी और आह्लादपूर्ण हो उठता था। वे महान् थे। -- - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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