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________________ श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ । एक पारस-पुरुष का गरिमामय जीवन : ६८ : कार्तिक सुदी ७ के दिन राय बहादुर दानवीर सेठ कुन्दनमलजी और उनके सुपुत्र लालचन्दजी परिवार सहित दर्शनार्थ आए। सेठजी ने सं० १९८२ में रतलाम श्री संघ को ५२०० रुपये का भवन खरीद कर जैनोदय पुस्तक प्रकाशक समिति के लिए दिया था। उसका निरीक्षण करके ११०० रुपये व्यवस्था हेतु और दिये। आगरा अनाथालय को भी ११०० रुपये दिये तथा रतलाम की पाठशाला को ३२०० रुपये दिये। चौतीसवाँ चातुर्मास (सं० १९८६) : जलगाँव रतलाम चातुर्मास पूर्ण करके आपश्री पीपलखूटा पधारे। वहां के ठाकुर साहब ने जीवदया संबंधी पट्टा लिखकर दिया। उमरणा की रानी साहिबा ने आपका प्रवचन सुनने की इच्छा प्रकट की । प्रवचन सुनकर रानी साहिबा तथा अन्य स्त्रियों ने रात्रि-मोजन का त्याग किया। उस समय ठाकुर साहब सैलाना गए हए थे। रानी साहिबा ने वचन दिया कि ठाकर साहब के आते ही चैत सुदी १३ (महावीर जयन्ती) तथा पौष बदी १० (पार्श्वनाथ जयन्ती) के दिनों में जीवदया पलवाने का फरमान जारी कर दिया जायेगा। उमरणा से आपश्री छत्रीबरमावर पधारे। वहाँ के ओसवाल समाज में पुराना वैमनस्य था, वह आपके प्रवचनों से पूर्णरूप से धुल गया। अनेक गांवों में विचरण करते हुए आप दमासी की ओर जा रहे थे। मार्ग में एक भील ५ बकरों को कसाई को बेचने के लिए ले जाता हुआ मिला । श्रावकों ने उन बकरों को छुड़ाया और सरकारी मवेशीखाने (पिंजरापोल) में भेज दिया। पूज्य श्री अमोलक ऋषिजी महाराज का संदेश श्रीसंघ धूलिया द्वारा प्राप्त हुआ कि 'मुनिश्री से मिलने की इच्छा है।' गुरुदेव की भी बहुत दिनों से मिलने की इच्छा थी। मुनिश्री धुलिया पधारे । दोनों मुनिवरों का मिलन हार्दिक स्नेह भरा रहा। पूज्य श्री अमोलक ऋषि जी महाराज जैन श्रमणों में पहले श्रमण थे जिन्होंने संपूर्ण ३२ आगमों का हिन्दी भाषा में अनुवाद बहत ही अल्प समय में पूर्ण किया। वहाँ से आपश्री अमलनेर पधारे। वहाँ आपकी प्रेरणा से महावीर जयन्ती का उत्सव दिगम्बर, श्वेताम्बर और स्थानकवासी-तीनों सम्प्रदायों ने मिलकर मनाया। धरण गाँव में जैन दिवाकर जी महाराज का व्याख्यान मालीवाड़ा नामक स्थान पर सार्वजनिक रूप से हआ। प्रवचन से प्रभावित होकर अनेक लोगों ने मांस-मदिरा आदि दुर्व्यसन त्याग की प्रतिज्ञाएं लीं। भुसावल में आपका प्रवचन सुनने के लिए श्रोताओं की भीड़ तो होती ही थी, इस्लाम धर्म के पक्के अनुयायी मौलवी तथा ऑनरेरी मजिस्ट्रेट श्री खान बहादुर भी आते थे। प्रवचन से प्रभावित होकर उन्हें कहना पड़ा कि 'हम सचमुच भाग्यशाली हैं कि आप हमारे नगर में पधारे हैं। यदि कुछ दिन आप जैसे सन्तों का सम्पर्क लाभ मिल जाय तो हम लोगों का वैमनस्य मिट जाय और एकता स्थापित हो जाय ।' मुस्लिम भाइयों का जैन दिवाकर जी महाराज के प्रति इतना प्रेम था कि उन्होंने अपनी शवयात्रा का मार्ग बदल दिया जिससे कि आपके प्रवचन में बाधा न पड़े। भुसावल से आप जलगाँव पधारे। इस चातुर्मास में तपस्वी श्री मयाचन्दजी महाराज ने ४० दिन की और तपस्वी श्री विजयराज जी महाराज ने ४४ दिन की तपस्याएं गर्म जल के आधार पर की। भादवा सदी को पारणा था । इस दिन नगर के सभी कसाईखाने बन्द रहे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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