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________________ ६६: उदय : धर्म-दिवाकर का श्री जैन दिवाकर -स्मृति-ग्रन्थ इस चातुर्मास में आसपास के दर्शनार्थियों ने दर्शन एवं प्रवचन का बहुत लाम लिया । धर्मध्यान भी बहुत हुआ। पैतीसवाँ चातुर्मास (सं० १९८७) : अहमदनगर जलगांव चातुर्मास के बाद आपश्री भुसावल पधारे। वहाँ सेठ पन्नालालजी की सुपुत्री का विवाह था। विवाहमंडप में व्याख्यान होते थे। वर और वध के पिताओं की ओर से हजारों रुपयों का दान किया गया। पाठशाला स्थापित की गई। वहाँ से विहार करके आपने खेड़ग्राम, पाचोरा, भड़गांव, चालीसगाँव, मनमाड आदि स्थानों को पवित्र किया । सभी स्थानों पर लोगों ने मांसाहार त्याग की प्रतिज्ञाएं लीं। मुसलमानों ने जुमे (शुक्रवार) के दिन हल नहीं चलाने की अनेक गांवों में प्रतिज्ञा लीं। बाघली में चमड़े का प्रयोग न करने, बूढ़े पशुओं को न बेचने और तम्बाकू आदि नशीली वस्तुओं का सेवन न करने की प्रतिज्ञाएँ अनेक व्यक्तियों द्वारा ली गईं। लोगों ने अपनी चिलमें तोड़ दीं। इसी प्रकार बहुत से गाँवों में कन्या विक्रय, चोरी, व्यभिचार, मदिरा-पान, मांस भक्षण, भांग-गांजा आदि का त्याग किया गया। अहमदनगर के चातुर्मास में तपस्वी श्री विजयराजजी महाराज ने ४१ दिन की तपस्या की। पूर्णाहुति के दिन हिन्दू-मुस्लिम, माहेश्वरी, पारसी, आदि सभी भाइयों ने सहयोग दिया । आपश्री ने 'जीव दया' पर प्रवचन फरमाया। श्रोताओं में वहाँ के कसाइयों का मुखिया भी उपस्थित था । स्थानीय संघ ने जीवदया का चन्दा लिखना शुरू किया। लोग अपने-अपने नाम के आगे धनराशि लिखवा रहे थे। आपके प्रवचन का उस कसाई मुखिया के हृदय पर इतना प्रभाव पड़ा कि वह भी उठ खड़ा हुआ और बोला "मेरी ओर से भी २१ रुपये लिख लीजिए।" लोग उसकी तरफ देखने लगे तब उसने भरे गले से कहा "मैं यहां के कसाइयों का मुखिया हैं। मेरी आप सब लोगों से एक प्रार्थना है कि आप लोग लोम छोड़ें। अपने बेकार और बूढ़े पशुओं को कसाइयों के हाथ न बेचें । जब तक आप लोगों का लोभ नहीं छूटेगा तब तक जीव-हिंसा भी बन्द नहीं हो सकती। आप लोग मेरी बात पर आश्चर्य न करें। मुझमें यह परिवर्तन महाराज साहब के उपदेश से आया है।" कसाई की बात सुनकर सभी दंग रह गए। जैन दिवाकरजी का प्रवचन इतना प्रभावशाली होता था कि पाषाण-हृदयों से भी करुणा के स्रोत फूट पड़ते थे। पांच मोची परिवारों ने भी आजन्म मांस-मदिरा का त्याग किया। "ओसवाल निराश्रित सहायता फंड में १५००० रुपये की राशि एकत्र हई और आपश्री के प्रवचनों से मृत्यु-भोज की प्रथा बन्द हो गई। अहमदनगर में 'जैन शिक्षा' संस्था की स्थापना हुई, ४० विद्यार्थी भी पढ़ने लगे। सतारा श्रीसंघ सतारा के लिए विनती करने आया। साधुभाषा में शेष काल के लिए स्वीकृति दी। छत्तीसवा चातुर्मास (सं० १९८८) : बम्बई अहमदनगर चातुर्मास पूर्ण करके भिंगार केंप पधारे । वहाँ के मुसलमानों ने अपने मौहल्ले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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