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________________ :६७: उदय : धर्म-दिवाकर का श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ अनेक गाँवों में विचरण करते हए आपश्री बदनौर पधारे। वहां के ठाकूर साहब भूपालसिंहजी ने आपके प्रवचन सुने और जीवदया का पट्टा दिया। इसी प्रकार के पट्ट केरिया के महाराज श्री गुलाबसिंहजी, निम्बाहेड़ा के ठाकुर साहब, भगवानपुरा के कुमारसाहब आदि अनेक शासकों ने दिये। इन सभी ने जीवदया के बहुत काम किये । 'आदर्श उपकार' नामक पुस्तक में सब बातें विस्तार पूर्वक लिखी हैं। मगवानपुरा से मांडल पधारे । वहाँ ओसवालों के सिर्फ ५ घर थे, फिर भी व्याख्यान में करीब १५०० की जनसंख्या उपस्थित होती थी। महेश्वरियों के १२५ घरों ने कन्या विक्रय बन्द किया और कन्या विक्रय करने वालों के साथ भी कोई व्यवहार नहीं रखा जायगा-ऐसा प्रस्ताव भी जाति से पास किया। रानीवास के सरदारों ने पक्षियों और हरिणों का शिकार न करने की प्रतिज्ञा की। मेजा रावतजी श्री जयसिंहजी, हमीरगढ़ रावतजी मदनसिंहजी आदि ने भी व्याख्यान सुने और जीवदया के पट्टे दिए । मेजा से विहार करते हुए गुरुदेवश्री हमीरगढ़ होकर चित्तोड़ पधारे। वहाँ के मजिस्ट्रेट यशवन्तसिंह जी आपकी वाणी के प्रभाव से परिचित थे। उन्होंने सोचा-'यदि महाराजश्री की वाणी इन बन्दियों को सुनवा दी जाये तो इनका हृदय-परिवर्तन हो जायगा। ये सुमार्ग पर लग जायेंगे।' उनने अपनी यह इच्छा आपश्री के समक्ष रखी । मजिस्ट्रेट की इच्छा स्वीकार करके आपने बन्दियों को उपदेश दिया । बन्दियों पर इच्छित प्रभाव हआ। अपने दुष्कृत्यों पर उनको बहत पश्चात्ताप हआ। उन्होंने भविष्य में सदा सन्मार्ग पर चलने का संकल्प लिया। देवास में भी आपश्री ने इसी प्रकार कैदियों को उपदेश देकर त्याग करवाए थे। यह था जैन दिवाकरजी का पतितोद्धारक रूप ! चित्तोड़ प्रवास के बाद आपश्री ओछड़ी पधारे। ओछड़ी में घटियावली के ठाकुर साहब श्री शम्भुसिंहजी, रोलाहेड़ा के ठाकुर साहब श्री सज्जनसिंहजी, पुढोली के ठाकुर साहब श्री प्रतापसिंह जी और ओछड़ी के ठाकुर साहब श्री भूपालसिंहजी चारों एकत्र हुए। पुढोली के ठाकुर साहब ने पार्श्वनाथ जयन्ती और महावीर जयन्ती के दिन अपने संपूर्ण राज्य में जीवहिंसा का निषेध करा दिया। नदी में से कोई मछलियां न पकड़ सके इसलिए शिलालेख लगवा दिया। घटियावली के ठाकुर साहब ने भी ऐसा ही शिलालेख तालाब के किनारे लगवाया। रोलाहेड़ा के ठाकुर साहब ने बैसाख, श्रावण, भादवा और कार्तिक चार महीने शिकार न खेलने की प्रतिज्ञा ली। महावीर जयन्ती, पार्श्वनाथ जयन्ती तथा जैन दिवाकर जी महाराज के आने-जाने के दिन जीवदया पालने का नियम लिया। शराब पीना तो उन्होंने चार वर्ष पहले ही त्याग दिया था। ओछड़ी के ठाकर साहब ने प्रत्येक अमावस्या तथा महावीर जयन्ती एवं पार्श्वनाथ जयन्ती के दिन शिकार न खेलने की प्रतिज्ञा ली। इस प्रकार चारों ठाकरों ने अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार दृढ संकल्प पूर्वक प्रतिज्ञाएं लीं। ___ ओछड़ी से निम्बाड़ा, मन्दसौर, जावरा, नामली आदि स्थानों पर होते हुए रतलाम पधारे। रतलाम चातुर्मास में तपस्वी श्री मयाचन्द जी महाराज ने ३८ दिन की तपस्या की। 'तपस्या की पूर्णाहुति (श्रावण शुक्ला १०) के दिन महाराज श्री ने 'मनुष्य जीवन' पर सारगर्भित प्रवचन फरमाया। इस दिन हलवाई, तेली, कुम्हार, कसाई आदि ने अपना कारोबार बन्द रखा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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