SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ डॉ. कोठिया पूर्ण पुरुषायुष प्राप्त करें • डॉ. गणेशीलाल सुथार, जोधपुर वि० वि०, जोधपुर भारतीय न्यायशास्त्रका विद्यार्थी होनेके कारण मैं अपने स्नातकोत्तर अध्ययनकालसे ही जैनतर्कशास्त्रके सुप्रतिष्ठित विद्वान् न्यायाचार्य डॉ. दरबारीलालजी कोठियाके नामसे परिचित रहा हूँ। इस वर्ष सितम्बर-अक्टूबरमें विश्वविद्यालय अनुदान आयोगकी सहायतासे सागर-विश्वविद्यालय (म. प्र.) के संस्कृतविभाग द्वारा आयोजित 'अखिलभारतीय उच्चस्तर न्यायदर्शनप्रशिक्षणसत्र' में डॉ. कोठियाजीके प्रथम दर्शन और उनके साथ विचार-विमर्श करनेका अवसर प्राप्त हआ। उनके उसमें 'अनमान' पर दो महत्त्वपूर्ण व्याख्यान सुननेका सौभाग्य भी मिला। न्यायाचार्य डॉ. कोठियाजी पूर्ण पुरुषायुष प्राप्त करें, उनके अभिनन्दन ग्रन्थ-समर्पणके अवसरपर मेरी हृदयसे शुभ कामना है कि इनके कृतित्व और सूदीर्घ साधनासे तर्करसिक विद्वानोंको सामान्यतया भारतीय न्यायशास्त्र में और विशेषतः जैनतर्कशास्त्रमें अवगाहन करने के लिये अवश्य ही प्रेरणा प्राप्त होगी। छात्रोंके प्रति उदारभाव • डॉ० सनतकुमार जैन, जयपुर परमश्रद्धय न्यायाचार्य डाक्टर पं० कोठियाजीकी लेखनशैली, साहित्य-सेवा एवं धार्मिल आस्थासे तो सर्व समाज परिचित ही है। इसके साथ-साथ उनकी सहज उदारतासे जैन व जैनेतर समाज भलीभाँति प्रभावित है। इसी उदारतासे ओत-प्रोत पंडितजीकी शिष्य परम्परा देश-विदेशमें पथभ्रष्टोंको मार्ग-दर्शनका कार्य कर रही है। ज्ञान और दयाके धनी पंडितजीके पास नित्य नये ज्ञान-पिपासू और अर्थ-पिपासु छात्र आते हैं और पंडितजी अपनी सहज उदारता और स्नेहसे उन्हें यथोचित लाभ प्रदान करते हैं। पंडितजीकी सहज उदारताके वे दृश्य मुझे कभी नहीं भूलते, जिन्हें प्रत्यक्ष मैंने देखा है । इनका गार्हस्थ्य जीवन सादा और सौम्य है । सचमुच ग्रन्थोक्त चतुर्थकालके प्रत्यक्ष सद्गृहस्थ हैं। इस सुअवसरपर मैं अपनी हार्दिक मंगल कामनोंको व्यक्त करते हुए कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। विद्वत्ताका सही उपयोग .श्री कपूरचन्द्र वरैया, लशकर न्यायाचार्य डॉ० दरबारीलालजी कोठियाने साहित्य एवं समाजकी जो सेवाएँ की है वह अविस्मरणीय है । उन्हें समाज कथमपि भुला नहीं सकता। - डॉ० कोठियाजी एक हंसमुख, सरल व सौम्य स्वभावके व्यक्ति हैं। जो एक बार आपके सम्पर्कमें आ जाता है वह प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। जब पूज्य क्षु० गणेशप्रसादजी वर्णीका चातुर्मास ग्वालियर क्षेत्रमें हआ. उस समय विद्वत-सम्मेलनमें कोठियाजीका भी नगरागमन हआ, तब अपरोक्ष दर्शनका सौभाग्य हमें मिला । सम्मेलनकी कार्यवाही चलाने एवं उसके दिशा-निर्देशनमें आपका योगदान सराहनीय था। विद्वान् होना कदाचित् सरल है, पर उस विद्वत्ताका उपयोग विरल है। विद्वान् होनेके साथ २ विद्वानोंकी कद्र करना भी आप जानते हैं। स्व० डॉ० नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्यकी कृति 'तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा' के सम्पादन, प्रकाशन तथा अर्थ-संग्रहमें आपको पर्याप्त परिश्रम करना पड़ा, यह आपकी निस्पृह भावनाका प्रतीक है । .. आप दीर्घायु हों तथा स्वास्थ्य-लाभ करते हुये इसी प्रकार जैन समाज व संस्कृतिकी सेवामें अग्रणी रहें, यह कामना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy