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________________ जैन-दर्शनके अप्रतिम विद्वान् .५० गरीबदास जैन, कटनी श्री कोठियाजी उच्च श्रेणीके विचारशील विद्वान् हैं । आपने कितने ही संस्कृत तथा प्राकृत ग्रन्थोंका गम्भीर अध्ययन करके उनके महत्त्वको प्रकट कर जैन साहित्यको महान सेवा की है । पंडितजीकी शैली स्पष्ट है, निश्चय दृढ़ है और चरित्र उच्च है। अपने शिष्योंके लिए उज्ज्वल आदर्श है। अपनी कुशलता और अविधान्त परिश्रमशीलतासे उन्होंने जैन साहित्य-जगतको अपनी अनुपम कृतियाँ भेंट की हैं। ऐसे आदर्श समाज-सेवी और समाज-हितैषी व्यक्तिके सम्मानमें प्रकाश्य अभिनन्दन ग्रन्थके समर्पण-क्षणोंमें उन्हें मेरी हार्दिक मंगल-कामनाएँ हैं । पंडितजीके अनुरूप ही पंडितानीजी .श्रीमती सुभद्रा जैन, टीकमगढ़ ___बहुत दिनोंसे श्रद्धेय पं० दरबारीलालजी कोठिया वाराणसीका नाम सुन रखा था। एक बार मेरे पतिदेव (पं. कमलकुमारजी शास्त्री) पपौराजीके किसी कार्यसे बनारस गये थे। जब वे लौटकर आये तो मैंने बनारसके समाचार पूछते हुए कहा कि वहाँ आप किन-किनसे मिले । इसी प्रसङ्गमें उन्होंने एक घटना सुनाई कि शामको जब हम भदैनीके मन्दिरमें दर्शन कर रहा था तो वहीं श्रद्धय दरबारीलालजी मुझे मिल गये । कुशलक्षेम पूछनेके बाद बोले-भाई कमलकुमार घरपर आना और सुनो, कल भोजन घरपर ही करना । मैंने स्वीकारता दे दी । वे बोले कितने बजे आओगे । मैंने १० बजेका समय दे दिया। दूसरे दिन मैं नहा-धोकर १० अजे पंडितजीके घर पहुँच गया। दीपावलीका समय था । बाईजी (ध०प० पं० दरबारीलाल जी) सफाईके कार्यों में व्यस्त थीं। मैं पंडितजीके पास बैठ गया और चर्चा करने लगा । बैठे-बैठे २ घण्टे हो गया। १२ बज गये । भोजनकी कोई तैयारी नहीं । अन्तमें मैंने ही कहा कि मैं भोजन करूँगा। कल आपने निमन्त्रण कर दिया था। मैं आ गया। तब याद आया पंडितजीको, वह उठे और बाईजीसे बोले कि अरे सुनो तो, कल मैंने इन्हें भोजनके लिए कह दिया था। मैं तुमसे कहना ही भूल गया। बेचारी घबड़ाई जल्दी स्नान किया और भोजन बनानेमें जुट गयीं । पश्चात् हम और पण्डितजी भोजनको बैठे, बाईजी मुस्कराती जाती और भोजन परोस रही थी। हँसकर बोलीं-आजका निमन्त्रण कैसा रहा । मैंने कहा आजके भोजनमें जो आनन्द आ रहा है वह शायद भी कभी आये । पण्डितजी भी हंस पड़े। जब मैंने अपने पतिदेवसे यह कहानी सुनी तो मैं बोली कि-'पण्डितानी पण्डितजीसे नाराज क्यों नही हई कि पहले क्यों नहीं बताया कि मैं निमन्त्रण कर आया हूँ ।' मेरे पति बोले कि-'बाई जी तुम जैसी या अन्य महिलाओं जैसी थोड़ी हैं कि जरा सी बातको लेकर नाराज हो जावें । वे बड़ी गम्भीर, प्रसन्नचित्त एवं मृदु स्वभावी है । वे कभी नाराज होना जानती ही नहीं । दोनों प्राणी बड़े प्रेमी एवं स्नेही हैं । इसके बाद श्री सिद्धक्षेत्र अहारजीके वार्षिक मेलेके अवसरपर महिला सम्मेलन हुआ और उसकी संयोजिका मुझे बनाया गया । अध्यक्षा नियुक्त हई श्रीमती पं० चमेली बाईजी ध० प० पं० दरबारीलालजी कोठिया वाराणसी। तब साक्षात उनके दर्शन हुए। श्रद्धय पं० दरबारीलालजी एवं उनकी सहधर्मिणी वास्तवमें उनके अनुरूप ही हैं । बड़ा सरल स्वभाव, वात्सल्यपूर्ण हृदय, हास्ययुक्त मुख-मुद्रा एवं प्रसन्नचित्त दोनों प्राणियोंका एक-सा व्यवहार देखनेको मिला। आज पण्डितजीके अभिनन्दन-समारोहपर मुझे अपार प्रसन्नता है मैं आपके और आपकी सहधर्मिणीके दीर्घ जीवनको मंगल-कामना करती हूँ। -४१ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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