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________________ क्षमा और मार्दवके धनी .श्री महताब सिंह, देहली __डॉक्टर कोठिया आजके युगमें सौम्यता, संभाषणमें मृदुता व सरलता और रहन-सहन में बिल्कुल सादगी (इतनी सादगी कि कोई कह भी नहीं सकता कि यह इतने बड़े विद्वान् होंगे)तथा पाण्डित्य, सब गुणोंका एक जगह एकत्रित होना बहुत कठिन है और फिर जरा भी मान नहीं, मानों दश धर्मोमें क्षमा और मार्दवके धनी हैं। मेरेपर डॉक्टर साहबका उपकार भी है। उन्होंने मझे कुछ दिन धर्म-ज्ञान भी दिया था । भावना है और भगवान से प्रार्थना है कि ऐसे विद्वान समाज में धर्मकी सेवा चिरंजीव होकर करते रहे ताकि धर्मप्रसारण व धर्मवद्धि होती रहे। मेरे पूज्य चाचा डॉ० कोठियाजी • डॉ० महेन्द्र कुमार जैन, सोरई कोठियाजीने अपने पूर्वजोंकी जन्मभमि तथा ननिहालके ग्राम सोरई में जीवनका आरम्भ बिताया और यहीं रहकर आरम्भिक शिक्षा प्राप्त को । कोठियाजोने समाज, धर्म और साहित्यको सेवामें जो योगदान किया उसने उन्हें यशस्वी बना दिया। आज भी वे ७२ वर्षकी उम्रमें भगवान सुपार्श्वनाथ और भगवान् पार्श्वनाथकी जन्मभमि काशीमें रहते हए उक्त तीनोंकी सेवा करने में तत्पर हैं। मैंने उन्हें निकटसे देखा कि वे इन कार्योंमें शिथिल या प्रमादी नहीं पाये गये। पूरी कर्तव्यनिष्ठा और निःस्वार्थभावसे उनकी सेवामें लगे रहते हैं। दूसरी बात कोठियाजी में जो मैंने देखो वह यह कि उन्हें विद्यार्थियोंसे काफी स्नेह है । वे उनकी कठिनाइयोंको जानते हैं क्योंकि उन्होंने स्वयं भी इन कठिनाइयोंको झेला है । वे उन्हें स्वयं अथवा दूसरोंसे छात्रवृत्ति आदि द्वारा सहायता करते रहते हैं । वे छात्रोंको अध्ययनशील, कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार, परिश्रमी और कृतज्ञ बनने की सदैव प्रेरणा करते हैं। कोठियाजीमें मैंने एक चीज और देखी वह यह कि उनकी कथनी और करनी में अन्तर नहीं पाया । वे चाहे विद्वत्परिषद के अध्यक्ष रहे हों या वर्णी ग्रन्थमालाके मंत्री रहे हों, या वीर-सेवा-मन्दिर-ट्रस्टके मंत्री, सभी पदोंपर रहकर निष्ठासे कार्य किया है और करते हैं। मैं अपनी और अपने परिवारकी ओरसे शुभकामनाओं सहित श्रद्धा-सुमन अर्पित करता हूँ। कष्टहरण पण्डितजी .श्री शोलचन्द मोदी, नरिया, वाराणसी डॉ० कोठियाजीको दार्शनिक पंडित कहा जाता है। परन्तु उनमें जो विशेषता है वह है दूसरेके कष्टको अपना कष्ट समझना और उसके निराकरण में सहयोग करना। उनकी सबसे बड़ी यही दार्शनिकता है। मैं श्रद्धेय कोठियाजीके प्रति उनके अभिनन्दनके क्षणोंमें अपने श्रद्धा-पुष्प अर्पित करता हआ उनके दीर्घायुष्ककी कामना करता हूँ। भावुक गुरुजी .श्री बाबूलाल जैन फागुल्ल, वाराणसी । आदरणीय कोठियाजी उन इने-गिने लब्धप्रतिष्ठित विद्वानोंमेंसे एक हैं, जिन्होंने अपनी प्रतिभाके बलपर जैन न्याय, दर्शनका विशाल अध्ययन कर महत्त्वपूर्ण कार्य किए हैं। वे लेखनीके धनी हैं, साथ ही परदःखकातर भी, तनिक भी आत्मीयता होनेपर वे उसके लिए सब कुछ करनेको उद्यत रहते हैं। भावुक इतने हैं कि हरेककी बात मान लेते हैं । चाहे बादमें पश्चात्ताप क्यों न करना पड़े। यह उनकी महानता है। वे मेरे गुरु हैं । बचपनसे ही मुझे अपार स्नेह मिला है। ऐसे महान विद्वान के प्रति अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करता हुआ उनके दीर्घ-जीवनकी कामना करता है ताकि वे निरन्तर साहित्य-साधनामें लीन रहें और हम सबको मार्ग-दर्शन मिलता रहे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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