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________________ कर्मठ विद्वान् .पं० रतनचन्द कासिल शास्त्री, रहली कोठियाजी एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने समाज और साहित्यकी बहत सेवा की है। अनेक संस्थाओं में उन्होंने जीवनदान दिया है। वे जब पपौरा विद्यालयमें अध्यापक थे, तब मैं उनका छात्र था। उनके निकट जो ज्ञान अजित किया, वह आज भी मझे सहायक हो रहा है। पिछले वर्षकी बात है। पपौराका विद्यालय कई वर्षोंसे बन्द पड़ा था। गतवर्ष वहाँपर पञ्चकल्याणक-प्रतिष्ठाका आयोजन हआ था, उसमें आप भी पधारे हए थे । आपने अपने प्रभावक भाषण द्वारा विद्यालयके संचालनपर जोर दिया, और स्वयं ५ हजार रुपया विद्यालयको दान देकर ५० हजारका उसका तत्काल कोष बनवा दिया, जिससे विद्यालय चालू हो गया, ऐसी है आपकी कर्मठता। सादा जीवन और उच्च विचार ये दोनों आपके जीवन-साथी हैं। वास्तवमें आप उनकी प्रतिमति हैं । आपकी अद्भुत कार्यक्षमता, विलक्षण प्रतिभाका प्रभाव समाजपर अवश्य पड़ता है। मेरा उन्हें शत-शत अभिवन्दन है और हार्दिक श्रद्धा-सुमन समर्पित हैं। समाजके भूषण •पं० पूर्णचन्द्र सुमन, दुर्ग न्यायाचार्य डॉ० पं० दरबारीलालजी कोठियासे मैं लगभग २० वर्षोंसे परिचित हैं। उनकी विद्वत्ता, सरलता, निरभिमानता और सौम्य स्वभावका मुझपर गहरा प्रभाव पड़ा है। एक बार दुर्गकी समाजके निमन्त्रणपर पर्यषणमें दुर्ग पधारे थे। उसके बाद भी वे यहां कई बार आये । समाजपर उनके प्रवचनोंका गहरा प्रभाव पड़ा । विद्वत्ताके साथ निर्दोष चारित्रका पालन सोनेमें सुगन्धि है । मैं आपके दीर्घ-जीवनकी शुभ-कामना करता हूँ। जैन जगतकी अमूल्य निधि •प्रो० विनय कुमार जैन, दमोह (म०प्र०) जैन दर्शन, न्याय एवं साहित्यके प्रकाण्ड विद्वान् पं० प्रवर परम श्रद्धेय कोठियाजी द्वारा जैनधर्म, संस्कृति एवं साहित्यके उन्नयन तथा प्रसारमें किये गये महान योगदानके लिए सम्पूर्ण भारतीय जगत उनका सदैव ऋणी रहेगा। डॉ० कोठियाजी चिरजीवी हों, हमारे अन्तसकी यही भावना है। उनका अविस्मरणीय योगदान •श्री देव कुमार जैन सहारनपुर न्यायाचार्य डाक्टर कोठियाने हमारी समाजके लिए अविस्मरणीय एवं मूल्यवान योगदान दिया है । ठोस तत्त्व विचार और अनुसंधानपूर्ण साहित्य निर्माण उनकी देन है। उनका जीवन बहुत सात्विक, सरल व चारित्रवान् है। प्रकृति व व्यक्तित्व शान्त व संयमित है। श्रद्धय डा० कोठिया जब वीर सेवा मन्दिर, सरसावा (सहारनपुर) में थे, तब वे मेरे पूज्य पिता स्व० राय साहब ला० प्रद्युम्न कुमारजीके पास आते-जाते रहते थे। वे समाजके आमंत्रण पर पर्दूषण आदि के अवसरों पर भी सहारनपुर आये। उनकी विद्वत्ता, सरलता और निरभिमानतासे न केवल पिताजी प्रभावित रहे, अपितु समाज भी प्रभावित है। उनसे मेरा और मेरे परिवारका निकटका सम्बन्ध रहा है । उनके हार्दिक अभिनन्दनके साथ उनके दीर्घ जीवनकी कामना करता हूँ। -५०२ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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