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________________ आजतक नहीं भूलता । दीपावलीका अवसर था । खूब पटाके खरीदे गये और हम सब छोटोंने उन्हें छोड़ा। फूफाजी के साथ बिताई वह दीवाली अब तक मानसपर अंकित है । अनेक ग्रन्थोंके रचयिता समर्थ विद्वान् । पर कितने सहज, सरल । अन्यके गुणोंके प्रबल प्रशंसक । बरस-पर-बरस बीतते गये । हम बच्चे प्रौढ़ हो गये और गुरुगंभीर फूफाजी ज्ञानबृद्ध । उनका संपूर्ण जीवन निरन्तर विकासके संघर्ष की कहानी है । प्रगति के अनेकों सोपानोंको पार करते हुए फूफाजी बनारस हिन्दू विश्वविद्यालयमें रीडर के पदपर आसीन थे, डुमरांवबाग कालोनी वाला उनका 'चमेली कुटीर' बनकर खड़ा ही हुआ था कि मैं अपने पति व बच्चों के साथ अपनी ननद के विवाह के कपड़े व वर्तन खरीदने बनारस गई। उनकी नियमित चर्याने मुझपर गहरा प्रभाव छोड़ा। अपने अध्ययनकक्षकी स्वयं ही सफाई करते । अपने वस्त्र धोते, स्नानकर, पूजनकी सामाग्री सँजोकर मन्दिर जाते । वे मुझे संत जैसे प्रतीत होते । हम लोग ठहरे मनमौजी, खरीददारी के लिए घूमे, पिक्चर देखी । एकदिन मेरे पति पूछ बैठे - 'फूफाजी, अच्छी चाट कहाँ मिलती है बनारस में ?" ऐसा कठिन प्रश्न तो विद्यार्थीने उनसे आजतक नहीं पूछा होगा । उनके धर्मसंकटको मैं भाँप गई । मैंने कहा - 'फूफाजीको भला बाजारकी चीजोंका स्वाद क्या मालूम ।' पर जाने कैसी वेदना मेरे फुआ और फूफा के चेहरों पर पड़ी । मानों कह रहे हों कि बच्चोंकी ऐसी अटपटी माँगोंको पूरा करनेका अवसर हमें मिल ही कहाँ पाया है मनमें एक हूक-सी उठी कि काश ! इस अभावको भरनेकी सामर्थ्य हममें होती । । कटनी में हुए पंचकल्याणक महोत्सव के अवसरपर फूफाजी कटनी आये थे । सिर में बहुत पीड़ा थी और बनारस शीघ्र ही जाना है, कह रहे थे । मैंने जिद कर ली कि रात में तो नहीं जाने दूँगी । डॉ० ने देखकर कहा सायनसका अटैक है । रातकी गहरी नींदने प्रातः उन्हें पूर्ण स्वस्थ कर दिया, और वे चले गये । कुछ वर्षों बाद उन्हें मस्तिष्ककी पीड़ाके कारण बहुत कष्ट उठाना पड़ा। अभी गत अक्टूबर सन् १९८२ में उन्हें देखा, तो मनको फिर पीड़ा हुई । समयकी लेखनीने ललाटपर रेखाएँ खोच दी हैं । सीधी कमर कुछ झुक आई है । पर अकेले ही सागर विश्वविद्यालयमें व्याख्यान देने जा रहे थे। ऐसी है फूफाजी की कर्मठता और कर्तव्यनिष्ठा । वे बुन्देलखण्ड की माटीके ऐसे उज्ज्वल हीरे हैं, जिसकी प्रभासे जन जगत आलोकित है । वे शतायु हों, हमें उनकी सत्संगतिका अवसर मिलता रहे, और एक बेटीकी तरह सेवाका सुख । ध्रुव तारेकी तरह यशस्वी हो उनका जीवन । कर्मयोगी कोठियाजी • श्री मनोहरलाल वकील, बुलन्दशहर मेरा परिचय डॉ० दरबारीलालजी कोठियासे करीब २० वर्ष पुराना है । पं० जुगलकिशोरजी मुख्तारके सगे छोटे भाई श्री रामप्रसादजी जैनकी पुत्री एवं डॉ० श्रीचन्द जैन एटा निवासीकी सगी छोटी बहन श्रीमती गुणमाला जैन मेरी पत्नी हैं और डॉ० कोठियाजी पं० जुगल किशोर जीके घोषित धर्मपुत्र हैं । उनका डॉ० श्रीचन्द जैन एटा निवासीके यहाँ विवाह-शादियों में कई दफा आना जाना हुआ। मेरा व्यक्तिगत परिचय डा० कोठियासे वहीं हुआ । मेरा भी थोड़ा शास्त्रीय अध्ययन रहा है और साहित्यिक प्रेम भी है । अनेक विषयोंपर मेरा डॉ० कोठियासे वार्तालाप हुआ । मैंने सदैव ही डॉ० कोठियाको एक निपुण विद्वान् शास्त्रवेत्ता व सुलझा हुआ तर्कयुक्त वक्ता पाया । डॉ० कोठियाजी सच्चे अर्थो में कर्मयोगी हैं । उनका जीवन हमारे लिये निरन्तर कार्यरत रहने और मानवमात्रको निःस्वार्थ सेवा करनेके लिये प्रेरित करने वाला प्रकाश है। मैं अपनी शुभकामनाएँ डॉ० कोठियाको अर्पित करता हूँ । Jain Education International - ५०१ - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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