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________________ अर्थात् जिन्हें तिर्यञ्च भी अतिशय भक्तिके साथ नमस्कार करते हैं और अपनी अव्यक्त वाणी द्वारा गुणगान करते हैं । जिनके चरणोंके दर्शन करनेपर भव्यजीव दुर्गतिको प्राप्त नहीं होते तथा जो पावापुरमें इन्द्र द्वारा अचित हैं और लोकके पापोंके नाशक हैं वह श्री वीरजिनेन्द्र दिगम्बर शासनकी सदा रक्षा करेंलोकमें उसके प्रभावको प्रख्यापित करते रहें। इन समस्त उल्लेखों एवं कथनोंसे पावापुरकी पावनता और उसका सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक महत्त्व लोकके लिये स्पृहणीय हो तो कोई आश्चर्य नहीं है । स्थिति __थह पावापुर विहार प्रान्तमें पटनाके पास है और गुणावा अतिशय क्षेत्रसे १३ मील है । भारतवर्षके समस्त जैन बन्धु वन्दनार्थ वहां हर वर्ष जाते हैं। कार्तिकवदी अमावस्याका वहाँ वीर निर्वाणोपलक्ष्यमें प्रति वर्ष एक बड़ा मेला भरता है, जिसमें सहस्रों जैन व अजैन भाई शामिल होते हैं और बड़ी भक्ति करते हैं । ऐसे पवित्र स्थानकी वन्दना करना, दर्शन करना और पूजा करना निश्चय ही हमारी कृतज्ञता और श्रद्धाका द्योतक है और पुण्य संचयका कारण है। भगवान् महावीरके निर्वाण-दिवसके उपलक्ष्यमें प्रचलित दीपावलीपर उसकी विशेष स्मृति होना और भी स्वाभाविक है । भ० महावीर अन्तिम तीर्थङ्कर होनेसे उनकी इस पावन निर्वाणभूमि पावापुरका समग्र जैन साहित्यमें अनुपम एवं महत्वपूर्ण स्थान है । और इसलिए वह भारतीय जनताके लिए सदैव अभिवन्दनीय है । -४७९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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