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________________ नई पीढ़ीके निर्माता .पं० नागेन्द्र शास्त्री, श्रवणवेलगोला श्री दरबारीलाल कोठियाजीने अपने आपको जीवनभर कठोर परिश्रमसे जो धार्मिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक सेवामें निज तन, मन, धनसे खपा दिया है वह अत्यन्त प्रशंसनीय और अनुकरणीय है। आपने अगणित छात्रवंदको धार्मिक, आध्यात्मिक और लौकिक शिक्षण द्वारा ज्ञानज्योतिसे उज्ज्वल बनाकर जैन धर्मको अक्षण्ण बना दिया है। आपने अपने सरल सहज स्वभावमे सारे भारतवर्षीय विद्वान समाजको अपने जीवन और कृतिरत्नोंसे प्रभावित-प्रचोदित किया है। इस पंचम कालमें आप जैसे महान् व्यक्ति विरल __आपने अपनी सुदीर्घ दृष्टि और निःस्वार्थभावसे जनकल्याणके लिए विविध क्षेत्रोंमें जो जो कार्य सम्पन्न किया है वह अजर अमर है । इससे प्रभावित अनेक संघ-संस्थाओंने आपको अनेक उपाधियाँ, स्वर्णपदक, प्रशंसापत्र तथा अमूल्य धनराशि समर्पणकर कृतज्ञता प्रकट की है, सन्मान दिया है । ऐसे नव-पीढ़ीके निर्माता; नव-समाजसेवकों के प्रेरणास्रोत श्रीमान् डॉ० दरबारीलाल कोठियाजी ! आप चिरंजीवी हों, आप सेवाधर्मका लाभ समाजको निरन्तर मिलता रहे, श्री मज्जिनेन्द्रदेवसे एवं श्री गोम्मटेश्वर बाहुबलि स्वामीसे इस शुभ संदर्भपर हम आपको दीर्घायु एवं यशोभिवर्धनाकी शुभ-कामना करते हैं। सरलताकी प्रतिमूर्ति •ब्र० पं० खुन्नीलाल (ज्ञानानंद) जैन, भदौरा वाले, टीकमगढ़ वास्तव में डा० कोठियाजी, अपने गरिमापूर्ण व्यक्तित्व एवं कृतित्वके कारण समाजमें एक असाधारण कोटिके विद्वद्रत्न हैं । वे नैसर्गिक मृदुता और सरलताकी तो प्रतिमूर्ति ही है । समाज उनकी विगत ४५ वर्षीय सेवाओंसे उपकृत है। अतएव उसने स्थायी रूपसे रहने वाले इस अभिनन्दन-ग्रन्थीय कार्यसे, अपनेको उपकार-भारसे लघु करनेके लिए इस प्रशस्त कार्यको योजना बनाई है, जो समयोचित और आवश्यक है । मैं पुनः इस योजनाका स्वागत करता हूँ। अतः इस परमावश्यकीय कार्यके होने में मेरी अन्तस्तलीय शुभकामनाएँ प्रेषित हैं । जीवन-पथ-प्रदर्शक • डॉ० धर्मचन्द्र जैन, कुरुक्षेत्र श्रद्धेय डा० दरबारीलालजी कोठिया मेरे शुभचिन्तक गुरुजनोंमेंसे एक हैं । आपके सान्निध्यमें रहने के अनेक सुअवसर मुझे प्राप्त हुए हैं । मधुर भाषण, मृदुता, दानशीलता, सारल्यता एवं दूसरेके दुःखको अपना समझना आपके स्वाभाविक गुण हैं । आप विद्यार्थियोंके परमहितचिन्तक एवं जीवन-पथ-प्रदर्शक हैं। आपका जीवन संघर्षमय रहा है। हमारा समाज एवं अनेक सामाजिक संस्थाएँ आपकी निःस्वार्थ सेवासे सदैव लाभान्वित रही हैं। आप कठिन परिश्रमी, एक सुयोग्य लेखक तथा प्रभावशाली वक्ता हैं। जैन दर्शनके प्रमख विद्वानोंमेंसे आप एक हैं । जैन न्याय-दर्शनके क्षेत्रमें आपका अक्षण्ण योगदान है। मैं उनके दीर्घ एवं स्वस्थ जीवनके लिए प्रार्थना करता हूँ, ताकि आपके द्वारा समाज एवं धर्मको सतत अभिवृद्धि हो। -२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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