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________________ आचार्य शान्तिसागरका ऐतिहासिक समाधिमरण प्राग्वृत्त १८ अगस्त १९५५ का दिन था। श्रीसमन्तभद्र संस्कृत-विद्यालय आरम्भ हो चुका था। चा० च० आचार्य शान्तिसागरजी महाराजके द्वारा १४ अगस्त ५५ को श्रीकुंथलगिरि सिद्धक्षेत्रपर ली गई 'सल्लेखना' के प्राप्त समाचारसे समस्त अध्यापकों तथा छात्रोंको एक छोटेसे वक्तव्यके साथ अवगत कराया। सबने मौनपूर्वक खड़े-खड़े नौवार णमोकारमंत्र' का जाप्य किया और महाराजकी निर्विघ्न सल्लेखना (समाधिमरण)के लिये सश्रद्ध शुभकामनाएं की। विद्यालयकी पढ़ाई चालू ही हुई थी कि महासभाके आफिसमें शीघ्र ही आनेके लिये फोन आया । हम वहाँ पहुँचे। वहाँ स्थानीय समाजके ४-६ प्रतिष्ठत महानुभाव भी थे। सबको बताया गया कि 'पं० वर्धमानजी शास्त्री शोलापुरका आज तार आया है, जिसमें उन्होंने सूचित किया है कि आचार्य महाराजने १७ अगस्त ५५ को ३॥ बजे मध्याह्नमें 'यम-सल्लेखना' ले ली है । अर्थात् जलका भी त्याग कर दिया है-यदि बाधा हुई और आवश्यकता पड़ी तो उसे लेंगे।' यह वे बता ही रहे थे कि इतनेमें शोलापुरसे सेठ रावजी देवचंदका फोन आया। उसमें उन्होंने भी यही कहा । निश्चय हुआ कि सुबह और शाम प्रत्येक मन्दिरजीमें जप, ध्यान, शान्तिधारा, पूजा, पाठ आदि सत्कार्य किये जायें। दान, एकाशन आदि भी, जो कर सकें, करें। हमने महाराजके अन्तिम उपदेशोंको रिकार्डिङ्ग मशीन (ध्वनिग्राहकयंत्र) द्वारा रिकार्ड (ध्वनिग्रहण) कराने तथा फिल्म (महाराजकी समग्र क्रियाओंका छायाचित्र) लेनेका विचार रखा, जिसपर हम लोग कोई निश्चय नहीं कर सके और इस चिन्ताके साथ लौटे कि 'जो विभूति आज हमारे सामने है और जिसने हमारा असधारण उपकार किया है उसके कुछ दिन बाद दर्शन नहीं हो सकेंगे।' १९ अगस्तको बड़ौत (मेरठ) में आचार्य श्री १०८ नमिसागरजी महाराजका, जो आचार्यश्रीके प्रमुख शिष्य थे, केशलोंच था । विद्यालयके संस्थापक ला० मुन्शीलालजी जैन कपड़ेवाले तथा हम वहाँ गये । वहाँ महाराज नमिसागरजी भी आचार्यश्रीके सल्लेखनाग्रहणसे सचिन्त थे। २० अगस्तको हम बड़ौतसे दिल्ली वापिस आगये । २१ अगस्त रविवार १९५५ को आ० नमिसागरका पत्र लेकर श्री कुन्थलगिरि जानेका निश्चय हुआ। तदनुसार दूसरे ही दिन २२ अगस्तको देहरा-बम्बई एक्सप्रेससे १०-२० बजे रातको श्री कुंथलगिरिके लिये रवाना हुए। गाड़ी दिल्लीसे ठीक समयपर छूटी; किन्तु नई दिल्ली और होडलके बीच एक स्टेशनपर गाड़ी ७ घंटे पड़ी रही। मालम करनेपर ज्ञात हआ कि राष्ट्रपतिजीकी स्पेशल गाड़ी उधरसे दिल्ली आ रही है। २३ अगस्तका दिन गाडीमें ही सफर करते हए व्यतीत हुआ। कोटा, रतलाम, बड़ौदा, भंडौंच, अकलंकेश्वर, सूरत आदि स्टेशनोंपरसे गुजरते हुए २४ अगस्तको दिन में १॥ बजे बम्बई पहुँचे । तुरन्त घोड़ा १. जैन प्रचारक, सल्लेखनांक, अगस्त १९५५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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