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________________ यह षट्खण्डागमके निम्न सूत्रका संस्कृतानुवाद है"तसकाइया बीइंदिय-प्पहुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति" |-षट्ख० १-१-४४ । (२) 'आगमे हि जीवस्थानादिष्वनुयोगद्वारेणादेशवचने नारकाणामेवादी सदादिप्ररूपणा कृता ।'-तत्त्वा० पृ० ५५ । इसमें सत्प्ररूपणाके २५वें सूत्रकी ओर स्पष्ट संकेत है । (३) 'एवं हि उक्तमार्षे वर्गणायां बन्धविधाने नोआगमद्रव्यबन्धविकल्पे सादिवैससिकबन्धनिर्देशःप्रोक्तः विषम स्निग्धतायां विषमरूक्षतायां च बन्धः समनिग्धतायां समरूक्षतायां च भेदः इति तदनुसारेण च सूत्रमुक्तम्'-तत्त्वा० ५-३७, पृ० २४२ । यहाँ पांचवें वर्गणा खण्डका स्पष्ट उल्लेख है । (४) 'स्यादेतदेव मागमः प्रवृत्तः। पंचेन्द्रिया असंज्ञिपंचेन्द्रियादारभ्य आ अयोगकेवलिनः' -त० वा० पू० ६३ । यह षटखण्डागमके इस सत्रका अक्षरशः संस्कृतान वाद है"पंचिदिया असण्णिपंचिदिय-प्पहुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति"-षट्० १-१-३७ । इन प्रमाणोंसे असंदिग्ध है कि अकलङ्क देवने तत्त्वार्थवात्तिकमें षट्खण्डागमका अनुवादादिरूपसे उपयोग किया है। ५-शंका-मनुष्यगतिमें आठ वर्षकी अवस्थामें भी सम्यक्त्व उत्पन्न हो जाता है, ऐसा कहा जाता है, इसमें क्या कोई आगम प्रमाण है ? ५-समाधान-हाँ, उसमें आगम प्रमाण है । तत्त्वार्थवात्तिकमें अकलङ्कदेवने लिखा है कि पर्याप्तक मनुष्य ही सम्यक्त्वको उत्पन्न करता है, अपर्याप्तक मनुष्य नहीं और पर्याप्तक मनुष्य आठ वर्षको अवस्थासे ऊपर उसको उत्पन्न करते हैं, इससे कममें नहीं' । यथा 'मनुष्या उत्पादयन्तः पर्याप्तका उत्पादयन्ति नापर्याप्त काः। पर्याप्तकाश्चाऽष्टवर्षस्थितेरुपर्युत्पादयन्ति नाधस्तात् ।-पृ० ७।२, अ० २, सू० ३ । ६-शंका-दिगम्बर मुनि जब विहार कर रहे हों और रास्तेमें सूर्य अस्त हो जाय तथा आस-पास कोई गाँव या शहर भी न हो तो क्या विहार बन्द करके वे वहीं ठहर जायेंगे अथवा क्या करेंगे ? ६-समाधान-जहाँ सूर्य अस्त हो जायगा वहीं ठहर जायेंगे, उससे आगे नहीं जायेंगे। भले ही वहाँ गाँव या शहर न हो, क्योंकि मुनिराज ईर्यासमितिके पालक होते हैं और सूर्यास्त होनेपर ईर्यासमितिका पालन बन नहीं सकता और इसीलिए सूर्य जहाँ उदय होता है वहाँसे तब नगर या गांवके लिए बिहार करते हैं । कि जैसा आचार्य जटासिंहनन्दिने वराङ्गचरितमें कहा है: यस्मिस्तु देशेऽस्तमुपैति सूर्यस्तत्रैव संवासमुखा बभूवुः । यत्रोदयं प्राप सहस्ररश्मिर्यातास्ततोऽथा पुरि वाऽप्रसंगाः ॥-३०-४७ इसी बातको मुनियोंके आचार-प्रतिपादक प्रधान ग्रन्थ मूलाचार (गाथा ७८४) में निम्न रूपसे बतलाया है ते णिम्ममा सरीरे जत्थत्थमिदा वसंति अणिएदा। सवणा अप्पडिवद्धा विज्जू तह दिट्ठणठा या । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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