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________________ प्रमेयका समीक्षात्मक विस्तृत एवं विशद अध्ययन और आचार्य नरेन्द्रसेनका ऐतिहासिक परिचय उपस्थित करते हुए उनके मूल वक्तव्यको सम्भीर सूक्ष्मेक्षिकासे पाण्डित्यपूर्ण, किन्तु सरल, सुबोध भाषा-शैलीमें उपन्यस्त किया है, जिससे यथा प्रतिपादित विषय हस्तामलक बन गया है। इससे आचार्य कोठियाजीकी गहन गवेषणा-दृष्टि, व्यापक तथा तलस्पर्शी अध्ययनशीलता और तत्त्वार्थाभिनिवेशी सम्पादन मनीषा, तीनोंका एकसाथ विशद परिचय प्राप्त होता है। आशा है कि वे इस पुस्तकके आगामी संस्करणमें आचार्य नरेन्द्रसेन की मूल सामग्रीका प्रांजल हिन्दी अनुवाद भी सुलभ करा देंगे। ___ कुल मिलाकर दर्शनशास्त्रके प्रधान विषय-प्रमाण, प्रमेय, प्रमिति और प्रमाताका विशद और प्रामाणिक विवेचन इस ग्रन्थका प्रतिपाद्य है । धुरिकीर्तनीय जैन तार्किक आचार्य नरेन्द्रसेनका यह अनुपम सारस्वत अवदान भारतीय दर्शनशास्त्रको विशिष्ट उपलब्धि है। भारतीय दर्शनोंके तुलनात्मक अध्येता आचार्य कोठियाजीने इस गुढविषयात्मक कृतिको अपनी महत्त्वपूर्ण एवं सारार्थ प्रदर्शिनी प्रस्तावना द्वारा बोधगम्य बनाकर जनहितकी दृष्टिसे ततोऽधिक श्लाघ्य कार्य तो किया ही है, पाठालोचन-सहित विषय सम्पादनके क्रममें आधारभूत प्राचीन प्रतियों तथा इस संस्करण (प्रथम आवृत्ति, वीर निर्वाण संवत् २४८७) की विशेषताओंसे भी दार्शनिक पाठकोंको परिचित होनेका अलभ्य अवसर दिया है। बैदुष्य और श्रमसाध्य इस मूल्यवान सात्त्विक कार्यसे वैपश्चिती-विभषित सम्पादक आचार्य कोठियाजोके प्रति सम्पूर्ण दार्शनिक-जगत सदातन अधमर्ण बना रहेगा। EXPEPISणा -१०७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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