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________________ उनसे अनेक भेंटें हुई, जिनमें समाज के शिथिल अनुषंगोंपर चर्चा हुई। उन्होंने प्रेरणा देते हुए मुझसे कहा"बेटा बाहुबलि, तुम पत्रकार हो, समाजके चितेरे हो । समाजको बदलने में अपना आत्म-विश्वास व अपनी कलमको जगाओ । तुम्हारा रक्त मड़ावराकी माटीकी उपज है । निश्चित ही समाजके परिवर्तनमें सहायक होगा ।" मैं मूक हो उनके दर्शनका अनुयोगी बन सुनता रहा । आज अन्तरालके पश्चात हमें श्री कोठियाजी के वाक्य समाजमें परिवर्तन लाने के लिए चैतन्य करते हैं । अभिनन्दनकी मणिकाओंमें उस महान कर्मयोगीको यदि श्रद्धा-मणि समर्पित कर सकूँ तो मेरा अहो भाग्य है । श्री कोठियाजी तुम्हें शत-शत अभिवन्दन । बड़ी प्रसन्नताकी बात है कि परमपूज्य एलाचार्य मुनि विद्यानन्दजीके निर्देशसे उनका समाज अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पण करके सम्मान कर रहा है । यह सम्मान मेरी दृष्टिमें ऐसे विद्वानका है, जिसने निष्ठापूर्वक सभी क्षेत्रों में कार्य किया है। चाहे अध्यापन हो, साहित्यसाधना हो और समाजसेवा, सभी में उनका ईमानदारी और निस्पृहभावसे योगदान रहा है । उनकी संगिनी होने के नाते मैं उन्हें अधिक निकटसे जानती हूँ। कई ऐसे मौके आये, किन्तु वे उनसे विचलित नहीं हुए । अपने स्वाभिमान और निष्ठापर अडिग रहे । यहाँ मैं कुछ ऐसी घटनाओंको बताना चाहती हूँ जिनसे श्रीमान्‌जीका व्यक्तित्व धूमिल नहीं, उजागर हुआ है । सन् १९३७ की बात है । इन्होंने उस समय तक न्यायशास्त्री और सिद्धान्तशास्त्री पास किया था। एक वर्ष पूर्व ये दाम्पत्य-जीवन में बँध गये थे, और इसलिए आजीविकाकी चिन्तासे पपौराके वीर विद्यालय में पढ़ाना आरम्भ किया था। विद्यालयके यशस्वी मंत्री बाबू ठाकुरदासजी थे । वे बड़े कुशाग्रबुद्धि और कर्त्तव्यनिष्ठ थे, उनका सबके ऊपर बड़ा कड़ा अनुशासन था। एक बार वे कोठियाजीसे बोले कि 'आप storer काम कुछ दिनोंके लिए संभाल लीजिये, तब कोठियाजी बोले कि 'बाबू जी ! मैं इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहता ।' मंत्रीजी बोले- 'आप क्या इसे पचड़ा समझते हैं ?' कोठियाजीने उत्तर दिया कि 'हाँ, इसे मैं पचड़ा समझता हूँ ।' कोठियाजीने स्पष्ट करते हुए बतलाया कि बाबूजी बात ऐसी है कि बाजारसे तो चीजें इकट्ठी काँटेपर तुलकर आती हैं, और यहाँ रोज सामान तौलनेपर एक-एक छटाँक भी कम हो जाये तो सोलह दिन में १ सेर कम हो जायेगा, और इसे अधिकारी समझेंगे कि पंडितजीने अपने घर भिजवा दिया होगा । अतः यह बदनामी कौन मोल लेवेगा । मंत्रीजी कोठियाजीकी बात समझ गये । कोठारका काम प्रधानाचार्य पं० किशोरीलालजी शास्त्रीको सौंप दिया। मंत्रीजीपर इसका अच्छा असर पड़ा और कोठियाजी जब तक रहे, तब तक मंत्रीजीका उनके प्रति अधिक स्नेह और आदर भाव रहा । श्रीमान्जी कितने परिश्रमी हैं, यह उनकी दिनचर्या मे ज्ञात हो सकता है। स्वयं ४ बजे उठना व कोरे पेट एक लोटा पानी पीकर एवं हाथ मुँह धोकर पढ़ने बैठ जाना और सुबह छः बजे तक पढ़ना, उसके बाद घूमने जाना । नियमितरूपसे पूजन और सभी मन्दिरोंके दर्शन करना, यह उनकी रोजानाकी प्रवृत्ति थी । १० बजे खाना खाकर विद्यालय में चले जाना और ५ बजे तक वहाँ रहना । सायंका भोजन करने के बाद पं० राजकुमारजी साहित्याचार्यके साथ घूमने जाना । मन्दिरजीमें जाकर दर्शन करना और शास्त्र - प्रवचन करना और उसके बाद फिर अपनी पढ़ाई में लग जाना। रात्रि के १२ बजे तक पढ़ना और इस प्रकार न्यायाचार्य के चौथे व पाँचवें खण्डकी पढ़ाई करके उनकी परीक्षा देना । इसके साथ ही परीक्षाओंके समय १२ मेरी दृष्टि में हमारे श्रीमान्जी श्रीमती चमेलीबाई कोठिया Jain Education International - ८९ - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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