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________________ आस्थाका अभिनन्दन श्री नीरज जैन एम० ए०, सतना श्रवणबेलगोलमें सहस्राब्दि-प्रतिष्ठापना एवं महामस्तकाभिषेक महोत्सवके अवसर पर आचार्यों, मनिराजों और आर्यिका माताओंका विशाल संघ एकत्र हुआ था। कई सप्ताह तक इन साधुओंके लिए सामूहिक आगमवाचनाका आयोजन किया गया था। प्रतिदिन प्रातःकाल आठसे नौ बजे तक भट्टारक भवनमें नियमित रूपसे यह वाचना होती थी । श्रवणबेलगोल आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीकी तपोभूमि रही है। इसलिए उनका ही सरल एवं सारगर्भित ग्रन्थ 'द्रव्यसंग्रह' वाचनाके लिए विस्तारा गया। ब्रह्मदेवकी संस्कृत टीकाके आधारपर यह वाचना चलती थी। भट्टारक-भवनके सुन्दर प्रवचन-कक्षमें प्रायः सभी मुनिराज, कुछ आर्यिका माताएँ और थोड़ेसे श्रावक ही बैठ पाते थे । न्यायाचार्य पंडित दरबारीलालजी कोठिया समयके पूर्व प्रवक्ताको आसन्दीपर विराजते और अत्यन्त सरल पद्धतिसे आगमकी व्याख्या करते थे । ऐलाचार्य मुनि विद्यानन्दजी और भट्रारक चारकीर्ति स्वामीजी बीच-बीच में प्रश्नोत्तरके माध्यमसे प्रकरणको और भी सुग्राह्य और सरल बनाते चलते थे । ऐलाचार्य विद्यानन्द मुनिजीके आग्रहसे कोठियाजी महोत्सवके बहुत पहिले, जनवरी ८१ में ही सपत्नीक श्रवणबेलगोल आ गये थे । लगभग दो मास उनका वहाँ रहना हुआ । उनकी विवेचनाशैलीने और अथाह आगम ज्ञानने साधुओं और विद्वानोंको एक-जैसा प्रभावित किया । सदैव स्वच्छ और सुरुचिपूर्ण वस्त्रोंमें कोठियाजीका कोमल व्यक्तित्व, आकृतिपर अनवरत उपस्थित मन्द स्मिति और व्यवहारको शालीनता, हर मिलने वालेपर अपना पर्याप्त प्रभाव छोड़ती थी। जैन न्यायके मौलिक चिन्तकके रूप में उन्होंने पूरे विद्वत वर्गमें अपनी जो पहचान बनाई है वह इस मेलेमें, नये-नये लोगोंसे परिचय होनेपर सवाई हो गई थी। ___वहाँ जो लोग कोठियाजीसे प्रत्यक्ष परिचित नहीं थे, वे जरूर कुछ परेशानीका अनुभव करते थे । प्रायः होता यह था कि इस सामूहिक स्वाध्याय के बारेमें ज्ञात होनेपर, मुनियों-आर्यिकाओंके मुखसे कोठियाजीकी विद्वताकी प्रशंसा सुननेपर उनका मन व्याख्याकारको देखनेकी सहज जिज्ञासासे भर उठता था । इस बीच यदि किसीने कहीं रस्ता चलते कोठियाजीको दिखाते हुए उनका परिचय दे दिया तो देखने वालेको सहसा विश्वास नहीं होता। इतनी संक्षिप्त सी कायामें ऐसा विशाल चिन्तन और ज्ञान, ऐसे सरल व्यक्तित्व में खण्डन-मण्डनको अकाट्य तर्कणाओंका समावेश, लोगोंको सहसा संभव नहीं लगता था । जब उन्हें विश्वास करने पर मजबूर किया जाता कि पचाससे अधिक मुनिराजोंको स्वाध्याय करानेवाले यही पंडित दरबारी लाल कोठिया है, तब सहमतिमें सिर हिलाते हुए भी, कुछ लोगों के मुखपर यह भाव आ ही जाता था कि "नाम बड़े और दर्शन थोड़े।'' महोत्सवके बीच चामुण्डराय मण्डपमें कोठियाजीके अनेक प्रवचन-भाषण हए. तथा उनकी विद्वताके लिए उन्हें सम्मानित किया गया । डा० कोठियाके नामके साथ उनकी विद्वत्ताको बताने वाली अनेक उपाधियाँ हैं और इसी प्रकार भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में संघर्ष पूर्वक सफलताको अंकित करनेवाला है उनका पूर्व इतिहास । बुन्देलखण्डके एक छोटेसे गाँवमें जनमे दरबारीलाल बुन्देलखण्डी भाषाकी उस कहावतकी जीवन्त प्रतिमूर्ति है जिसके शब्द हैं "धुन रे धुनिया अपनी धुन, और काऊकी कछू न सुन ।" गहरी लगनके साथ अपने अभीष्ट सिद्धि के प्रयत्नों में लग जाना और प्रशंसाके पुष्प तथा आलो डे, उपेक्षा भावसे सहते हए अपने अभीष्टको परा - ६९ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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