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________________ बेटा उसे बुझने न दे, सतत प्रज्वलित रखे । बेटेने उस ज्योतिको बराबर तेल दे दे कर प्रज्वलित रखा। वाकई बेटा सपत निकला। हमलोग बडी देर में समझ पाये कि विद्वान बापसे विद्वान बेटेको उत्तराधिकारमें क्या मिला और बेटेने बापकी पूँजीको कैसे बढ़ाया। पारिवारिक जीवन-कोठियाके पारिवारिक जीवन के बारे में भी दो शब्द । कोठियाका परिवार पति-पत्नी तक ही सीमित है । सन्तान कोई नहीं है। सांसारिक दृष्टिसे यह दुर्भाग्यकी बात है। पति विद्वान्, पत्नी सुसंस्कृत, सुशिक्षित, सुशील । विद्वान् दम्पतिने दुर्भाग्यको हंसी-खुशी स्वीकार कर लिया और इस दुर्भाग्यको सौभाग्यके रूप में बदलने में जुट गये । किराये, पेंशन और फण्ड से इतनी आय हो जाती है कि निर्वाह होनेके बाद भी बहुत बच जाती है। उसे वे क्षेत्रों और संस्थाओंको दान देते रहते हैं। पत्नी अपने पतिके सत्संकल्पोंमें-साहित्य-सृजन, दान, तीर्थयात्रा आदिमें सहायक ही सिद्ध हुई, कभी बाधक नहीं बनी। सन्तोषी और विवेको दम्पति घरको स्वर्ग बना देते हैं, इसका दृष्टान्त मैं कोठियादम्पतिको मानता हूँ। परिवारमें शान्ति, सन्तोष और सहयोगका वातावरण मुखरित दिखाई पड़ता है कोठियाके गृहस्थ-जीवनमें । अप्रतिम दार्शनिक विद्वान्–भारतके दार्शनिक जगतमें एवं जैन विद्वानोंमें कोठियाका विशिष्ट स्थान है ! जैन विद्याकी विविध विधाओं में जैन न्याय और इतिहासके वे अप्रतिम विद्वान् है । उनकी अनूदित, सम्पादित और मौलिक रचनाओंकी सूची काफी लम्बी है । इन रचनाओंका अधिकांश जैन न्याय, दर्शन और उसके एक भाग प्रमाणशास्त्रसे सम्बन्धित है। 'जैन तर्कशास्त्रमें अनुमान विचार' तथा 'जैनदर्शन और प्रमाणशास्त्र परिशीलन' उनकी मौलिक कृतियाँ हैं। इनका परिशीलन करनेसे हमें कोठियाके जैनदर्शनके अधिकारपूर्ण ज्ञान और इतर भारतीय दर्शनोंके गहन अध्ययन एवं सूक्ष्म, गहरी पकड़का पता चलता है। जैन जगतने इस शताब्दीमें तीन दार्शनिक जैन विद्वानोंको जन्म दिया-पं० सुखलाल संघवी, न्यायाचार्य पं० महेन्द्रकुमार और डॉ० दरबारीलाल कोठिया। इन तीनोंका ही दार्शनिक योगदान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इनमें प्रारम्भके दो विद्वान दिवंगत हो चुके हैं, सौभाग्यसे कोठिया हमारे मध्य विद्यमान हैं और अपनी अनवरत कठोर साधना द्वारा जैनदर्शनका मन्थन करके अमत हमें दे रहे हैं। मैं ऐसे साधनारत साहित्यकारोंको 'साहित्यतपस्वी' कहता हूँ। समाज द्वारा आभार प्रदर्शन–अन्तमें मुझे हार्दिक प्रसन्नता है कि जैन समाज इस साहित्यतपस्वीकी जीवन व्यापी साहित्यिक और सामाजिक सेवाओंके प्रति अभिनन्दन ग्रन्थके रूपमें अपना आभार प्रगट करने जा रहा है। उनका अभिनन्दन निश्चय ही सरस्वती माताका अभिनन्दन है । वास्तवमें जैन समाज एक गुणग्राही समाज है। कोठिया जीवन भर समाज, शिक्षा और साहित्यके क्षेत्रमें सक्रिय रहे हैं। वे प्रवचनों, लेखों, अध्यापन और साहित्य सृजनके रूपमें समाज-सेवा करते रहे हैं । प्रस्तुत अभिनन्दन समाज द्वारा उनकी सेवाओंको सार्वजनिक मान्यता प्रदान करना है। अभिनन्दन उनके जीवनका एक अल्पकालिक पडाव है। उनके जीवन ऐसे पड़ाव कई बार, कई रूपोंमें आये। किन्तु इनसे कोठियाकी साहित्य-यात्रा रुकी नहीं; चलती रही है और अभी वर्षों तक चालू रहेगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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