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________________ आपकी प्रवचनशैली अनुपम है । सूक्ष्म तत्त्वोंका विश्लेषण आप बड़ी गंभीरतसे करते है । पयुर्षण पर्व तथा अन्यान्य उत्सवोंके समय आप जगह जगह निमन्त्रित होकर जाते रहते हैं। अखिल भारतवर्षीय दि० जैन विद्वत्परिषद्के अध्यक्ष रहते हए आपने स्व. डा० नेमिचन्द जी ज्योतिषाचार्य आराके द्वारा लिखित 'तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा' के चार भाग प्रकाशित कराये। विद्वत्परिषद्की आर्थिक स्थिति क्षीण होने पर भी समाजसे सहयोग प्राप्त कर उन भागोंका प्रकाशन ही नहीं किया, अपितु उनका विक्रय भी तत्परतासे करा दिया। अखिल भारतवर्षीय दि० जैन विद्वत्परिषदका शिवपुरीमें होने वाला रजत-जयन्ती अधिवेशन आपकी ही अध्यक्ष तामें हुआ था। उस समय कतिपय विद्वानोंकी आर्थिक क्षीणतासे द्रवीभूत हो आपने महावीर-विद्यानिधिकी स्थापनाका सुझाव दिया था तथा स्वयं भी उसमें एक हजारकी राशि प्रदान कर उसका प्रारम्भ कराया था। प्रकट करते हुए हर्ष होता है कि विद्वत्परिषद्, उस महावीरविद्यानिधिकी ओरसे साधन हीन विद्वानोंको यथासंभव सहायता पहुँचाती रहती है। उस महावीर-विद्यानिधिका पच्चीस हजारका फंड है। आपकी प्रकाशनसंबंधो पटुता प्रशंसनीय है। समाप्तप्राय जैसी अवस्थाको प्राप्त वर्णी ग्रन्थमालाके मंत्री बन कर आपने उसके अनेक स्थायी ग्राहक बनाये। जिससे जहाँ रुके हुए ग्रन्थोंका विक्रय हुआ, वहीं अनेक नवीन ग्रन्थोंका प्रकाशन भी हुआ । फलतः वर्णी ग्रन्थमाला पुनरुज्जीवित हो एक गणनीय प्रकाशन-संस्था बन गयी। जिस ग्रन्थका प्रकाशन आप अपने हाथों में लेते है, उसके प्रूफ संशोधनसे लेकर प्रस्तावना लेख तकका दायित्व ले लेते हैं। अभी हाल ५० वंशीधरजी व्याकरणाचार्यके द्वारा लिखित "जयपुर खानिया तत्त्वचर्चा और उसकी समीक्षा' के प्रथम भागको संपादन कर उसे प्रकाशित कराया है । नयनाभिराम प्रकाशन हुआ है। आपके अनेक महत्त्वपूर्ण लेखोंका एक बृहत संकलन "जैन दर्शन और प्रमाण शास्त्र परिशीलन" पिछले वर्षों में प्रकाशित हुआ है, जिसे विद्वत् वर्गमें अच्छा आदर प्राप्त हुआ है । आपका शोधप्रबन्ध "जैन तर्कशास्त्रमें अनुमान विचार' वीर सेवा मन्दिर ट्रस्टसे प्रकाशित हो चुका है । आदणीय कोठियाजी, प्रकृत्या सरल, शान्त और मृदु हैं। अपने सद्व्यवहारसे आप सबको आकर्षित कर लेते हैं। पारस्परिक सहकार आपके जीवनका लक्ष्य है। अनेकों छात्र आपसे उचित सहकार प्राप्त कर आगे बढ़े हैं। कितने ही नये लेखकोंकी रचनाओंको सुसंपादित एवं प्रकाशित करा कर उन्हें प्रोत्साहित किया है। माननीय डा० दरबारीलालजी कोठियाका अभिनंदन चिर-प्रतीक्षित था। उसका आयोजन करने वाली समितिको मैं साधुवाद देता हुआ उनके दीर्घायुष्क होनेकी मंगलकामना करता हूँ। जैनदर्शन, न्यायके प्रकाण्ड विद्वान् डॉ० नथमल टाटिया, लाडनू विद्वद्वर्य डॉ० दरबारीलाल कोठिया जैन दर्शन एवं न्यायके प्रकाण्ड विद्वान् है । उन्होंने अपना समग्र जीवन जिनवाणीको सेवामें व्यतीत किया है। उनके द्वारा सम्पादित एवं अनुदित जैन न्यायविषयक अनेक ग्रन्थ उनके कर्मठ जीवनके निदर्शन हैं। अभिनन्दनके क्षणों में हम डॉ० कोठियाजीके दीर्घायुष्यकी मंगलकामना करते हैं। -५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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