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________________ मैं वर्तमान पीढ़ी के युवक विद्वानोंसे कोठियाजीके जीवनसे शिक्षा लेनेका अनुरोध करता हूँ तथा कोठियाजीके सुखी व दीर्घ जीवनकी भावना करता हूँ । जैन न्यायके एकमात्र सर्वोपरि विद्वान् सिद्धान्ताचार्य पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री, वाराणसी श्री पं० दरबारीलालजी कोठिया न्याचार्य श्री स्याद्वादमहाविद्यालयके स्नातक हैं । यहींसे उन्होंने गवर्मेण्ट संस्कृत कालिजसे, जो आज श्री सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय है, षट्खण्ड न्यायाचार्य स्व० पं० महेन्द्रकुमारजीके साथ उत्तीर्ण किया था । उनकी रुचि नव्यन्याय में थी । मेरे कहनेसे उन्होंने प्राचीन न्याय विषय लिया था । यहाँसे जानेके बाद वह वीर - सेवा मन्दिर सरसावा में स्व० पं० जुगलकिशोर जी मुख्तार के साथ कार्य करते रहे और 'अनेकान्त' पत्र में उनके शोधपूर्ण लेख प्रकाशित होते रहे । वहीं पर उन्होंने न्यायदीपिका और आप्तपरीक्षाका हिन्दी अनुवादके साथ सम्पादन किया । फिर देहली में समन्तभद्र विद्यालयकी स्थापना करके उसके प्रधानाचार्य रहे । उससे पहले पपौरा विद्यालयमें तथा श्रीऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम मथुरा में प्रधानाचार्य रहे । मेरे ही सुझावपर वह हिन्दू विश्वविद्यालय में जैन दर्शनकी चेयरपर अध्यापक बनकर वाराणसी में आये और यहाँ उन्होंने स्थायी निवास स्थान बना लिया । वह एक कर्मठ व्यक्ति हैं । उनके मंत्रित्वकालमें श्री गणेश वर्णी ग्रन्थमालाने बहुत उन्नति की । इस समय वह स्व० पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार के द्वारा स्थापित वीरसेवा मन्दिर ट्रस्टके मन्त्री हैं और उससे भी अनेक ग्रन्थ प्रकाशित किये हैं । इस समय जैन समाज में वह जैन न्यायके एकमात्र सर्वोपरि विद्वान् हैं। उनसे समाज और विद्वत्ता की शोभा है । वह भारतवर्षीय दि० जैन विद्वत्परिषद के सभापति भी रह चुके हैं तथा विद्वानों और विद्यार्थियोंके प्रति उनमें सौमनस्य है । अतः उनका अभिनन्दन उचित ही है । जैनदर्शन के वरिष्ठ विद्वान् पं० नाथूलाल जैन शास्त्री, इन्दौर श्री डॉ० दरबारीलालजी कोठिया न्यायाचार्य, जैनदर्शनके वरिष्ठ एवं अधिकारी विद्वान् हैं । उनकी दर्शन सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण रचनाओंसे हमारा समाज गौरवान्वित है । Jain Education International पंडितजी क्रियाशील एवं कर्त्तव्यनिष्ठ रहकर समाजको अपनी विद्वत्ताका लाभ पहुँचाते रहते हैं । आपका सबके प्रति सरल व्यवहार और सादगीपूर्ण जीवन अनुकरणीय एव प्रेरणास्पद है । पं० जीके अभिनन्दनके अवसरपर उनके प्रति अपनी हार्दिक मंगलकामना करते हुए उनके स्वस्थ जीवन एवं दीर्घायु के लिए जिनेन्द्रप्रभुसे प्रार्थना करता हूँ और आशा करता हूँ कि पं० जो वीतरागमार्गका उद्योत करते हुए उत्तरोत्तर समाज-सेवाकी ओर अग्रसर रहेंगे । - ५६ - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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