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________________ गोलापूर्व अन्वयके आलोकमें पण्डित फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री, वाराणसी बुंदेलखण्ड संस्कृतिकी दृष्टिसे सर्वाधिक सुसंस्कृत प्रदेश है । इसके जनजीवनपर अहिंसाकी गहरी छाप है। यहाँ मांस-मदिराका नहींके बराबर प्रचार है। प्रायः भगिनी-समाज तो इनसे परहेज करती ही है। पुरुषोंमें भी क्वचित् कदाचित् इनका सेवन देखा जाता है । इसके मूलमें जैनोंको आचारपद्धति ही मुख्य कारण है। __यद्यपि जैन समाज संख्याकी दृष्टिसे भले ही अल्प हो, पर उसने सुदूर अतीत कालसे आचार-व्यवहारकी जो अहिंसक परम्परा अपने दैनंदिनके व्यवहारमें अपना रखी है वह आज इस विषम परिस्थितिमें भी क्वचित् कदाचित अपवादको छोड़कर उसी रूपमें देखी जा सकती है। इस दृष्टिसे यदि विचार किया जाय तो यह निःसंकोच कहा जा सकता है कि इस समाजकी इस आचार-परम्परासे पूरा भारतदेश अनुप्राणित हुआ है। यह उसीका बल है कि वर्तमान समयमें राजनैतिक दृष्टिसे भी हम अक्षुण्ण स्वतन्त्रताका उपभोग कर रहे हैं। यों तो पूरे देश में इस समाजने अपने अस्तित्वको बनाये रखा है। पर बुंदेलखण्ड इस दृष्टिसे सर्वाधिक भाग्यशाली है। यहाँ पाये जानेवाले मूर्तिलेख, शिलालेख, यन्त्रलेख और ग्रन्थप्रशस्तियोंपर पाये जानेवाले लेखोंसे पता चलता है कि हजार-आठसौ वर्ष पूर्वतक इस प्रदेश में जैसवाल, लम्बकञ्चक और खण्डेलवाल अन्वयके परिवार बहतायतसे बसते रहे हैं। फिर भी पूर्व कालसे लेकर इस समय तक जिन अन्वयोंके परिवार यहाँ निवास करते हैं उनमें परवार (पौरपाट), गोलापूर्व, गोलाराड् अयोध्यावासी और चरनागरे मुख्य हैं। यद्यपि गहोई (गृहपति) अन्वयके परिवारोंका मुख्य निवास-स्थान भी यही प्रदेश है, पर पहलेके समान इस अन्वयमें अब कोई भी परिवार जैन दष्टिगोचर नहीं होता। इस अन्वयके परिवारोंने कब और कैसे धर्मपरिवर्तन कर लिया, यह कहना कठिन है । इन अन्वयों के परिवार कब आकर यहाँ बसे या इनमेंसे कौन अन्वयके परिवार यहाँके मूल निवासी हैं, यह अध्ययनका विषय है। फिर भी अन्य जिन अन्वयोंके विषयमें थोड़ी-बहुत प्रामाणिक जानकारी मिलती भी है, वह इस लेखका विषय नहीं है। यहाँ तो मुख्यरूपसे गोलापूर्व अन्वयके विषयमें विचार करना है। वर्तमानमें जिस अन्वयको गोलालारे नामसे सम्बोधित किया जाता है, मूर्तिलेखों, यन्त्रलेखों और ग्रन्थप्रशस्तियों में उस अन्वयका मूल नाम गोलाराड् है । 'राड्' शब्द राष्ट्रवाची है, 'राज' उसीका अपभ्रंश रूप है। इससे ऐसा अनुमान होता है कि प्राचीन कालमें भारतवर्ष के भीतर कोई ऐसा देश या प्रदेश अवश्य रहा है, जो अतीतमें गोलदेश या गोलप्रदेश कहा जाता रहा है। वर्तमान में इस अन्वयका मुख्य निवास ग्वालियरसे लगा हुआ भिण्ड-भदावरका मुख्य भाग है । साधारणतः इसके कतिपय परिवार वहींसे आकर बुन्देलखण्डके अन्य अञ्चलोंमें बसते गये हैं। इसलिये यह हो सकता है कि जितने अञ्चलमें गोलापूर्व, गोलाराड् और गोलशृंगारके परिवार बसते आये हैं वह पूरा प्रदेश पहले कभी गोलाराड् कहा जाता रहा हो तो कोई आश्चर्य नहीं। जैसे इस समय भी ग्वालियरसे लगे हुए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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