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________________ । ११२ ] भारी जल भरीयो ग्रहीयो, जिणरे केसर तिलक अषंड । हाथ पवित्री पहिरी सोवनी रे, बांस तणों करदण्ड । गरढ़ी बढ़ौ सौ बरसां तणौ रे, केस थया सिरि पीत। सीस हलावै जमने ना कहै रे, दोत पड्या मुखपीत ॥ बुषुषांस, मसु करे रे, दृष्ट अलप मुख लाल । कहै जिनहरष जरा थयौ जोजरौ रे. एथई छठी ढाल । [ गुणाबलो चौपई पृ० ३ ] कवि ने ऐसा सजीव शब्द चित्र प्रस्तुत किया है कि यदि चित्रकार चाहे तो इसके परिवेश में अपनी तुलिका से वह ज्योतिषी का प्रभावक चित्र अंकित कर सकता है। कवि ने अनेक गति चित्रों को भी उभारा है। जिससे उसके अभिव्यंजन कौशल का निदर्शन होता है। चाहता । इसलिए सभी की सुरत-सुविधा के समुचित वातावरण की सर्जना करनी चाहिये। जीव मात्र पर अहिंसा का भाव रखना चाहिये। कवि ने बताया है कि सर्वहित कामना का मूल वेर।ग्य है । राग और द्वष बन्धन के कारण हैं। इसलिये उनसे मुक्ति पाने का प्रयास करना चाहिये। प्राणी को बाह्य और आन्तरिक दृष्टियों से इतना पवित्र, निर्विकार ओर निष्कलुष बन जाना चाहिये कि उसका जोवन दोषों से आक्रान्त न होने पावे। उसे अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह जैसे महाव्रतों की स्थूल और सूक्ष्म साधना करनी चाहिये । क्रोध, लोभ, माया, मोह, जैसे दूषणों से बचना चाहिये। कवि के शब्दों में'खार तजो मनको अरे मानव ! खार ते देह उधार न होई । शान्ति भजो मन भ्रान्ति तजो कुछ होइहिं सोइ करेगो तुं जोई। जीव को घात की बात निवारिके, आप समान गणों सब कोई। रागनद्वष धरो मनम जसराज मगति जों चाहिइं जोई॥ महाकवि जिनहर्ष ने अपने विपुल साहित्य के माध्यम से अभिव्यंजित किया है कि जीवन का अन्यतम उद्देश्य आत्मविकास है। सांसारिक मोह बधनों में पड़कर प्राणी को मूल लक्ष्य से परिभ्रष्ट नहीं होना चाहिये । साधक को सदैव स्मृतिपथ में यह संरक्षित रखना चाहिये कि सब जीना चाहते हैं, कोई मरना नहीं चाहता । दयाहित और उपकार का भाजन केवल मानव ही नहीं है. प्रत्यत संसार के समस्त प्राणी हैं। सभी सुख चाहते हैं. दु.ख कोई नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012019
Book TitleManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Samaroh Samiti New Delhi
Publication Year1971
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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