SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६२ डॉ० मारुतिनन्दन तिवारी एवं डॉ. कमलगिरि परमार शासक भोज के व्याकरण के समान ही एक व्याकरण ग्रन्थ की रचना का निवेदन किया था। हेमचन्द्र ने इसके लिए कश्मीर के सरस्वती पुस्तकालय से आठ व्याकरण ग्रन्थों को मंगाया था। इस निमित्त कश्मीर गये अधिकारियों की प्रशंसा से प्रसन्न होकर सरस्वती स्वयं उपस्थित हुई और उन्होंने अपने भक्त हेमचन्द्र के पास पूर्व रचित व्याकरण ग्रन्थों को सन्दर्भ हेतु भेजने की आज्ञा दी। हेमचन्द्र का व्याकरण ग्रन्थ पूरा होने पर सरस्वती ने उसे अपने कश्मीर स्थित मन्दिर के पुस्तकालय के लिए स्वीकार भी किया था।' प्रबन्धकोश में उल्लेख है कि एक बार हेमचन्द्र ने चौलुक्य कुमारपाल का पूर्वभव जानने के लिए सरस्वती नदी के किनारे सरस्वती देवी का आह्वान किया था । तीन दिनों के ध्यान के पश्चात् सरस्वती ( विद्या देवी ) स्वयं उपस्थित हुई और ों के बारे में बताया। भैरव-पद्मावती-कल्प एवं भारती-कल्प के रचनाकार मल्लिषेणसूरि ( लगभग १०४७ ई०) भी सारस्वत शक्ति ( सरस्वतीलब्धवरप्रासादः ) सम्पन्न थे । वसन्तविलास के रचनाकार सिद्धसारस्वत बालचन्द्रसूरि ( लगभग प्रारम्भिक १३वीं शती ई० ) ने भी सफलतापूर्वक सरस्वती की मांत्रिक साधना की थी। प्रभावकचरित एवं प्रबन्धचिन्तामणि में शीलादित्य के दरबार के मल्लवादिसूरि का उल्लेख मिलता है जिन्हें सरस्वती ने नयचक्र दिया था ।५ ग्रन्थों में बौद्धों को वाद में पराजित करने के लिए मल्लवादिसूरि के गले में सरस्वती के प्रवेश का भी सन्दर्भ मिलता है। मल्लवादि ने अपनी विलक्षण स्मरण शक्ति से सरस्वती को प्रसन्न किया था। कथा के अनुसार एक बार जब मल्लवादिसूरि सरस्वती की साधना में तल्लीन थे उसी समय आकाश में विचरण करती सरस्वती ने उनसे पूछा कि कौनसी वस्तु सबसे मीठी है । ( केमिष्ठा ) ? मल्लवादि ने तुरन्त उत्तर दिया गेहूँ के दाने ( वल्ला )। छः माह बाद पुनः सरस्वती ने उनसे पूछा किसके साथ (केनेति)। मल्लवादि ने तत्क्षण छ: माह पुराने सन्दर्भ के प्रसंग में उत्तर दिया गुड़ और घी के साथ ( गुडघृतेनेति )। इस अपूर्व स्मरणशक्ति वाले उत्तर से सरस्वती अत्यन्त प्रसन्न हुई और उन्होंने १. जी० ब्यूहलर, पूर्वनिर्दिष्ट, पृ० १५-१६ प्रबन्धकोश-१० हेमसूरिप्रबन्ध लब्धवाणीप्रसादेन मल्लिषेणेन सूरिणा। रच्यते भारतीकल्पः स्वल्पजाप्यफलप्रदः ॥ भैरवपद्मावतीकल्प, परिशिष्ट ११ : सरस्वतीमंत्रकल्प ( वस्तुतः भारतीकल्प ) श्लोक ३, सं० के० वी० अभ्यंकर, अहमदाबाद, १९३७, पृ० ६१; मोहनलाल भगवानदास झवेरी, पूर्व निर्दिष्ट, पृ० ३०० ४. गायकवाड़ ओरियन्टल सिरीज़, खण्ड ७, पृ० ५; कनाईलाल भट्टाचार्य, सरस्वती, कलकत्ता, १९८३, पृ० १०९ प्रबन्धचिन्तामणि (अंग्रेजी अनु० सी० एच० टॉनी, दिल्ली, १९८२, पृ० १७१-७२), पंचम प्रकाश : ११ प्रकीर्णकप्रबन्धः मल्लवादिप्रबन्ध (सं० जिनविजयमुनि, भाग-१, सिंघी जैन ग्रन्थमाला १, शांतिनिकेतन, १९३३, पृ० १०७; नृपतिसभायां पूर्वोदितपणबन्धपूर्वकं कण्ठपीठावतीर्णश्रीवाग्देवताबलेन श्री मल्लस्तांस्तरसैव निरूत्तरीचकार । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy