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________________ जैनतंत्र साधना में सरस्वती मल्लवादि को इच्छित वरदान दिया।' प्रभावकचरित (१०।३२) के अनुसार सरस्वती ने मल्लवादि को मात्र एक ही श्लोक द्वारा सम्पूर्ण शास्त्र का अर्थ समझने की अलौकिक शक्ति प्रदान की थी: "श्लोकेनैकेन शास्त्रस्य सर्वमर्थं ग्रहीष्यसि ।" एक दूसरी कथा वृद्धिवादिसूरि ( लगभग चौथी शती ई० ) से सम्बन्धित है जिसने २१ दिनों के उपवास द्वारा जिनालय में सरस्वती का आह्वान किया था। इस कठिन आराधना से प्रसन्न होकर सरस्वती ने वृद्धवादि को सभी विद्याओं (सर्वविद्यासिद्ध) में पारंगत होने का वरदान दिया था। सरस्वती के वरदान के बाद वृद्धवादि ने मान्त्रिक शक्ति द्वारा प्रज्ञा मूसल पर पुष्पों को वर्षा का सार्वजनिक प्रदर्शन भी किया था। प्रबन्धकोश के हरिहर-प्रबन्ध (१२) में भी सारस्वत शक्ति से सम्बन्धित एक रोचक कथा मिलती है। वस्तुपाल के दरबार में गौड़ कवि हरिहर ने गुजरात के कवि सोमेश्वर को अपमानित किया था। सोमेश्वर ने १०८ श्लोकों की रचना की और उसे वस्तुपाल और हरिहर को सुनाया। स्तोत्र सुनकर हरिहर ने कहा कि यह मूल रचना न होकर भोजदेव की रचना की अनुकृति है जिसे उन्होंने "सरस्वती कण्ठाभरण प्रासाद" के संग्रह में देखा था। अपनी बात की पुष्टि में हरिहर ने सम्पूर्ण स्तोत्र ही दुहरा दिया। कुछ समय पश्चात् स्वयं हरिहर ने वस्तुपाल को यह बताया कि सारस्वत मंत्र की साधना के फलस्वरूप प्राप्त अपूर्व स्मरणशक्ति के कारण ही वे १०८ श्लोकों, षट्पदकाव्य तथा अन्य अनेक बातों को केवल एक बार सुनकर ही याद रखने में समर्थ थे। इसी कारण वे सोमेश्वर के १०८ श्लोकों की तत्काल पुनरावृत्ति कर सके थे।३ श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परम्पराओं के ध्यानमंत्रों में तांत्रिक शैली में सरस्वतीपूजन के अनेक सन्दर्भ हैं। जैन ग्रन्थों में देवी को दो, चार या उससे अधिक भुजाओं वाला और विविध आयुधों से युक्त बताया गया है। श्वेताम्बर परम्परा में देवी का वाहन हंस है जबकि दिगम्बर परम्परा में देवी मयूरवाहनी बताई गई हैं। सर्वप्रथम बप्पभट्रिसूरि के शारदास्तोत्र में सरस्वती पूजन का उल्लेख मिलता है। बप्पभट्टि की चतुर्विशतिका में ऋषभनाथ, मल्लिनाथ और मुनिसुव्रत जिनों के साथ भी श्रुतदेवता के रूप में सरस्वती का आह्वान किया गया है। मल्लिषेणकृत भारतीकल्प एवं सरस्वती-कल्प, हेमचन्द्रसूरिकृत सिद्धसारस्वत-स्तव और जिनप्रभ १. प्रभावकचरित : १० मल्लवादिसूरिचरित २२-३५; प्रबन्धचिन्तामणि (सी० एच० टॉनी अनु०), पृ० १७१-७२ प्रबन्धकोश : वृद्धवादि-सिद्धसेनप्रबन्ध, पृ० १५; प्रभावकचरित : ८ वृद्धवादिसूरिचरित, श्लोक ३०-३१ ३. होमकाले गीर्देवी प्रत्यक्षाऽऽसीत् । वरं वृणीष्वेत्याह स्म माम् । मया जगदे-जगदेकमातर । यदि तुष्टाऽसि तदा एकदा भणितानां १०८ सयानां ऋचां षट्पदानां काव्यानां वस्तुकानां धत्तानां दण्डकानां वाऽवधारणे समर्थो भूयासम् । देव्याचष्ट-तथाऽस्तु । प्रबन्धकोश : १२, हरिहरप्रबन्ध पृ० ५९-६० ४. चतुर्विशतिका ४.१, ७६.१९, ८०.२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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