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________________ जैनतंत्र साधना में सरस्वती उल्लेख मिलता है।' प्रभावकचरित में उल्लेख है कि बप्पभट्टि और वर्धनकुंजर के मध्य निरन्तर छः माह तक वाद चलता रहा, पर कोई निर्णय नहीं हो सका। तब बप्पभट्टि ने विजय के लिए गुरु से प्राप्त मंत्र द्वारा मध्यरात्रि में गिरादेवी (सरस्वती) का आह्वान किया। मंत्र इतना प्रभावशाली था कि सरस्वती बप्पभट्टि के समक्ष इतनी त्वरा में उपस्थित हुई कि वस्त्र धारण करना भी भूल गईं (अनावृत्तशरीरम्)। इस अवसर पर बप्पभट्टि ने सरस्वती की प्रशंसा में १४ श्लोकों वाले एक स्तोत्र की भी रचना की थी। इस पर प्रसन्न होकर सरस्वती ने बप्पभट्टि को बताया कि वर्धनकुंजर पिछले सात जन्मों से उनका अनन्य भक्त है और सरस्वती ने ही उसे वाद में अपराजेय बनाने वाली अक्षयवचनगुटिका दी है। बप्पभट्टि की प्रार्थना पर सरस्वती ने ही उन्हें वर्धनकुंजर पर विजय का उपाय भी बताया। वाद के दौरान मुखशौच का प्रस्ताव करने पर देवी की कृपा से मुखशौच के समय वर्धनकुंजर के मुख से जब अक्षयवचनगुटिका गिर जाएगी तभी बप्पभट्टि उसे पराजित कर सकेंगे। बप्पभट्टि ने देवी के आदेशानुसार कार्य किया और वर्धनकुंजर को को पराजित कर वादिकुंजरकेशरी बने । यह कथा सरस्वती साधना से प्राप्त अलौकिक शक्ति को प्रकट करती है। सरस्वती ने बप्पभट्टि को यह भी निर्देश दिया कि १४ श्लोकों वाले स्तोत्र को वे किसी अन्य व्यक्ति को न बतायें क्योंकि वह स्तोत्र (मंत्र) इतना प्रभावशाली है कि उसके उच्चारणमात्र से ही उन्हें साधक के समक्ष विवशतः उपस्थित होना पड़ेगा। यही कथा प्रबन्धकोश में भी मिलती है, किन्तु यहाँ सरस्वती के निर्वस्त्र उपस्थित होने का सन्दर्भ नहीं है । हेमचन्द्रसूरि (१२वी शती ई०) भी अन्य चामत्कारिक शक्तियों के साथ ही सारस्वत शक्ति सम्पन्न थे। प्रभावकचरित में उल्लेख है कि चौलुक्यराज जयसिंह ने हेमचन्द्र से उज्जैन के प्रभावकचरित (प्रभाचन्द्राचार्यकृत-सं० जिनविजयमुनि, सिंघी जैन ग्रन्थमाला-१३, अहमदाबाद, कलकत्ता, १९४०) ११-बप्पभट्टिसूरिचरित, प्रबन्धकोश (राजशेखरसूरिकृत, सं० जिनविजयमुनि, प्रथम भाग, सिंघी जैन ग्रन्थमाला-६, शांतिनिकेतन, १९३५) ९बप्पभट्टिसूरिप्रबन्ध. प्राग्दत्तं गुरुभिर्मन्वं परावतंयतः सतः । विवत्तंसे भवन्मन्त्रजापात् तुष्टाहमागता ॥ वरं वृण्विति तत्रोक्तो बप्पभट्टिरुवाच च । देवी प्राहामुना सप्तभवा नाराधिताऽस्म्यहम् ।। प्रदत्ता गुटिकाक्षय्यवचनाऽस्य मया ततः । तत्प्रभावाद् वचो नास्य हीयते यतिनायक!॥ सरस्वती पुनः प्राह नाहं जैनविरोधिनी । उपायं तेऽपयिष्यामि यथासौ जीयते बुधः ॥ चतुर्दशं पुनवृत्तं न प्रकाश्यं कदापि हि । यतस्तत्र श्रुते साक्षाद्भवितव्यं मया ध्रुवम् ॥ प्रभावकचरित ११ : बप्पभट्टिसूरिचरित ४१९-४४२. ३. प्रबन्धकोश-९ बप्पभट्टिसूरिप्रबन्ध. ४. जी०. ब्यूहलर, पूर्व निविष्ट, पृ० ५४. २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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