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________________ ५४ १. नरक गति बौद्धधर्म में नरकों की संख्या आठ है - १. सञ्जीव, २. कालसुत्त, ३. संघात, ४. जालरोसव, ५. धूमरोसव, ६. तापन, ७. प्रतापन एवं ८. अवीचि । यह पृथ्वी २,४०,००० योजन गम्भीर है । इसमें १,२०,००० योजन पर्यन्त मृत्तिकामय तथा १,२०,००० योजन पर्यन्त पाषाणमय है । नीचे-नीचे एक निरय से दूसरे निरय के बीच १५,००० योजन का अन्तर है। इन चार महानरकों के आसपास ४ प्राकार और ४ द्वार हैं । उनके समानान्तर ४ उपनिरय हैं - गूथनिरय, कुक्कुलनिरय, सिम्बलिवन और असिपत्रवन । इनके चारों ओर खारोदका नदी है । क्षुधा, तृष्णा आदि का वर्णन जैनधर्मं से मिलता-जुलता है । जैनधर्म में बौद्धधर्म की अपेक्षा नरकों का वर्णन अधिक गंभीर और विस्तृत मिलता है । इसके अनुसार सात नरक हैं । इन भूमियों में दुगंन्ध, शीत, उष्ण, क्षुधा, पिपासा आदि रहती हैं। भयंकर दुःख यहाँ जीव प्राप्त करता है। इसका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है' नाम १ १. रत्नप्रभा खरभाग पंकभाग अब्बहुल २. शर्करा अपर नाम २ धर्मा Jain Education International भागचंद जैन भास्कर वंशा मेघा ३. बालुका ४. पंकप्रभा अंजना ५. धूमप्रभा अरिष्टा ६. तमप्रभा मघवी ७. महातमप्रभा माघवी मोटाई इन्द्रक ३ योजन १८०००० १३ ४४२० १६००० ८४००० ४ श्रेणीबद्ध ५ ८०००० ३२००० ११ २६८४ २८००० ९ १४७६ २४००० ७ २०००० ५ २६० १६००० ६० ८०३० १ ३ ७०० ४ ४९ ९६०४ बिलों का प्रमाण प्रकीर्णक ६ २९९५५६७ For Private & Personal Use Only २४७९३०५ १४९८५१५ ९९९२९३ २९९७३५ ९९९३२ X ८३९०३४७ कुल बिल ३० लाख २५ लाख १५ लाख १० लाख ३ लाख ९९९९५ १. तिलोय पण्णत्ति २.२६ २७ राजवार्तिक, ३.२.२; त्रिलोकसार, १५१; जंबूदीवपण्णत्ति, ११, १४३१४४; जैनेन्द्र सिद्धांत कोश, भाग २, पृ० ५७७ । ८४ लाख www.jainelibrary.org
SR No.012016
Book TitleAspect of Jainology Part 2 Pandita Bechardas Doshi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1987
Total Pages558
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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