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________________ १४२ काजी अञ्जम सैफी प्रमाता की रसानुभूति के सम्बन्ध में यदि आधुनिक मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो धनञ्जय की अपेक्षा रामचन्द्र-गुणचन्द्र की विचारधारा सत्य के अधिक निकट प्रतीत होती है। डॉ. सुलेखचन्द्र शर्मा भी इस तथ्य को स्वीकार करते हुए कहते हैं कि काव्यास्वाद और लोकानुभूति के जिस सम्बन्ध को वे जिस यथाथं मनोवैज्ञानिक आधार पर प्रतिष्ठित करते हैं, उसमें अनुभूतियों के सामञ्जस्य के गुणात्मक कोटिक्रम की आधुनिक अवधारणा उनके चिन्तन को विशिष्ट बना देती है। काजी पाड़ा, बिजनौर (उ. प्र.) २४६७०१ संदर्भ ग्रन्थ १. अभिनवोत्तर संस्कृत-काव्यशास्त्र में साधारणीकरण-विमर्श : डॉ. सुलेख चन्द्र शर्मा, देवपाणि परिषद् दिल्ली, प्रथम संस्करण १९८३ ।। २. अभि. भा.-अभिनवभारती ( नाट्यशास्त्र से उद्धृत) ३. का. प्र.-कान्य प्रकाश : मम्मट; आचार्य विश्वेश्वर, ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी, प्रथम संस्करण १९६०। ४. दश.-दशरूपक : धनञ्जय, डॉ. श्री निवास शास्त्री, साहित्य भण्डार, मेरठ, तृतीय संस्करण १९७६ । ५. दि नाट्यदर्पण ऑफ रामचन्द्र एण्ड गुणचन्द्र-ए क्रिटिकल स्टडी : डॉ. एच. त्रिवेदी; एल. डी. इन्स्टी ट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी, अहमदाबाद, फर्स्ट एडिशन १९६६ । ६. धनिक-वृत्ति ( धनञ्जय के दशरूपक से उद्धृत)। ७. ध्वनि-सिद्धान्त : विरोधी सम्प्रदाय-उनकी मान्यताएँ : डॉ. सुरेशचन्द्र पाण्डेय, वसुमती प्रकाशन, इलाहाबाद, प्रथम संस्करण १९७२ । ८. ध्वन्या.-ध्वन्यालोक : आनन्दवर्धन, डॉ रामसागर त्रिपाठी, द्वितीय खण्ड, मोतीलाल बनारसी दास, दिल्ली, प्रथम संस्करण १९६३ । . ९. ना. द.-नाट्यदर्पण : रामचन्द्र-गणचन्द्र; ओरियण्टल इन्स्टीट्यूट, बड़ौदा १९५९। १०. ना. शा.-नाट्यशास्त्र : आचार्य भरत; भाग-१, ओरिएण्टल इन्स्टीट्यूट बड़ौदा, द्वितीय संस्करण १९५६ । ११. बाल बो.-बालबोधिनी : भट्टवामनाचार्य झलकीकर द्वारा रचित काव्य प्रकाश की टीका : निर्णयसागर प्रेस, बम्बई, द्वितीय संस्करण १९०१। १२. भारतीय दर्शन : बलदेव उपाध्याय; शारदा मन्दिर, वाराणसी, १९७१ । १३. रस-सिद्धान्त : डॉ. ऋषिकुमार चतुर्वेदी; ग्रन्थायन, सर्वोदय नगर, सासनीगेट, अलीगढ़, प्रथम संस्करण १९८१ । १४. रसगंगाधर का शास्त्रीय अध्ययन : डॉ. प्रेमस्वरूप गुप्त; भारत प्रकाशन मन्दिर, अलीगढ़, प्रथम - संस्करण १९६२। १५. रस-सिद्धान्त : डॉ. नगेन्द्र : नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली, तृतीय संस्करण १९७६ । १. अभिनवोत्तर संस्कृत-काव्यशास्त्र में साधारणीकरण-विमर्श पृ० ६५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012015
Book TitleAspect of Jainology Part 1 Lala Harjas Rai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages170
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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