SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन विद्या के आयाम खण्ड - ६ पूर्व ही हो चुकी थी। किन्तु वहाँ प्रवेश के लगभग १५-२० दिन पश्चात् ही आप अस्वस्थ हो गये, फलत: मात्र डेढ़ माह के अल्प प्रवास के पश्चात् पारिवारिक ममता ने आपको वापस शाजापुर बुला लिया । इसप्रकार आपका अध्ययन स्थगित हो गया और आप अल्पवय में ही सर्राफे के व्यवसाय से जुड़ गये । विवाह एवं पारिवारिक तथा सामाजिक गतिविधियाँ आपकी सगाई तो बाल्यकाल में ही हो गयी थी और विवाह की योजना भी बहुत पहले ही बन गई थी, किन्तु आपकी सास के कैंसर की असाध्य बीमारी से ग्रस्त हो जाने और बाद में उनकी मृत्यु हो जाने के कारण विवाह थोड़े समय के लिए टला तो सही किन्तु १७ वर्ष की वय में प्रवेश करते ही वैशाख शुक्ला त्रयोदशी वि.संवत् २००५ तदनुसार २१ मई १९४८ को आपको श्रीमती कमलाबाई के साथ दाम्पत्य-सूत्र में बाँध दिया गया । अल्पवय में आपके विवाह का एक अन्य कारण यह भी था कि आपकी मातृतुल्या पूज्य साध्वी श्री पानकुंवर जी म.सा. के दीक्षित हो जाने और बाल्यकाल से ही आपकी रुचि साधु-सन्तों से समीप अधिक रहने की होने के कारण परिवार को भय था कि कहीं बालकमन पर वैराग्य के संस्कार न जम जायें ? इस प्रकार किशोरवय में ही आपको गृहस्थ जीवन और व्यवसाय से जुड़ जाना पड़ा। जो दिन आपके खेलने और खाने के थे, उन्हीं दिनों में आपको पारिवारिक एवं व्यावसायिक दायित्व का निर्वाह करना पड़ा। यद्यपि आपके मन में अध्ययन के प्रति अदम्य उत्साह था, किन्तु शाजापुर में हाईस्कूल का अभाव तथा पारिवारिक और व्यावसायिक दायित्वों का बोझ इसमें बाधक था, फिर भी जहाँ चाह होती है वहाँ कोई न कोई राह निकल ही आती है । व्यवसाय के साथ-साथ अध्ययन चार वर्ष के अन्तराल के पश्चात् सन् १९५२ में हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से 'व्यापर विशारद' की परीक्षा उत्तीर्ण की और उसके दो वर्ष पश्चात् १९५४ में अर्थशास्त्र विषय से साहित्यरत्न की परीक्षा उत्तीर्ण की । उस समय आपने अर्थशास्त्र को सुगम ढंग से अध्ययन करने और स्मृति में रखने का एक चार्ट बनाया था, जिसकी प्रशंसा उस समय के एम.ए.अर्थशास्त्र के छात्रों ने भी की थी ।इसी बीच आपका पत्र-व्यवहार इलाहाबाद के सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री भगवानदास जी केला से हुआ। उन्होंने श्री नरहरि पारिख के मानव अर्थशास्त्र के आधार पर हिन्दी में मानव अर्थशास्त्र लिखने हेतु आपको प्रेरित किया था। तब आप हाईस्कूल भी उत्तीर्ण नहीं थे और आपकी वय मात्र बीस वर्ष की थी। इस समय आपके एक नये मित्र बने सारंगपुर के श्री मदनमोहन राठी । इसी काल में आपने धार्मिक परीक्षा बोर्ड, पाथर्डी से 'जैन सिद्धान्त विशारद' की परीक्षा उत्तीर्ण की । सन् १९५३ में शाजापुर नगर में एक प्राइवेट हाईस्कूल प्रारम्भ हुआ । यद्यपि अपने व्यावसायिक क्रिया-कलापों में व्यस्त होने के कारण आप उसके छात्र तो नहीं बन सके, किन्तु आपके मन में अध्ययन की प्रसुप्त भावना पुन: जागृत हो गई और सन् १९५५ में आपने अपने मित्र श्री माणकचन्द्र जैन के साथ स्वाध्यायी छात्र के रूप में हाईस्कूल की परीक्षा दी । वय में माणकचन्द्र आपसे तीन वर्ष छोटे थे फिर भी आप दोनों में गहरी दोस्ती थी। यद्यपि आप नियमित अध्ययन तो नहीं कर सके, फिर भी अपनी प्रतिभा के बल पर आपने उस परीक्षा में उच्च द्वितीय श्रेणी के अंक प्राप्त किये। अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होने के परिणामस्वरूप आपके मन में अध्ययन की भावना पुनः तीव्र हो गयी । इसी अवधि में व्यवसाय के क्षेत्र में भी आपने अच्छी सफलता और कीर्ति अर्जित की । पिता जी की प्रामाणिकता और आपके सौम्य व्यवहार के कारण आप ग्राहकों का मन मोह लिया करते थे। परिणामस्वरूप आपको व्यावसायिक क्षेत्र में अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त हुई। अल्प वय में ही आपको शाजापुर नगर के सर्राफा एसोसियेशन का मंत्री बना दिया गया । पारिवारिक और व्यावसायिक दायित्वों का निर्वाह करते हुए भी आपमें अध्ययन की रुचि सदैव जीवन्त रही। अत: आपने सन् १९५७ में इण्टर कामर्स की परीक्षा दे ही दी और इस परीक्षा में भी उच्च द्वितीय श्रेणी के अंक प्राप्त किये। यह आपका सद्भाग्य ही कहा जायेगा कि चाहे व्यवसाय का क्षेत्र हो या अध्ययन का असफलता और निराशा का मुख आपने कभी नहीं देखा । किन्तु आगे अध्ययन का क्रम पुनः खण्डित हो गया, क्योंकि उस समय शाजापुर नगर में कोई महाविद्यालय नहीं था और बी.ए. की परीक्षा स्वाध्यायी छात्र के रूप में नहीं दी जा सकती थी। अत: एक बार पुन: आपको व्यवसाय के क्षेत्र में ही केन्द्रित होना पड़ा, किन्तु भाग्यवानों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012014
Book TitleSagarmal Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages974
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy