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________________ प्रो.सागरमल जैन जीवन परिचय जन्म और बाल्यकाल प्रो.सागरमल जैन का जन्म भारत के हृदय मालव अंचल के शाजापुर नगर में विक्रम संवत् १९८८ की माघपूर्णिमा तदनुसार २२ फरवरी १९३२ ई० के दिन हुआ था । आपके पिता श्री राजमल जी शक्करवाले मध्यम आर्थिक स्थिति होने पर भी ओसवाल समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में माने जाते थे । आपका गोत्र मण्डलिक है । आपकी माता श्रीमती गंगाबाई एक धार्मिक महिला थीं । आपके जन्म के समय आपके पिताजी सपरिवार अपने नाना-नानी के साथ ही निवास करते थे, क्योंकि आपके दादा-दादी का देहावसान आपके पिताजी के बचपन में ही हो गया था । बालक सागरमल को सर्वाधिक प्यार और दुलार मिला अपने पिता की मौसी पानबाई से। उन्होंने ही आपके बाल्यजीवन में धार्मिक संस्कारों का बीज वपन किया। वे स्वभावत: विरक्तमना थीं । विक्रम संवत् १९९४ में जब आपकी वय लगभग ६ वर्ष की थी, तभी उन्होंने पूज्य साध्वी श्री रत्नकुंवर जी म.सा.के सान्निध्य में संन्यास ग्रहण कर लिया था । वे प्रवर्तनी रत्नकुँवरजी म.सा.के साध्वी संघ में वयोवृद्ध साध्वी प्रमुखा के रूप में वर्षों तक शाजापुर नगर में ही स्थिरवास रहीं । गतवर्ष सन् १९९७ को लगभग ९६ वर्ष की अवस्था में आपका स्वर्गवास हुआ । इस प्रकार आपका पालन-पोषण धार्मिक संस्कारमय परिवेश में हुआ । मालवा की माटी से सहजता और सरलता तथा परिवार से पापभीरुता एवं धर्म-संस्कार लेकर आपके जीवन की विकास यात्रा आगे बढ़ी । शिक्षा बालक सागरमल की प्रारम्भिक शिक्षा तोड़ेवाले भैया की पाठशाला में हुई । यह पाठशाला तब अपने कठोर अनुशासन के लिए प्रसिद्ध थी । यही कारण था कि आपके जीवन में अनुशासन और संयम के गुण विकसित हुए । इस पाठशाला से तीसरी कक्षा उत्तीर्ण कर लेने पर आपको तत्कालीन ग्वालियर राज्य के ऐंग्लो वर्नाक्यूलर मिडिल स्कूल की चौथी कक्षा में प्रवेश मिला। यहाँ रामजी भैया सितूतकर जैसे कठोर एवं अनुशासनप्रिय अध्यापकों के सान्निध्य में आपने कक्षा ४ से कक्षा ८ तक की शिक्षा ग्रहण की और सभी परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की । माध्यमिक (मिडिल) परीक्षा में प्रथम श्रेणी के साथ-साथ शाजापुर जिले में प्रथम स्थान प्राप्त किया । ज्ञातव्य है कि उस समय माध्यमिक परीक्षा पास करने वालों के नाम ग्वालियर गजट में निकलते थे । जिस समय इस मिडिल स्कूल में आपने प्रवेश लिया था, उस समय द्वितीय महायुद्ध अपनी समाप्ति की ओर था और दिल्ली एवं बम्बई के मध्य आगरा-बाम्बे रोड पर स्थित शाजापुर नगर के उस स्कूल के पास का मैदान सैनिकों का पड़ाव स्थल था। साथ ही उस समय ग्वालियर राज्य में प्रजामण्डल द्वारा स्वतन्त्रता आन्दोलन की गतिविधियाँ भी तेज हो गईं थीं । बाल्यावस्था की स्वाभाविक चपलता वश कभी आप आगरा-बम्बई सड़क पर गुजरते हुए गोरे सैनिकों को (V for Victory) कह कर प्रोत्साहित करते, तो कभी प्रजामण्डल की प्रभात फेरियों के साथ 'भारतमाता की जय' का उद्घोष करते । बालक सागरमल ने इसी समय अपने मित्रों के साथ पार्श्वनाथ बाल मित्र-मण्डल की स्थापना की । सामाजिक एवं धार्मिक गतिविधियों के साथ-साथ मण्डल का एक प्रमुख कार्य था अपने सदस्यों को बीड़ीसिगरेट आदि दुर्व्यसनों से मुक्त रखना । इसके लिए सदस्यों पर कड़ी चौकसी रखी जाती थी । परिणाम यह हुआ कि यह मित्र-मण्डली व्यसन-मुक्त और धार्मिक संस्कारों से युक्त रही । माध्यमिक परीक्षा (कक्षा ८) उत्तीर्ण करने के पश्चात् परिवार के लोग सब से बड़ा पुत्र होने के कारण आपको व्यवसाय से जोड़ना चाहते थे । परन्तु आपके मन में अध्ययन की तीव्र उत्कण्ठा थी । उस समय शाजापुर नगर, ग्वालियर राज्य का जिला मुख्यालय था, फिर भी वहाँ कोई हाईस्कूल नहीं था । आपके अत्यधिक आग्रह पर आपके पिता ने आपकी ससुराल शुजालपुर के एक मात्र हाईस्कूल में अध्ययन के लिए प्रवेश दिलाया । ज्ञातव्य है कि बालक सागरमल की सगाई इसके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012014
Book TitleSagarmal Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages974
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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