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________________ प्रवर अभिमानार्यप्रवर अ श्रीआनन्दमश्राआनन्दान्थ५५ ३८८ धर्म और दर्शन आंव की बीमारी में, दस्त लगने की दवा देकर पहले ही अधिक दस्ते लगवा दी जायें तो पेट में से दूषित मल जो पीछे धीरे-धीरे निकलता वह पहले ही निकल जाता है और रोग से समय पहले छुटकारा मिल जाता है। इसी प्रकार कर्म की ग्रंथियों को भी प्रयत्न से समय के पूर्व उदय में लाया जा सकता है तथा उनका फल भोगा जा सकता है। कर्मों की उदीरणा प्राणी के सहज प्रयत्नों से चलती रहती है परन्तु अन्तर में अज्ञात गहराई में छिपे कर्मों की उदीरणा के लिए विशेष पुरुषार्थ की आवश्यकता होती है। आधुनिक मनोविज्ञान भी इस तथ्य को स्वीकार करता है और विश्वविख्यात मनोवैज्ञानिक डा० फ्रायड ने अज्ञात मन में स्थित मानसिक ग्रन्थियों को ज्ञात मन के स्तर पर लाने की पद्धति प्रस्तुत की है। इसे मनोविश्लेषण पद्धति कहा जाता है । इस पद्धति से भीतर अज्ञात मन में छिपी हुई ग्रंथियाँ, कुठाएं, वासनाएं, कामनाएं ज्ञात मन में प्रकट होती हैं और उनका फल भोग कर लिया जाता है तो वे नष्ट हो जाती हैं। आधुनिक मनोवैज्ञानिकों का कथन है कि मानव की अधिकतर शारीरिक एवं मानसिक बीमारियों का कारण ये अज्ञात मन में छिपी ग्रन्थियाँ ही हैं जिनका संचय हमारे पहले के जीवन में हुआ है । अत: जब ये ग्रन्थियाँ बाहर प्रकट होकर नष्ट हो जाती हैं तो इनसे सम्बन्धित बीमारियाँ भी मिट जाती हैं । वर्तमान में मानसिक चिकित्सा में इस पद्धति का महत्त्वपूर्ण स्थान है। अपने द्वारा हुए पापों या दोषों को स्मृतिपटल पर लाकर गुरु के समक्ष प्रकट करना, उनकी आलोचना करना, प्रतिक्रमण करना उदीरणा या मनोविश्लेषण पद्धति का ही रूप है। इससे साधारण दोष-दुष्कृत मिथ्या हो जाते हैं, नष्ट हो जाते हैं । यदि दोष अति प्रगाढ़ हो, भारी हो तो उसके नाश के लिए प्रायश्चित्त लिया जाता है। प्रतिक्रमण कर्मों की उदीरणा में बड़ा सहायक है। हम प्रतिक्रमण के उपयोग से अपने दुष्कर्मों की उदीरणा करते रहें तो कर्मों का संचय घटता जायेगा। जिससे आत्मा में आरोग्य की वृदिध होगी । जो शारीरिक एवं मानसिक आरोग्य, समता, शांति एवं प्रसन्नता के रूप में प्रकट होगी। उपशमना करण कर्म का उदय में आने के अयोग्य हो जाना उपशमना करण है। जिस प्रकार शरीर में आपरेशन, घाव आदि से उत्पन्न पीड़ा का कष्ट अनुभव न होने देने के लिए इन्जेक्शन या दवा दी जाती है जिससे पीड़ा या दर्द का शमन हो जाता है, कारण विद्यमान रहने पर भी उसके परिणाम से रोगी उस समय बचा रहता है। इसी प्रकार ज्ञान और क्रिया के विशेष प्रयत्न से कर्म-प्रकृतियों का कुफल शमन किया जा सकता है, अन्तस्तल में भोग्यमान प्रकृतियाँ कारण रूप में विद्यमान रहने पर उनके परिणाम से बचा जा सकता है । परन्तु जिस प्रकार इन्जेक्शन या दवा से दर्द का शमन रहने पर भी आपरेशन के घाव भरने का जो समय है वह घटता रहता है, घाव भरता रहता है। इसी प्रकार कर्म-प्रकृतियों के फलभोग का शमन होने पर भी उनका प्रकृति, स्थिति, प्रदेश बंध घटता रह सकता है। करण के ज्ञान की उपयोगिता कर्म या भाग्य-निर्माण के नियमों का ज्ञान करना आवश्यक है। इन नियमों को जानकर तद्नुसार आचरण करे तो अभीष्ट भाग्य का निर्माण किया जा सकता है। बंधन करण की उपयोगिता या लाभ अशुभ कर्मबंध न बांधकर शुभ कर्मबंध बांधने में है अथवा कर्मबंध से बचने में है। निधत्तकरण की उपयोगिता ऐसी प्रवृत्ति व भावों से बचने में जिनसे कर्म दृढ़ होते हैं। निकाचना करण की उपयोगिता ऐसी प्रवृत्ति व भावों से बचने में पूर्ण सावधान रहने में है जिनसे ऐसे कर्म बंध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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