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________________ ( २५ ) संदेश डा० रमेशचन्द एम०ए० पी-एच०डी दर्शन विभाग, पटना विश्वविद्यालय पटना (बिहार) “सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय' की भावना से आपूरित महर्षि मानव समाज के मित्र हैं । वे अपनी साधना द्वारा प्राणि मात्र के हितचिन्तन में लीन रहते हैं। अतएव कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु उनका सम्मान, अभिनन्दन करना एक साधारण-सा प्रयास माना जायेगा उनके उपकारों से उऋण नहीं हो सकते हैं। ___ आचार्य प्रवर श्री आनन्दऋषिजी के प्रति शुभकामनाएँ समर्पित करते हुए भावना व्यक्त करता हूँ कि वे अपने शतंजीवी मंगलमय जीवन द्वारा दिग्भ्रान्त मानव को कल्याण मार्ग का दिग्दर्शन कराते रहें। अभिनन्दन-ग्रन्थ समर्पण एवं सार्वजनिक सम्मान करने हेतु गठित समिति धन्यवादाई है कि उसने आचार्यप्रवर के सिद्धान्तों को आत्मसात् करने के प्रति अपनी निष्ठा अर्पित की है मुनि श्री मगनलाल जी म० कारंजा आचार्य सम्रट श्री आनन्द ऋषि जी म० जैन आगमों के मर्मज्ञ मनीषी और सौम्यता की जी मुझे आपकी सेवा का अवसर मिला है, नागपुर चातुर्मास में आपकी सेवा में रहा। मैंने निकट से देखा है, आपकी सेवा में जो भी व्यक्ति आता है, वह हृदय में एक अपूर्व शांति और अपनापन अनुभव करता है। किसी के मन में द्वष व कालुष्य के भाव भी होते हैं तो वे स्वयं ही धुल जाते हैं और उसके अन्तरंग में श्रद्धा की धारा बहने लगती है । आचार्य प्रवर के व्यक्तित्व का जादू कुछ अलख व अगम्य है। आचार्य देव की छत्रछाया में जिन शासन निरन्तर उन्नति करता रहे यही मेरी हार्दिक मंगल भावना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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