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________________ शभकामना डा० मधुसूदन प्रसाद एम० ए० पी-एच० डी० पटना विश्वविद्यालय, पटना आचार्य श्री आनन्द ऋषि जी के ७५ वें जन्मोत्सव पर अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशन के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें। आचार्य प्रवर की साधना जन साधारण के लिए आत्म-कल्याण हेतु प्रेरित करती रहे, यही मेरी मंगल कामना है। ११ कलाइव रोड कलकत्ता-१ १८ जनवरी ७५ प्रिय श्रीचन्द जी, ___ आचार्य प्रवर श्री आनंद ऋषि जी महाराज का १३ फरवरी को पूना में अभिनदंन हो रहा है, यह जानकर बहुत ही प्रसन्नता हुई। पूज्य आचार्य महाराज ने जैन संस्कृति की अनेक और महती सेवा की है । उनका जीवन आदर्श है। उन्होंने अनेकों शिक्षण शालाओं की स्थापना की है। मैं इस अवसर पर उनको बार-बार नमस्कार करता हूं और उनका अभिनदंन करता हूं। साहू शान्ति प्रसाद जैन सुरेश चतुर मौहता मंत्री-वर्धमान जैन सेवा-समिति बालाघाट (म० प्र०) २२, दिसम्बर १९७३ "जब जब पावन चरण कमल-पड़ जाते इस इस धरती तल पर। भक्ति भाव से हृदय निछावर, श्रद्धा पुष्प भेंट चरणों पर ॥" आचार्य प्रवर श्री आनन्दऋषि जी म० सा० के चरणों-में शत-शत वन्दन ! श्रमण संघाचार्य, जैन दिवाकर चारित्र चूड़ामणि, बाल ब्रह्मचारी जैनाचार्य श्री श्री १००८ श्री आनन्दऋषि जी म. सा. की ७५ वीं वर्षगांठ की पावन बेला में "श्री वर्द्धमान जैन सेवा समिति बालाघाट" आचार्य प्रवर के चरणों में अपनी शत-शत वन्दनांजलियां समर्पित करते हुए जन-जन का कल्याण करने हेतु आचार्य सम्राट चिरायु होने की कामना करती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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