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________________ ( २२ ) यशपाल जैन शभकामना सम्पादक-जीवन साहित्य नई दिल्ली ५ नवम्बर १९७३ बंधुवर, मुझे यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि आचार्य श्री आनन्द ऋषि जी अपने उदात्त जीवन के ७५वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं और उस शुभ अवसर पर उन्हें एक अभिनन्दन-ग्रन्थ भेंट किया जा रहा है। इसका अभिनन्दन करता हूँ और कामना करता हूँ कि आचार्य महाराज शतजीवी हों और मानव-समाज का निरन्तर मार्ग दर्शन करते रहें। __ आचार्य श्री ने जैन धर्म, दर्शन तथा समाज की जो सेवा की है, वह निःसन्देह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। वह अनेक भाषाओं के ज्ञाता हैं। उन्होंने अनेक ग्रंथों का निर्माण किया है। इतना ही नहीं, उन्होंने चार दर्जन से अधिक विद्या-मन्दिरों का निर्माण कराया है । यह उनकी रचनात्मक दृष्टि का परिचायक है । वह जैन संत हैं। संतों का जीवन निर्मल, सरल तथा सौम्य होता है। आचार्य महाराज में इन सभी गुणों का समावेश है। इसके साथ ही उनका व्यक्तित्व बड़ा ही प्रखर है। ___अधिकांश धर्म पुरुष अपनी साधना एकान्त में करते हैं । वे संसार को मायाजाल मानकर उससे पलायन करते हैं । आचार्य आनन्द ऋषि जी उन संतों में से नहीं हैं। वह समाज में रहते हैं और समाज का अहर्निश हित चिन्तन तथा हित साधन करते रहे हैं । उन्होंने जैन धर्म तथा दर्शन का सन्देश पैदल घूम-घूमकर घर-घर पहुँचाया है और अनेक विद्वानों के निर्माण में सहायक हुए हैं। ऐसे श्रेष्ठजन का जितना अभिनन्दन हो, उतना ही अच्छा है। गांधीजी ने कहा था, "मेरा जीवन ही मेरा सन्देश है।" मैं मानता हूँ कि आचार्य श्री का वास्तविक अभिनन्दन तो तभी होगा जबकि समाज उनके जीवन के आदर्शों को सम्मुख रखकर तदनुसार आचरण करे। __ मैं आशा करता हूँ कि जैन तथा जैनेतर समाज उनके गुणों का स्मरण करेगा और उनके आधार पर अपने जीवन को ढालेगा। मैं आचार्य महाराज को इस मंगल अवसर पर अपने आन्तरिक अभिनन्दन अर्पित करता हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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