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________________ ( २१ ) संदेश सत्यनारायण मिश्र सम्पादक-जीवन प्रभात बम्बई आचार्य प्रवर श्री आनन्द ऋषि जी को ७५वीं वर्ष गांठ पर उन्हें अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट करने की योजना की मैं हृदय से सफलता चाहता हूँ। उनका सच्चा अभिनन्दन तो यही है कि उनके विचारों एवं व्यक्तित्व से जो व्यक्ति प्रेरित, प्रभावित हैं, वे स्वयं अपने जीवन में उसे लाने का प्रयत्न करें। संपादक-जैन जगत, प्रधानमंत्री-भारतजैन महामंडल, बम्बई ७-१-७५ ऋषि सम्प्रदाय ने दक्षिण भारत में विशेषकर शिक्षा-प्रचार और सेवा का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। अनेक स्थानों पर ज्ञानमंदिरों की स्थापना इसका ज्वलन्त प्रमाण है। इन ज्ञानमंदिरों में न केवल धार्मिक शिक्षा पुस्तकों से ही दी जाती है, बल्कि छात्र-छात्राओं का जीवन भी अध्यात्मकी सौरभ से सुरभित किया जाता है। उसी ऋषि-परम्परा में पूज्य आचार्य श्री आनन्दऋषि जी एक तेजस्वी, पुण्यवान आचार्य हैं। आपका स्वभाव अत्यन्त ऋजु है और वृत्तियों से पापभीरू और सहज सन्त है। आचार्य श्री प्रसिद्धि के मोह से दूर रहकर अपनी साधना में संलग्न रहते हुये धर्म और साहित्य की सेवा में संलग्न हैं। मेरा पूज्य आचार्य श्री से बहुत पुराना आत्मीय संबंध है, और जब जब भी उनके चरणों में बैठने का अवसर मिला मुझे आत्मिक प्रसन्नता हुई। ऐसे आचार्यप्रवर का अभिनन्दन भारतीय संस्कृति एवं त्याग का अभिनन्दन है। समाज को इस अभिनन्दन से स्वयं गौरवबोध होता है। अभिनन्दन के अवसर पर मैं अत्यन्त विनम्रतापूवर्क अपनी हार्दिक श्रद्धा अर्पित करता हूँ और कामना करता हूँ कि आचार्यप्रवर वर्षों तक संघ और शासन की सेवा करते हुये जन-जन को आध्यात्मिक आलोक से आलोकित करते रहें। -रिषभदास रांका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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