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________________ प्रीति की रीति क्या है ? १७५ किसी से जबरदस्ती लिया जाता है। जैसे चोरी करके, छीन करके, व्याज या कर के रूप में लेकर के, | या हैसियत न होने पर भी दहेज आदि की माँग करके । संक्षेप में कोई देना न चाहता हो, फिर भी उससे लिया जाय तो अवश्य प्रेम घटता है। किन्तु स्नेह और सम्मान पूर्वक जो किसी के द्वारा लिया जाता है, उसे लेने से प्रेम घटता नहीं, वरन बढ़ता है और उसे लेने से अगर इन्कार किया जाये तो न लेने वाला व्यक्ति अहंकारी साबित होता है। सारांश यही है कि स्नेहपूर्वक किसी से दिया हुआ लेने पर परस्पर प्रेम की वृद्धि होती है। ३ गुह्यमाख्याति-प्रेम वृद्धि में तीसरा कारण है अपने मन की गुप्त बात कह देना । जिस व्यक्ति पर विश्वास हो, उससे मन की न बताने वाली बात कहने से सुनने वाले का स्नेह बढ़ता है और उसे प्रसन्नता होती है कि मुझे विश्वास के योग्य माना है। दूसरे, कहते हैं कि मन की व्यथा कहने से मन हलका हो जाता है और कभी-कभी सुनने वाले के द्वारा किसी समस्या का हल भी निकल आता है। किन्तु ऐसी गुह्य बातें कहने से पहले सुननेवाले को खूब ठोक-बजाकर समझ लेना चाहिये । अगर वह ओछे दिल वाला हआ तो कहने वाले को संसार के सामने उपहासपात्र या अपमानित बनाकर छोडेगा और ऐसे व्यक्ति से कुछ कहना खतरे से खाली नहीं होगा। एक दोहे में कहा गया है कपटी मित्र न कीजिए पेस-पेस बुध लेत । पहले ठांव बताइके पीछे गोता देत ॥ ऐसे व्यक्ति ऊपर से तो नम्रता, पवित्रता और मित्रता का दावा करते हैं, किन्तु उनके अन्तर में कपट का विष भरा होता है। किसी कवि ने सत्य ही कहा है मुखं पद्मदलाकारं वाचा चन्दन-शीतला । हृदयं कर्तरीतुल्यं धूर्तस्य लक्षणं त्रयम् ॥ तात्पर्य यह कि धुर्त व्यक्ति के तीन लक्षण होते हैं। प्रथम धूर्त का मुख कमल के पत्ते के समान । कोमल होता है, दूसरे उसकी वाणी चन्दन के समान शीतल होती है किन्तु उसका हृदय कैंची के समान होता है। इसलिये ऐसे व्यक्तियों से भूलकर भी मन की गुप्त बातें नहीं कहना चाहिये, अन्यथा लेने के बदले देना पड़ सकता है। ४ पृच्छति--यह अभी बताये तीसरे कारण का उल्टा है । अर्थात् प्रेम बढ़ाने का तीसरा साधन मन की गुप्त वात कहना और यह चौथा कारण है दूसरे के मन की बात पूछना । सुनने में यह बात छोटी लगती है, किन्तु महत्व की दृष्टि से कम नहीं है। किसी दुःखी और चिन्ताग्रस्त व्यक्ति को हम देखते हैं तो स्पष्ट महसूस होता है कि उसके दिल पर दर्द का मानो पहाड़ ही खड़ा है। किन्तु जब हम सहानुभूति पूर्वक उससे उसके दुःख का हाल सुन लेते हैं, उसे सान्त्वना देते हैं और बन सके तो उसके दुःख निवारण का कोई उपाय बता देते हैं तो वह व्यक्ति अपने आपको बड़ा हल्का महसूस करता है और हमारे प्रति प्रेम करता हुआ कृतज्ञता प्रदर्शित करता है। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो अपनी ही हांके जाते हैं, औरों की कुछ नहीं सुनते । ऐसे व्यक्ति से सुननेवाला उकता जाता है और उससे पीछा छुड़ाने का प्रयत्न करता है, किन्तु जो व्यक्ति अपनी कहता है, उसी प्रकार प्रेम से दूसरों की भी सुनता है, वह सभी का प्रिय पात्र बन जाता है और तभी आपस में प्रेम बढ़ता है। ५ भुक्ते-प्रेम बढ़ाने का पांचवां कारण है खाना । खाने से यहाँ आशय अपने घर में बैठकर । अपना ही भोजन करने से नहीं है वरन् औरों के द्वारा प्रेम से खिलाये जाने वाले भोजन से है। भले ही AAAMARRAIMARALAMNAIKAAMAJanaamaanasaaraameriendrauBABAJANAAsaramin AIMAAJAN PARAM.AAAAAA आप्रवभिशनाएर आचार्यप्रवभि श्रीआनन्दग्रन्थ श्रीआनन्दन awanwarmvvvvITYMAcrir-Mr.om.ww Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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