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________________ VVVVVVVVVVV WINNAYAviviam- WY [ सहयोग की आधारशिला है प्रेम । प्रेम की पवित्रता बनाए रखिए, प्रेम निभाने का राति सीखिए । ] ८ प्रीति की रीति क्या है ? ___ संगठन की आधार शिला प्रेम है । जब तक समाज के सदस्यों में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव नहीं होता, तब तक वे सभी संगठित होकर किसी उद्देश्य के लिए प्रयत्न नहीं कर सकते । इसलिये आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में अन्य सभी प्राणियों के प्रति सद्भावना और उदारता हो। संस्कृत के एक श्लोक से कहा गया है-- 'उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् । यानी जिसका चित्त उदार है, उसके लिये तो केवल अपना परिवार, समाज या देश ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व ही कुटुम्ब के समान है । संसार के प्रत्येक प्राणी को वह अपना कुटुम्बी समझता है । जिस व्यक्ति का अन्तःकरण उदार और प्रेमानुभूति से आप्लावित होगा, उसका जीवन संपूर्ण संसार के लिये आकर्षण का केन्द्र बन जायेगा। 'प्रेम बढ़ाओ!' यह कहने मात्र से तो किसी के हृदय में प्रेम जगाया नहीं जा सकता है। उसके लिये अपने व्यवहार में परिवर्तन करना पड़ेगा और वह किस प्रकार किया जा सकता है, यह हमें निम्नलिखित संस्कृत श्लोक में बताया गया है ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्यमाख्याति पृच्छति । भुक्ते भोजयते चैव षडविध प्रीति लक्षणम् ॥ श्लोक में प्रेमवर्धन के छह कारण या प्रेम के छह लक्षण बताये गये हैं। जो इस प्रकार हैं १ ददाति-ददाति यानी देना । देने से प्रेम बढ़ता है । आप अपने किसी भी सुहृद-संबन्धी को अपने हाथ से उपहार देंगे तो उसका आपके प्रति प्रेम बढ़ेगा । देने के महत्व का आप सभी को भली-भांति अनुभव है। क्योंकि आप आये दिन किसी के जन्मदिन या शादी-विवाह में दी जाने वाली पार्टियों में संमिलित होते हैं और उनमें जाते समय कुछ-न-कुछ उपहार लेकर ही जाते हैं, चाहे वह आभूषण हो, वस्त्र हो, पूस्तक या पेन या अन्य कोई भी छोटी-बड़ी वस्तु हो । आप क्यों देते हैं ? जो व्यक्ति अपनी लडकी के विवाह पर हजारों रुपये खर्च करता है, उसे चन्द रुपयों में खरीदी हुई आपकी वस्तु की कोई आवश्यकता नहीं है, किन्तु वह उसे प्रेम का उपहार समझकर ग्रहण करता है। सिर्फ इसलिए कि उसका आपके साथ मधुर सम्बन्ध कायम रहे। वह उपहार की कीमत नहीं देखता, देखता है उसके पीछे रहे हुए आपके स्नेह को और यह स्नेह आपके उपहार को अत्यन्त प्रिय और मूल्यवान बना देता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को देने का महत्व समझकर उससे स्नेह-प्राप्ति का लाभ उठाना चाहिए। २ प्रतिगृल्लाति-इसका अर्थ है बदले में लेना। आप सोचेंगे यह भी कोई प्रेम बढ़ाने का साधन है ? लेने से तो उलटा प्रेम घटता है। पर नहीं, ऐसी बात नहीं है, प्रेम उस लेने से घटता है, जो SAR का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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