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________________ आपाय प्रवदत अभिन श्री 九 CHOPPE अभिनंदन श्री आनन्दक १७६ आचार्यप्रवर श्री आनन्दॠषि व्यक्तित्व एवं कृतित्व आप श्रीमंत हैं, किन्तु आपका कोई गरीब मित्र या सम्बन्धी अपनी किसी ख़ुशी के अवसर पर आपको आमंत्रित करके आपके सामने अपनी हैसियत के अनुसार रूखा-सूखा भोजन रखता है तो बिना नाक-भौंह सिकोड़े हुए प्रेम से उसे ग्रहण करना चाहिए। अनेक व्यक्ति तो यही मानकर नियम ले लेते हैं कि सामने आये हुए अन्न का कभी अनादर नहीं करूंगा, भले ही उसमें से एक ही ग्रास क्यों न खाऊं, क्योंकि अन्न हमारे लिए देवता के समान पूज्य है। आज के अधिकांश व्यक्ति जो अमीर होते हैं, वे गरीब के घर खाने तो क्या जायेंगे, उनसे बात करने में भी अपनी हंसी समझते हैं। वे भूल जाते हैं कि जिस धन का हम गर्व करते हैं, उसका अन्त क्षय या वियोग ही है और कोई भी लाभ उससे होने वाला नहीं है । श्रीकृष्ण द्वारा विदुर के घर खाये साग और श्रीराम द्वारा शबरी के झूठे बेर खाने की कथा सभी जानते हैं । उनमें महत्त्व खाने की वस्तु का नहीं वरन उसके पीछे रहे हुए स्नेह का है । अतः उसका अनादर कभी नहीं करना चाहिए और अत्यन्त स्नेहपूर्वक जो भी रूखा-सूखा किसी के द्वारा उपस्थित किया जाये, उसे खिलाने वाले के स्नेह के समान ही स्वयं भी स्नेह से ग्रहण करना चाहिए। ऐसा करने पर ही आपसी प्रेम की वृद्धि हो सकती है। I ६ भोजयते— प्रेमवृद्धि का छठा सूत्र है- मिलाना खाने से जिस प्रकार स्नेह बढ़ता है उसी प्रकार खिलाने से भी बढ़ता है । यह नहीं कि किसी के यहां स्वयं तो अनेक बार खा आयें और अपनी श्रीमंताई और उच्चता का प्रदर्शन करने के लिए सामने वाले को कभी ठंडे पानी के लिए भी न पूछें। तो बताइये वहां प्रीति, मित्रता का भाव पैदा हो सकता है ? इसीलिए प्रेम बढ़ाने के लिये खाने के साथ खिलाना भी आवश्यक है । नीति भी यही कहती है कि अगर और कुछ अधिक न कर सकें तो हमें आये हुए अतिथि को रूखा-सूखा खिलाकर ही ठंडा पानी अवश्य ही पिलाना चाहिये। आपके यहां से लाकर जाने वाला व्यक्ति कभी आपको नहीं भूल सकता है। तो बन्धुओ ! आपस में प्रेम बढ़ाने के ये यह साधन आपके सामने रखे गये हैं। अगर प्रत्येक व्यक्ति इनका उपयोग करे तो परिवार में और समाज में कभी अशांति और आपसी तनाव की स्थिति उत्पन्न न हो । यद्यपि ये साधन सुनने में सरल और सहज लगते हैं, किन्तु इन पर अमल करना उतना सरल नहीं है। फिर भी जो व्यक्ति इन पर अमल करेंगे, उनका जीवन निश्चय ही सुन्दर बनेगा तथा अपने सम्पर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति के मन को मुग्ध कर लेगा । आप जानते ही हैं कि मन का मिलना कितना कठिन है और उसका फटना कितना सरल है । मन मिलने में तो बहुत समय लग सकता है, किन्तु उसके टूटने में क्षण-भर भी नहीं लगता । एक दोहे में कहा गया है- Jain Education International दूध फटा घी बह गया मन फटा गई प्रोति । मोती फटा कीमत गई तीनों की एक ही रीति ॥ इसीलिये बन्धुओ अपने सम्बन्धों को बिगड़ने मत दो, अन्यथा प्रेम नष्ट हो जायेगा और एक बार जो प्रेम नष्ट हो गया तो फिर उसे पुनः जागृत करना कठिन होगा । अतएव महापुरुष हमें बार-बार कहते हैं - किसी से बैर मत बांधो क्योंकि जीवन का अल्पसमय पलक झपकते ही व्यतीत हो जायेगा किन्तु बैर से बंधे हुए कर्म अनेक जन्मों तक दुःख देंगे और इसके विपरीत अगर मानव, मानव से प्रेम करेगा तो उसका यह जन्म तो सुखद बनेगा ही अगला जन्म भी शुभ कर्मों के फलस्वरूप सुखद हो सकेगा । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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