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________________ मुनि श्री कन्हैयालाल जी 'कमल' [आगम अनुयोग प्रवर्तक, आगमों के विशिष्ट अनुसंधाता ] 0 आगम साहित्य की अनमोल अनुपम निधि है- 'भगवती सूत्र ।' इसमें आचार्य के अन्तर्जीवन का जो दिव्य भव्य स्वरूप अंकित किया गया है, उसकी साकार छवि आचार्यसम्राट, प्रज्ञा के विराट् लोक आनन्दमूर्ति श्री आनन्दऋषि जी महाराज के जीवनदर्पण में प्रतिबिम्बित हुई है । उनके जीवन की पुस्तक को यदि दत्तचित से खोलेंगे तो हर पृष्ठ पर गुणों का चित्र उभरता दिखाई देगा। संक्षेप में आचार्यप्रवर का जीवन गंगा-सा निर्मल, मेरु-सा उच्चस्तरीय सागर-सा गंभीर, सुधांशु-सा शीतल और प्रभाकर-सा प्रभास्वर । मेरी हार्दिक कामना है कि आपके नेतृत्व में श्रमण संघ का दिव्य, भव्य भवन ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र की सुदृढ़ नींव पर आधृत रहे । हार्दिक श्रद्धार्चन अनन्त अनन्त श्रद्धा के अमरकेन्द्र * Jain Education International मुनि श्री हेमचन्द्र जी [स्व० [प्राचार्यप्रवर श्रात्माराम जी महाराज के सुशिष्य, संस्कृत-प्राकृत के गहन अभ्यास।] 7 आचार्यश्री आनन्दऋषि जी महाराज उच्चकोटि के व्यक्तित्व के धारक एक महान् जैन साधु हैं । आपका ज्ञान महान् है । जहाँ-जहाँ भी आप जाते हैं अपनी ज्ञान-गरिमा से वहाँ वहाँ की जनता को अपने दर्शन और अनुपम ज्ञान से अत्यन्त आह्लादित कर देते हैं । आप महान् विद्वान् हैं । आपके सान्निध्य में रहने वाला प्रत्येक साधु अपने आपको उच्चतर वातावरण में अनुभव करता है। आपश्री का एक चातुर्मास लुधियाना नगर में भी हुआ था, जिसमें यत्किचित सेवा करने का अवसर मुझे भी मिला था । आप जब शहर में लोगों को दर्शन देने के लिये जाते थे तो मुझे भी प्रायः अपने साथ ले जाने का अवसर देते रहते थे । उस समय की आपकी मधुर मुस्कान एवं प्रेमपूर्ण वार्तालाप को मैं आजीवन अपनी स्मृति में रखते हुए अपने आपको धन्य मानता रहूँगा । प्रातः व्याख्यान से पूर्व जब आप प्रार्थना करते थे, उस समय जितना जन-समुदाय उपस्थित रहता था, उतना आपके विहार के पश्चात् आज तक कभी देखने में नहीं आया। आपके व्याख्यान में भी अद्भुत उपस्थिति होती थी । महामना महात्मा महर्षि श्री श्री श्री पूज्यप्रवर श्री आनन्दऋषि जी महाराज के चरण कमलों में मैं अपना सश्रद्धा श्रद्धाचन अर्पण करता हूँ । ✩ 0 आयश्व अभिनंदन आचार्य प्रवर For Private & Personal Use Only do यह ग्रन्थ www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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