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________________ A RRANAMAHAKAALMANKAPAAAAAAARLALANCEws PYAR [] मुनिश्री नेमिचन्द जी (आगरा) [अहिंसक समाज रचना तथा सर्वोदयी समाज व्यवस्था की दृष्टि से सक्रिय तथा निष्ठाशील प्रचारक, अनेक पुस्तकों के सम्पादक, लेखक] सरल, सरस एवं जीवनस्पर्शी प्रवक्ता : प्राचार्यप्रनर श्री यानन्दषि कहते हैं, युद्धक्षेत्र में शौर्यगीत सुनाकर चारण एवं भाट योद्धाओं को इतना उत्तेजित कर देते थे कि उनकी भुजाएँ फड़कने लगती; वे अपने प्राणों का मोह छोड़कर शस्त्र-अस्त्र लेकर शत्रुसेना पर एकदम टूट पड़ते । यह जादू वचन का ही तो था ! और सरल-स्वभावी-सहृदय कैकयी रानी का मन-मस्तिष्क सहसा जिस मन्थरा दासी ने बदल दिया था; उसमें भी वाणी का ही प्रभाव था। मनुष्य की वाणी में वह बल है कि वह तलवार से भी बढ़कर गहरा प्रहार कर सकती है और चाहे तो पापी-से-पापी मनुष्य का हृदय बदल सकती है। चीन के प्रसिद्ध धर्मग्रन्थ ताओ उपनिषद में एक जगह बताया गया है-“लच्छेदार शब्द कभी विश्वसनीय नहीं होते और हृदय की गहराई से जो शब्द निकलते हैं, वे लच्छेदार नहीं होते।" वास्तव में हृदय की गहराई से उदभुत वचनों में जो स्वाभाविकता होती है, वह लच्छेदार वचनों में नहीं होती। जैसे कुए की गहराई से निकलने वाले पानी में शीतलता और उष्णता स्वाभाविक होती है, कृत्रिम नहीं; वैसे ही हृदय की गहराई से निकले हुए वचन बनावट, दिखावट स रहित स्वाभाविक सुन्दर और मधुर होते है। वचन और प्रवचन __उपर्युक्त प्रभाव साधारण वचन का है। प्रवचन का प्रभाव तो और भी अधिक होता है । क्योंकि बचन तो साधारण पुरुषों का होता है, जबकि प्रवचन विचारकों, संतों और महापुरुषों का। विचारक संतों की वाणी के पीछे उनका अनुभव, चिन्तन-मनन और जीवन का दर्शन होता है। उनके वचन में निरर्थक बकवास या व्यर्थ की गप्पें नहीं होतीं। इसीलिए उनके वचन हृदयस्पर्शी होते हैं, श्रोता की आत्मा को वे झकझोर देते हैं। इसीलिए जैन साध्वाचार के प्रसिद्ध शास्त्र बृहत्कल्पभाष्य में कहा है 'गुण सुठ्ठियस्स वयणं घयपरिसित्तुव्व पावओ भवइ । गुणहीणस्स न सोहइ नेहविहणो जह पईवो ॥' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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