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________________ श्रीआनन्द प्राआनन्ध मदन - श्री मधुकर मुनि [अनेक ग्रन्थों के लेखक, संस्कृत-प्राकृत भाषा के गहन अभ्यासी, स्थानकवासी जैन समाज के अग्रगण्य मुनि एवं बहुश्रुत] अभिनन्दना परम श्रद्धेय आचार्य श्री आनन्दऋषि जी महाराज के शुभ दर्शनों का लाभ सर्व प्रथम मुझे व्यावर में मिला था। अजमेर में पहला साधु-सम्मेलन होने जा रहा था। उसमें भाग लेने के लिए प्रायः सभी प्रान्तों के सन्त-मुनिराज दूर-दूर से राजस्थान में पधार रहे थे। आप भी अपनी मुनि-मंडली के साथ उस अवसर पर महाराष्ट्र से इस ओर पधारे थे। मैंने पहले से हो यह सुन रखा था कि आपकी प्रवचन-शैली महती मनो-मोहिनी है। मेरे हृदय में यह भावना सतत समुद्भूत हो रही थी कि कब वह स्वर्ण सूर्य समुदित हो, जब कि मैं आपके मधुरतम प्रवचनों को श्रुति-गोचर कर सकू ? और यह स्वर्ण अवसर मुझे ब्यावर में मिल ही गया। जब आप ब्यावर पधारे थे, तब मैं अपने गुरुजनों के साथ पीपलिया बाजार स्थित जैन स्थानक में ठहरा हुआ था। आप कहीं अन्यत्र विराजमान हुए थे। आपके तीन प्रवचन जैन स्थानक में आयोजित किए गए थे। "भर ऊंघ विसे सुतेला जैन जणाय छ रे' विषय पर आपके प्रवचन तीन दिनों तक निरंतर हुए थे। उस समय आपकी युवावस्था थी। स्वर सुमधुर था। प्रवचन में विषय-प्रतिपादन-शैली भी सुन्दर थी। अतः वे प्रवचन अतीव समयोचित रहे। मेरे हृदय पर तो उन प्रवचनों का प्रभाव सीमातीत पड़ा । उसी समय से मैं अपने हृदय से आपके सन्निकट पहुँच गया। इसके बाद तो आपके दर्शनों का लाभ अनेकधा मिला और आपकी सेवा में रहने का सौभाग्य भी मुझे यदा-कदा मिलता रहा । आचार्य श्री जी का अपना एक विशिष्ट व्यक्तित्व है। आपका व्यक्तित्व एक अलौकिक आभा से सतत आभासित रहता है। आपकी सत्संगति में आने वाला प्रत्येक व्यक्ति आपके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए विना नहीं रह सकता। बातचीत के समय में भी आपके मुख-मंडल पर एक सरल, सहज भावभंगिमा निखरती रहती है। दीक्षा-पर्याय में लघुतम सन्तजन भी जब आपकी सेवा में पहुँचते हैं, तब आप उनका भी इतना आदर करते हैं कि उनका हृदयमंदिर सदा के लिए आचार्य श्री जी का सिंहासन बन जाता है। आप अपनी सम्प्रदाय के तो आचार्य बने ही। कुछ सम्मिलित सम्प्रदायों के आप प्रधानाचार्य भी बने। जब श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ की स्थापना हुई तो आप उसके क्रमशः प्रधानमन्त्री, उपाध्याय व आचार्य बने । इससे यह फलित हो जाता है कि आप एक योग्यतम अनुशास्ता हैं। श्री वर्धमान जैन श्रमण संघ को सबसे पहले परम श्रद्धेय श्री आत्माराम जी महाराज का नेतृत्व मिला और इस समय श्रमण संघ आपके नेतृत्व को पा रहा है। आपके नेतृत्व में श्रमण संघ प्रगतिशील बने यही एक मात्र शुभकामना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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