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________________ Sh . ५६ श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ प्रान्तों में भगवान महावीर के शासन का प्रसार और आपकी वाणी का उद्देश्य वक्तृत्व-कौशल और विद्वत्ता प्रचार करके उसकी श्रीवृद्धि की है। का प्रदर्शन नहीं, प्रत्युत श्रोताओं के जीवन को धार्मिक ज्ञान और क्रिया के समन्वय की इस जीवन्त प्रतिमा और नैतिक दृष्टि से ऊँचा उठाना है। यही कारण है कि ने 'समयं गोयम मा पमायए' को अपने जीवन में पूर्णत: आप उन बातों पर बारम्बार प्रकाश डालते हैं, जो जीवनअवतरित किया हुआ है । वे अपना एक भी क्षण व्यर्थ नहीं विकास के लिए आवश्यक और मूलाधार हैं। इनकी जाने देते, कुछ-न-कुछ लिखने में, पढ़ने में, ध्यान-स्वाध्याय संतुष्टि-हेतु बीच-बीच में उदाहरण, दृष्टान्त, संगीत और में और चर्चा-वार्ता में ही उनके अहोरात्र व्यतीत होते हैं। कथाओं का समावेश करके अपने प्रवचन को और भी विद्वेष की आग भड़कती हो ऐसे अवसर पर भी वे अधिक प्रभाकर बना देते हैं। शान्ति से काम लेते हैं। - पूज्य गुरुदेव के जीवन सागर की लहरों को शब्दों में ___अपने से बड़ों के प्रति वे कितने विनयशील रहे होंगे, बांधना असम्भव कार्य है। यह तो मात्र दो-चार लहरों का इस बात का अनुमान मैं उनके छोटों के प्रति वात्सल्य और लघु चित्रण किया है । प्रेम को देखकर लगाती हूँ। पूना-चातुर्मास में मैंने देखा कि उनके दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के मंगलमय प्रसंग पर अपनी शिष्यमण्डली का वे कितने प्रेम से संरक्षण करते हैं। शासनेश से प्रार्थना है कि 'गरुदेव चिरायु हों, स्वस्थ रहें, इससे भी आगे कहूँ तो उतना ही स्नेह उन्होंने हमें भी जिन-शासन का गौरव बढ़ाएँ।' प्रदान किया। श्रमण संस्कृति के सजग प्रहरी : पूज्य गुरुदेव साध्वी विजय श्री (पंजाबी) जैन सिद्धान्ताचार्य राजस्थानकेसरी अध्यात्मयोगी श्रमणसंघीय उपा- पर भी मान उनसे कोसों दूर है। व्याख्यान और ध्यान ध्याय गुरुदेव श्री पुष्कर मुनि जी महाराज सन्त समाज के अतिरिक्त मैंने उनको कभी पाट पर बैठे नहीं देखा। की एक अनुपम विभूति हैं, वे श्रमणसंस्कृति के सजग गुरुदेव प्रभुता और प्रसिद्धि से दूर रहना चाहते हैं, लेकिन प्रहरी और सतेज नेता हैं । तप, त्याग एवं वैराग्य की वे छाया की तरह उनके पीछे ही नहीं, वरन् वायु के जीवन्त प्रतिमा हैं, आत्मबल, आत्मविश्वास और आत्म- समान आगे ही आगे दौड़ती हैं। जीवन की अनगिन दृढ़ता के मूर्तिमन्त रूप हैं। एक बार जो उनके दर्शन कर व्यस्तताओं में उलझे होने पर भी गुरुदेव सभी के लिए लेता है, वह सदा-सदा के लिए उनका परम भक्त बन सहज हैं, महात्माओं के दर्शन दुर्लभप्रायः होते हैं, लेकिन जाता है; ऐसी आत्मिक शक्ति है, उनके पास । गुरुदेव इसके अपवाद हैं। वे अपने आवश्यक कृत्यों के मुझे गुरुदेव के दर्शनों का सर्वप्रथम सौभाग्य महाराष्ट्र अतिरिक्त समय जनहित, संघहित और देशहित के कार्यों राज्य की पुण्य नगरी पूना में प्राप्त हुआ, तदुपरान्त शनैः में व्यतीत करने में विशेष आनन्द की अनुभूति करते हैं । शनैः मेरा मन गुरुदेव के शालीन व्यवहार, गम्भीर पांडित्य- यही कारण है कि गुरुदेव के पास से साधारण व्यक्ति भी मधुर वाणी और सहज-स्नेह के आगे दिन-प्रतिदिन झुकता जीवन की महत्तम उपलब्धि लेकर प्रस्थित होता है, और चला गया। आज भी जब कभी गुरुदेव के बाह्य और अपने को उनका निकटतम भक्त समझता है। आन्तरिक व्यक्तित्व पर चिन्तन की चारु चन्द्रिका में गुरुदेव के जीवन की अनेकानेक विशेषताएँ हैं। बैठकर सोचती हूँ, तभी श्रद्धा से सिर झुक जाता है। तथापि उनका बाह्य जीवन सीधा-सादा और सहज है अनुपम व्यक्तित्व के धनी : गुरुदेव 'सादा जीवन और उच्च विचार' गुरुदेव के जीवन की गुरुदेव का व्यक्तित्व गगन के समान विशाल है। बहुत बड़ी विशेषता हैउनका जीवन हिमाद्रि से भी उच्च और सागर से भी "Simple living and high thinking." गम्भीरतर है । वे सूर्य के समान तेजस्वी हैं, तो शशी के उनका जीवन मन्त्र है। समान निर्मल, स्वच्छ और शीतल भी हैं। प्रकाण्ड विद्वत्ता खद्दर का परिधान, घुटनों से नीचे तक का चोलपट्ट के धनी होने पर भी वे स्वभावत: अत्यन्त विनम्र हैं। चमकता हुआ उन्नत ललाट, तेजस्वी मुखमण्डल और ज्ञानी, ध्यानी, वर्चस्वी और संयमी जीवन में अग्रगण्य होने उपनेत्र में से सम्मुखस्थ व्यक्ति को परखने में परम पटु ० 0-- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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