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________________ तेजोमय नेत्र उनके विशुद्ध आन्तरिक व्यक्तित्व का परिचय देने के लिए काफी है, क्योंकि व्यक्ति का चेहरा उसके अन्तरंग जीवन का प्रतिबिम्ब होता है "Sound mind in sound body." सफल वर्चस्वी गुरुदेव एक सफल वर्चस्व के रूप में गुरुदेव सर्व प्रतिष्ठा प्राप्त हैं । आपकी वाणी सिंह की गर्जना के समान अदम्य उत्साह से परिपूरित साथ ही वीणा के तार के समान मधुर झंकार से युक्त होकर जब भाषा के रूप में बाहर निकलती है, तो श्रोताओं का मन मयूर झूम उठता है, वे एकाग्रमन होकर शान्त एवं प्रफुल्लित चित्त से श्रवण में ऐसे तन्मय हो जाते हैं, जैसे फूलों का रस पान करने में भ्रमर अथवा कई दिनों का भूखा व्यक्ति क्षीर पान में मस्त हो जाता है । इसका श्रेय मैं गुरुदेव की मधुर मधु युक्त वाणी को उतना नहीं देती, जितना तदनुरूप ढले हुए उनके अबाध साधनामय जीवन को, उनकी त्यागमयी मनोवृत्ति को और उनकी सरल मुमुक्षु आत्मा को । गुरुदेव के जीवन में आचार, विचार व उच्चार की त्रिवेणी सदा एक रूप, एक रस होकर बहती है। गुरुदेव का आचार, विचार से उच्च हैं और विचार उच्चार से उच्च । यही कारण है, कि गुरुदेव के सच्चे और अकृत्रिम स्वच्छ हृदय से निकला हुआ प्रतिशब्द प्रतिभव्य मुमुक्षु आत्मा द्वारा आदरणीय और आचरणीय होता है। उनके वचन में ऐसी अद्वितीय शक्ति है, जिसे सुनकर वृद्ध मन भी पूर्ण उत्साह और लगन के साथ कार्य में संलग्न हो जाता है । सजग कर्मयोगी : गुरुदेव गुरुदेव के कर्मठ जीवन का ध्यान करते-करते मुझे बरबस एक महान आचार्य द्वारा कही गई संस्कृत की पंक्ति याद आ रही है 'कुरु कुरु पुरुषार्थ नि सानन्द तो ' गुरुदेव के जीवन मे उक्त पंक्ति की चरितार्थता दिखाई देती हैं। मैं जब-जब भी गुरुदेव के पास गई उन्हें किसी न किसी सत्कार्य में संलग्न ही देखा । काम करते समय की उनकी लगन, उनकी तत्परता उनके जीवन का अकृत्रिम गुण है । वृद्धावस्था होते हुए भी गुरुदेव मन से पूर्णतः स्वस्थ, उत्साही, कर्मयोगी एवं दृढ़ मनोबली हैं । चिन्ता, निराशा, उदासीनता आदि की झलक रंचमात्र भी कभी उनके मुखमण्डल पर नहीं दिखाई दी, जब भी उन्हें देखा सदा प्रसन्न एवं जागरूक देखा । "Work is worship" जैसे उनका जीवन मन्त्र हो । गुरुदेव का सतत पुरुषार्थ उनके कृतित्व में भी पूर्णतः उद्भावित हुआ है । संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती Jain Education International प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चन ५७ आदि भाषाओं को गुरुदेव की कृति में स्थान प्राप्त है । विविध कथा, कहानी आदि को पद्यमय बनाकर सुनाना उन्हें अभीष्ट है। कविताएँ ओज, माधुर्य तथा गाम्भीर्य से परिपूर्ण अति भावप्रवण सरल तथा सुगम होती हैं । मानो सौन्दर्य मद में झूमती हुई कवि की दृष्टि स्वर्ग से भूलोक और भूलोक से स्वयं तक विचरती रहती है।" "Doth glavce from heaven to earth and earth to heaven." जिस किसी भी विषय को गुरुदेव लेखनी या वाणी रूप देते हैं, उसी में प्राण उंडेल देते हैं । गुरुदेव का कृतित्व सरसता, सरलता और भावप्रवणता का संगमस्थल है । अनजाने तथा अनबूझे विषयों को भी रुचिकर बनाकर हृदयंगम कराने में गुरुदेव की कवित्व शक्ति को विशिष्ट प्रकार का प्रभुत्व प्राप्त है । इस प्रकार गुरुदेव कर्मठ चित्त किसी न किसी जनोपयोगी, समाज संगठन आदि कार्यों में सदैव संलग्न रहता है। ऐसे कर्मठ योगी सन्त ही संसार की मरुस्थली को नन्दन कानन बना देते हैं । बहुगुण संपूज्य गुरुदेव गुरुदेव अनेक गुण-रत्नों से संपूजित है उनकी गुणग्राहकता, मिलनसारिता, धैर्य, विवेक और परिस्थितियों को समझकर कार्य करने की कुशलता बड़ी अद्भुत है । वे उदारमनस्वी और संकीर्णता से कोसों दूर हैं। संघ को शक्तिशाली बनाने में गुरुदेव ने हर संभव प्रयत्न किया है। सादड़ी, सोजत, अजमेर आदि सम्मेलनों में संघ को एकसूत्र में पिरोने में गुरुदेव श्री का महत्त्वपूर्ण हाथ रहा है। किं बहुना, गुरुदेव के मानस में स्वाभिमान, व्यवहार में अपनापन और आचार में दृढ़ता है। समन्वयात्मक दृष्टि में गुरुदेव पुरातन तथा नवीन युग की सन्धि कड़ी हैं। आयु में वृद्ध और विचारों में युवकों से भी आगे है। कर्मसाधना उनका जीवन लक्ष्य है, दृढ़निष्ठा उनका प्रगति पथ है, विवेक और विचार उनके मार्गदर्शक हैं, यश, प्रतिष्ठा और भौतिक ऋद्धियाँ उनकी अनुगामिनी हैं। उनमें बालक की-सी सरलता, युवा की-सी संकल्प शक्ति और साहस तथा वृद्ध का-सा अनुभव है। वे एक होकर भी अनेक हैं और अनेक होकर भी एक हैं। अनन्तः ऐसे अनूठे व्यक्तित्व के धनी पूज्य गुरुदेव श्री के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पण करती हुई मैं यह कामना करती हूँ, कि युगों-युगों तक आपश्री का यशस्वी संयम जीवन पथभ्रष्ट यात्रियों को सत्पथ पर गतिशील करत । रहे। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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