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________________ ४८ श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . है । भाई महाराज की अस्वस्थता आदि के कारण सद्गुरु- बहुत ही स्पष्ट हुई है । वह जीवन निर्माण की प्रबल प्रेरणा वर्य के साथ नान्देशमा, जयपुर, पीपाड़, अजमेर आदि प्रदान करता है। स्थलों पर वर्षावास करने का अवसर मिला। इन वर्षा- जप और ध्यान साधना पूज्य-गुरुदेव श्री को अत्यधिक वासों में मैंने गुरुदेव श्री से अनेक आगमों का अध्ययन भी प्रिय है। वे अपना अधिकांश समय उसमें लगाते हैं। किया है। आगमों के गुरु-गम्भीर रहस्यों को जिस सरल उनका यह स्पष्ट मन्तव्य है कि स्वाध्याय के पश्चात व सरस शैली में सद्गुरुदेव बताते हैं वह उनके गहन साधक को जप की साधना करनी चाहिए । जप की साधना आगमों के अध्ययन-चिन्तन का प्रतीक है। से वाणी की शुद्धि होती है और ध्यान की साधना से मन की ___गुरुदेव श्री की प्रवचन-शैली बहुत ही सरस और शुद्धि होती है । ध्यान आत्मा की एक महान शक्ति है । प्रभावोत्पादक है। वे कुशल वक्तृत्व के धनी हैं। वे जब ध्यान चेतना की वह विशिष्ट अवस्था है, जहाँ पर सम्पूर्ण अनु गम्भीर गर्जना करते हैं तो श्रोताओं के मन-मयुर नाच भूतियाँ एक ही अनुभूति में विलीन हो जाती हैं, विचारों में उठते हैं । उनकी आवाज बुलन्द है साथ ही मधुर भी है। अपूर्व सामंजस्य आ जाता है । भेद-भाव की शृखलाएँ टूट वे बोलने के पूर्व सभा को देखते हैं कि सभा साक्षर है या जाती हैं। इस अखण्ड अनुभूति में ज्ञाता और ज्ञय का निरक्षर है ! यदि साक्षर है तो दर्शन व आगम साहित्य की भेद नहीं रहता अपितु आत्मा ही परमात्मा बन जाता है। गम्भीर विवेचना करते हैं । आत्मवाद, ज्ञानवाद, लोकवाद, पूज्य गुरुदेव श्री हमें यह सतत प्रेरणा प्रदान करते रहे हैं कर्मवाद, आदि का गहन विश्लेषण करते हैं और यदि श्रोता कि हमें ज्ञान के पश्चात् ध्यान में अधिक समय लगाना सामान्य है तो बोध कथाएँ व युक्ति प्रयुक्तियों के द्वारा गहन चाहिए। ध्यान वह चाबी है, जिससे अखण्ड आनन्द का से गहन विषय को भी इस प्रकार सरस रूप से प्रस्तुत करते द्वार खुलता है। ध्यान से मन शान्त होता है । बिखरा हैं कि श्रोताओं को वह विषय हृदयंगम हो जाता है। हुआ मन ध्यान से केन्द्रित हो जाता है। जिससे मनोबल प्रवचन के बीच इस प्रकार चुटकियाँ लेते हैं कि श्रोता की भी अभिवृद्धि होती है और आत्मा में अद्भुत शक्ति हँस-हंस कर लोट-पोट हो जाते हैं। का संचार होता है। गुरुदेव श्री ने गद्य और पद्य इन दोनों साहित्यिक हमारा परम सौभाग्य है कि अभिनन्दन ग्रन्थ के विधाओं में लिखा है। भाषा की दृष्टि से गुरुदेव श्री का माध्यम से हमें सद्गुरुवर्य के श्री चरणों में श्रद्धा के सुमन साहित्य संस्कृत, हिन्दी गुजराती और राजस्थानी में हैं समर्पित करने का सुअवसर मिल रहा है । श्रद्धेय सदगुरूऔर विषय-विवेचना की दृष्टि से उसमें अनुभवों का अमृत वर्य का विराट् व्यक्तित्व और कृतित्व का अङ्कन करना है, चिन्तन की गहनता है, धर्म-दर्शन अध्यात्म और साधना मुझ जैसी लघु शिष्या की शक्ति से परे है। मैं कवि के का तलस्पर्शी विवेचन है। ऐतिहासिक, पौराणिक बोध शब्दों में यही नम्र निवेदन करूंगी। कथाओं का प्राचुर्य है । पूज्य गुरुदेव श्री के साहित्य की भारत के हे सन्त ! तुम्हारा, जोवन है जग में आदर्श । सबसे बड़ी विशेषता है उसमें अनुभूति की अभिव्यक्ति पापी पावन हुए तुम्हारे, चरण-मणि का पाकर-स्पर्श । दिव्य व भव्य व्यक्तित्व महासती दमयन्तीबाई स्वामी (लिंबड़ी सम्प्रदाय) सरलता, मृदुता एवं सौम्यता के धनी उपाध्याय श्री के जन्मशताब्दि स्मृति ग्रन्थ के लिए सुझाव दिया। मेरा पुष्कर मुनि जी महाराज का जीवन निर्मल, गंगा के साहित्य जगत् से सीधा सम्बन्ध नहीं था । हृदय में ये भावविशाल प्रवाह की तरह है जिसके दोनों किनारे लहलहाते नाएं अठखेलियां कर रही थीं कि कविवर्य के जन्मशताब्दी पर हुए उपवन से प्रतीत होते हैं। वे श्रमण संघ के गौरव हैं। कुछ कार्य करना है, पर क्या करना है ? यह सूझ नहीं रहा उनका शान्त निश्चल एवं परम पवित्र जीवन श्रमण था। उपाध्याय पुष्कर मुनि जी महाराज अपना अहमदासंस्कृति का पुनीत प्रतीक है। भौतिक चकाचौंध के युग में बाद का यशस्वी वर्षावास पूर्ण कर १९७५ में बम्बई पधारे। प्रभुता प्रदर्शन से दूर रह कर आप शान्त स्वभावी आध्या- बोरीवली में मैं आप श्री के दर्शनार्थ उपस्थित हुई । देवेन्द्र त्मिक साधक के रूप में आत्म-कल्याण एवं लोक-कल्याण मुनिजी से मैंने अपने हृदय की बात रखी और उन्होंने के कार्यों में सतत संलग्न हैं। आप श्री का मेरे पर महान् स्मृतिग्रन्थ की योजना प्रस्तुत की। केवल योजना उपकार है। आप श्री के सुयोग्य शिष्य श्री देवेन्द्र मुनि जी ही नहीं, उन्होंने ग्रन्थ की संक्षिप्त रूपरेखा भी बना ने सर्वप्रथम सद्गुरुवर्य कवीश्री नानचन्द्रजी महाराज दी। योजना को सुनकर मेरा मन-मयूर नाच उठा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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