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________________ GB -O O Jain Education International ४६६ श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड (४) अशुक्ल-मकृष्ण, जो क्रमशः अशुद्धतर अशुद्ध शुद्ध और शुद्धतार है तीन कर्मजातियाँ सभी जीवों में होती हैं, किन्तु चौथी अशुक्ल - अकृष्ण जाति योगी में होती है ।" प्रस्तुत सूत्र पर भाष्य करते हुए लिखा है कि उनका कर्म कृष्ण होता है जिनका चित्त दोष-कुलषित या क्रूर है। पीड़ा और अनुग्रह दोनों विधाओं से मिश्रित कर्म शुक्ल कृष्ण कहलाता हैं । यह बाह्य साधनों से साध्य होते हैं । तप, स्वाध्याय और ध्यान में निरत व्यक्तियों के कर्म केवल मन के अधीन अपेक्षा नहीं होती और न किसी को पीड़ा दी जाती है, एतदर्थं यह आकांक्षा नहीं करते उन क्षीण-क्लेश चरमदेह योगियों के अशुक्ल होते हैं उनमें बाह्य साधनों की किसी भी प्रकार की कर्म शुक्ल कहा जाता है। जो पुण्य के फल की भी अकृष्ण कर्म होता है । प्रकृति का विश्लेषण करते हुए उसे श्वेताश्वतर उपनिषद् में लोहित्, शुक्ल और कृष्ण रंग का बताया गया है। सांख्य कौमुदी में कहा गया है जब रजोगुण के द्वारा मन मोह से रंग जाता है तब वह लोहित है, सत्त्वगुण से मन का मैल मिट जाता है, अतः वह शुक्ल है ।" शिव स्वरोदय में लिखा है— विभिन्न प्रकार के तत्वों के विभिन्न वर्ण होते हैं जिन वर्णों से प्राणी प्रभावित होता है ।" वे मानते हैं कि मूल में प्राणतत्त्व एक है। अणुओं की कमी-बेशी, कंपन या बेग से उसके पाँच विभाग किये गये है जैसे देखिए नाम (१) पृथ्वी (२) जल (३) तेजस् (४) (५) आकाश वेग अल्पतर अल्प तीव्र तीव्रतर तीव्रतम रंग पीला सफेद या बैंगनी लाल नीला या आसमानी काला या नीलाभ (सर्ववर्णक मिश्रित रंग) आकार चतुष्कोण अर्द्धचन्द्राकार त्रिकोण गोल अनेक बिन्दु गोल या आकार शून्य रस या स्वाद मधुर कसैला चरपरा खट्टा कड़वा जैनाचार्यों ने लेश्या पर गहरा चिन्तन किया है। उन्होंने वर्ण के साथ आत्मा के भावों का भी समन्वय किया है । द्रव्यलेश्या पौद्गलिक है। अतः आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि से भी लेश्या पर चिन्तन किया जा सकता है। संस्था : मनोविज्ञान और पदार्थविज्ञान For Private & Personal Use Only मानव का शरीर, इन्द्रियाँ और मन ये सभी पुद्गल से निर्मित हैं । पुद्गल में वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श होने से वह रूपी है। जैन साहित्य में वर्ण के पाँच प्रकार बताये हैं- काला, पीला, नीला, लाल और सफेद । आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से सफेद रंग मौलिक नहीं है। वह सात रंगों के मिलने पर बनता है। उन्होंने रंगों के सात प्रकार बताये हैं । यह सत्य है कि रंगों का प्राणी जीवन के साथ बहुत ही गहरा सम्बन्ध है । वैज्ञानिकों ने भी परीक्षण कर यह सिद्ध किया है कि रंगों का प्रकृति पर, शरीर पर और मन पर प्रभाव पड़ता है। जैसे लाल, नारंगी, गुलाबी, बादामी रंगों से मानव की प्रकृति में ऊष्मा बढ़ती है। पीले रंग से भी ऊष्मा बढ़ती है, किन्तु पूर्वापेक्षया कम | नीले, आसमानी रंग से प्रकृति में शीतलता का संचार होता है। हरे रंग से न अधिक ऊष्मा बढ़ती है और न अधिक शीतलता का ही संचार होता है, अपितु शीतोष्ण सम रहता है। सफेद रंग से प्रकृति सदा सम रहती है। रंगों का शरीर पर भी अद्भुत प्रभाव पड़ता है। लाल रंग से स्नायु मंडल में स्फूर्ति का संचार होता है । नीले रंग से स्नायविक दुर्बलता नष्ट होती है, धातुक्षय सम्बन्धी रोग मिट जाते हैं तथा हृदय और मस्तिष्क में शक्ति की अभिवृद्धि होती है। पीले रंग से मस्तिष्क की दुर्बलता नष्ट होकर उसमें शक्ति संचार होता है, कब्ज, यकृत, प्लीहा के रोग मिट जाते हैं । हरे रंग से ज्ञान-तन्तु व स्नायु मंडल सुदृढ़ होते हैं तथा धातु क्षय सम्बन्धी रोग नष्ट हो जाते हैं। गहरे नीले रंग से आमाशय सम्बन्धी रोग मिटते हैं। सफेद रंग से नींद गहरी आती है। नारंगी रंग से वायु सम्बन्धी व्याधियाँ नष्ट हो जाती हैं और दमा की व्याधि भी शान्त हो जाती है। बैंगनी रंग से शरीर का तापमान कम हो जाता है । प्रकृति और शरीर पर ही नहीं, किन्तु मन पर भी रंगों का प्रभाव पड़ता है। जैसे, काले रंग से मन में असंयम, हिंसा एवं क्रूरता के विचार लहराने लगेंगे। नीले रंग से मन में ईर्ष्या, असहिष्णुता, रस-लोलुपता एवं विषयों के प्रति आसक्ति व आकर्षण उत्पन्न होता हैं । कापोत रंग से मन में वक्रता, कुटिलता अंगडाइयाँ लेने लगती हैं । अरुण रंग से मन में ऋजुता, विनम्रता एवं धर्म-प्रेम की पवित्र भावनाएँ पैदा होती हैं। पीले रंग से मन में क्रोध - मान-माया-लोभ www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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